रविशंकर उपाध्याय
पटना : नालंदा की बावनबूटी साड़ी यूनेस्को में भारतीय हस्तकला का प्रतिनिधित्व करेगी. हस्तकला के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलने वाले यूनेस्को सील ऑफ एक्सीलेंस के लिए बावनबूटी साड़ी को भेजा जायेगा. केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि अगले साल विश्व स्तर पर होने वाली इस प्रतियोगिता में बावनबूटी को प्रविष्टि मिलेगी.
इसके बाद इसे यूनेस्को सील ऑफ एक्सीलेंस, जिसे सील अवार्ड भी कहा जाता है, बिहार की इस परंपरागत हस्तकला को मिल जायेगा. इसी साल सुजनी को यह सील अवार्ड मिला है, जिससे उत्साहित होकर वस्त्र मंत्रालय ने यह फैसला लिया है.
नालंदा की बावनबूटी हस्तकला की काफी पुरानी परंपरा है, जिसमें सादे वस्त्र पर हाथ से धागे की महीन बूटी डाली जाती है. हर कारीगरी में कम-से-कम 52 बूटियों के होने के कारण इसको बावनबूटी का नाम दिया गया है. इसी बूटियों में वस्त्र की पूरी डिजाइन बनायी जाती है.
उपेंद्र महारथी ने भी इस डिजाइन पर काफी काम किया. वे पटना से कागज पर डिजाइन का ड्राफ्ट बनवाकर नालंदा के बसावनबिगहा में ले जाते थे और बुनकरों के साथ बैठकर उसे बनवाते थे. राष्ट्रपति पैटर्न उन्होंने ही बनवाया था, जिसमें इस कला को काफी विस्तार मिला. इन दिनों जीविका के जरिये राज्य सरकार भी इस हस्तकला को बढ़ावा दे रही है.
क्या है यूनेस्को सील ऑफ एक्सीलेंस?
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) पारंपरिक और समकालीन दोनों शिल्पों को संरक्षित और विकसित करने के लिए कई तरह की गतिविधियों को बढ़ावा देता है. इसी के तहत दुनिया में शिल्प के विकास के लिए यूनेस्को सील ऑफ एक्सीलेंस पुरस्कार हर साल यूनेस्को देता है. इसी बरस भारत सरकार ने सुजनी कला को इस पुरस्कार के लिए भेजा था, जिसने पुरस्कार जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हस्तकला की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया था.
सुजनी को इसी साल यूनेस्को सील ऑफ एक्सीलेंस मिला है, जिससे हम काफी उत्साहित है. नालंदा की बावनबूटी में भी वह सभी खूबियां मौजूद हैं, जिनके कारण इसे सील अवार्ड मिल सकता है. अगले साल बावनबूटी को यूनेस्को सील ऑफ एक्सीलेंस के लिए भेजा जायेगा. उम्मीद है कि यह डिजाइन भी यह अवार्ड हासिल करेगी.
—सुजाता प्रसाद, सलाहकार
केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय
राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ा चुकी है बावनबूटी
बावनबूटी को देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का खूब प्यार मिला. उन्होंने बावनबूटी के पर्दे बनवाकर राष्ट्रपति भवन में लगवाये थे, जिसके बाद इस कला को काफी प्रसिद्धि मिली.