बिहारशरीफ : गर्मी पूरी तरह से पड़ने लगी है. इस मौसम में अभिभावक अपने बच्चे की सेहत के प्रति सजग रहें. अमूमन तौर पर गर्मी के मौसम में जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेइ) व एइएस के मरीज प्रतिवेदित होने लगते हैं.
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सदर अस्पताल समेत हरेक पीएचसी में अलग से जेइ वार्ड की व्यवस्था
बिहारशरीफ : गर्मी पूरी तरह से पड़ने लगी है. इस मौसम में अभिभावक अपने बच्चे की सेहत के प्रति सजग रहें. अमूमन तौर पर गर्मी के मौसम में जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेइ) व एइएस के मरीज प्रतिवेदित होने लगते हैं. इसकी चपेट में बच्चे आकर बीमार हो जाते हैं. इसलिए बच्चे को बीमार होने से बचाने […]
इसकी चपेट में बच्चे आकर बीमार हो जाते हैं. इसलिए बच्चे को बीमार होने से बचाने के लिए अभिभावक पूरी तरह से सजग रहें. जेइ रोग पर नियंत्रण के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग भी सजग है. इसके संदिग्ध रोगी पर नजर रखने के लिए विभाग ने ठोस नीति अपनायी है.
इसके तहत जिले के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को भी सजग करते हुए हमेशा अलर्ट रहने को कहा है, ताकि जेइ के रोगी चिह्नित होने पर उसकी जांच से लेकर समय पर इलाज किया जा सके. अप्रैल से दिसंबर माह के दौरान रोगी होते हैं प्रतिवेदित. हालांकि अभी तक जिले के किसी भी भाग में जेइ के एक भी रोगी प्रतिवेदित नहीं हो पाया है.
अलग जेइ वार्ड की व्यवस्था
जेइ के संदिग्ध चिह्नित होने पर उसे इलाज के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग की ओर से मुकम्मल व्यवस्था की जा रही है. विभाग की ओर से जिला मुख्यालय अवस्थित सदर अस्पताल परिसर में जेइ वार्ड की अलग से व्यवस्था होगी. इस दिशा में विभागीय पहल शुरू कर दी गयी है.
सदर अस्पताल के उपाधीक्षक से कहा गया है कि अस्पताल में यथाशीघ्र जेइ वार्ड की व्यवस्था की जाये, ताकि रोगी चिह्नित होने पर संबंधित मरीज को इस वार्ड में भर्ती किया जा सके. इस वार्ड में दस बेड की व्यवस्था होगी. विभाग की योजना है कि जरूरत पड़ने पर इस वार्ड में बेड की संख्या बढ़ायी भी जा सकती है, ताकि रोगियों को इलाज में पूरी तरह से सहूलियत हो सके.
इसी तरह पीएचसी व अनुमंडलीय अस्पतालों में चार-चार बेड की व्यवस्था होगी, ताकि पीएचसी स्तर पर भी इसका इलाज किया जा सके. सभी पीएचसी व अनुमंडलीय अस्पतालों के क्रमश: प्रभारी व उपाधीक्षकों से कहा गया है कि अलग वार्ड व बेड की व्यवस्था करना सुनिश्चित करेंगे. इस कार्य को तत्परता के साथ करेंगे.
क्या कहते हैं अधिकारी
जेइ वायरल बीमारी है. यह मच्छरों के काटने से होती है. अमूमन अप्रैल से दिसंबर माह के दौरान जेइ व एइएस के रोगी चिह्नित होते हैं. इसके लिए जिला स्वास्थ्य विभाग ने ठोस कदम उठाया है. संदिग्ध रोगियों पर नजर रखने का निर्देश प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारियों व उपाधीक्षकों को दिया गया है. रोगी मिलने पर उसकी तुरंत जांच व चिकित्सा की जाये. अभी तक एक भी रोगी जिले में प्रतिवेदित नहीं हुआ है.
डॉ परमानंद चौधरी, सिविल सर्जन, नालंदा
चिकित्सीय सुविधाओं से लैस होगा वार्ड
जिला एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ मनोरंजन कुमार ने बताया कि सदर अस्पताल का जेइ वार्ड पूरी तरह से चिकित्सीय सुविधाओं से लैस होगा. इस वार्ड में चिकित्सा पदाधिकारी से लेकर पारा मेडिकल वर्कर स्टॉफ तैनात रहेंगे.
डॉक्टर व कर्मी यहां हमेशा तैनात रहेंगे. इस वार्ड आवश्यक जीवनरक्षक दवाइयां उपलब्ध होंगी, जो कि डॉक्टरों की सलाह पर चिह्नित रोगियों को उपलब्ध करायी जायेगी. वर्ष 2018 में जिले में पांच रोगी प्रतिवेदित हुए थे. इस वर्ष अभी तक एक भी रोगी प्रतिवेदित नहीं हुआ है.
जेइ व एइएस के लक्षण
तेज बुखार आना
चमकी अथवा पूरे शरीर या किसी खास अंग में एेंठन होना
बच्चे का सुस्त होना/बेहोश होना
चिउंटी काटने पर शरीर में कोई हरकत नहीं होना
मस्तिष्क ज्वर से बचाव के उपाय
धूप से हरसंभव बचें
तेज बुखार होने पर जांच कराएं
एएनएम व आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से संपर्क करें
साफ पानी में ओआरएस घोलकर पिलाएं
बेहोशी/मिर्गी की अवस्था में बच्चे को हवादार स्थान पर रखें
सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें
अपने घरों के पास गंदा पानी का जमाव न होने दें
बगीचे में गिरे जूठे फल न खाएं
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