Bihar News: बिहार के नालंदा जिले के 18 प्रखंडों में मिनी मिट्टी जांच प्रयोगशालाएं स्थापित की जाएंगी. इस योजना से न सिर्फ किसानों को उनके जमीन की वैज्ञानिक जानकारी मिलेगी, बल्कि शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी खुलेंगे.
शुरू हुई आवेदन प्रक्रिया
इस महत्वपूर्ण योजना के तहत चयनित लाभार्थियों को सरकार की तरफ से डेढ़ लाख रुपये का सौ प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा. इस कड़ी में गिरियक और नगरनौसा प्रखंड को छोड़कर शेष 18 प्रखंडों में से प्रत्येक में एक-एक जांच लैब खोलने की योजना बनाई गई है. आवेदन की प्रक्रिया पहले से ही शुरू हो चुकी है.
कंप्यूटर की बुनियादी जरूरी
जानकारी के मुताबिक इस योजना का फायदा उठाने के इच्छुक युवाओं के लिए कुछ मानदंड निर्धारित किए गए हैं. आवेदकों की आयु 18 से 27 साल के बीच होना अनिवार्य है. वहीं, शैक्षणिक योग्यता साइंस में दसवीं पास होना आवश्यक है. इसके अलावा कंप्यूटर की बुनियादी जानकारी होना भी जरूरी है.
अपना भवन होना अनिवार्य
बता दें कि लैब स्थापित करने के लिए आवेदक के पास अपना भवन होना चाहिए. अगर अपना भवन नहीं है तो किराए पर कमरा लेकर भी लैब की शुरुआत की जा सकती है, लेकिन इसके लिए न्यूनतम चार साल का किराया समझौता होना आवश्यक है.
जिला स्तरीय समिति करेगी आवेदकों का चयन
आवेदकों का चयन जिला स्तरीय समिति द्वारा किया जाएगा. उसके बाद योजना की स्वीकृति मिलेगी. अहम बात यह है कि न केवल व्यक्तिगत शिक्षित युवा बल्कि पैक्स (प्राथमिक कृषि साख समिति) और एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) से जुड़े लोग भी इसके लिए अप्लाई कर सकते हैं.
प्रयोगशालाओं में लगेंगी मॉडर्न ऑटोमैटिक मशीनें
जानकारी के अनुसार इन मिनी प्रयोगशालाओं में मॉडर्न ऑटोमैटिक मशीनें लगाई जाएंगी जो मिट्टी के 12 महत्वपूर्ण पैरामीटर की जांच करेंगी. इनमें जिंक, आयरन, मैंगनीज, कॉपर, पीएच, ईसी, जैविक कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर और बोरोन भी शामिल हैं. यह जांच किसानों को अपनी मिट्टी की सटीक स्थिति की जानकारी प्रदान करेगी.
जमा देने होंगे ये दस्तावेज
आवेदन के साथ आवेदकों को अपना नाम, पता, जन्मतिथि, जाति प्रमाणपत्र, बैंक खाता विवरण, आईएफएससी कोड, आधार कार्ड, मोबाइल नंबर और शैक्षणिक योग्यता के प्रमाण पत्र भी जमा देने होंगे. आवेदक अगर किसी समूह से जुड़ा है तो उस समूह का नाम भी देना होगा.
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योजना के चार मुख्य उद्देश्य
इस योजना के चार मुख्य उद्देश्य हैं, जिसके तहत पहला, मिट्टी के स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरुकता लाना. वहीं दूसरा, मिट्टी में आवश्यकता आधारित पोषक तत्वों की सिफारिश करना. जबकि तीसरा, मिट्टी का बेहतर प्रबंधन और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना. इसके अलावा चौथा, फसल की पैदावार बढ़ाना और उसकी गुणवत्ता में सुधार लाना है.
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