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Bihar News: शहर में हो रहा प्रेशर हॉर्न का इस्तेमाल, लोगों में कम हो रही सुनने की क्षमता

Bihar News: गाड़ियों में लगा प्रेशर हॉर्न स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है. परिवहन विभाग जांच नहीं करता है. प्रेशर हॉर्न मैकेनिक शॉप में लगाए जा रहे है.

Bihar News: बिहार के मुजफ्फरपुर शहर में गाड़ियों में लगा प्रेशर हॉर्न लोगों को बीमार कर रहा है. इसकी आवाज से लोगों की सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है और हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ गया है. शहर में चल रहे कार, बस और ट्रकों में लगे प्रेशर हॉर्न बच्चों से लेकर बुजुर्गों के लिए खतरा हो गया है. शहर में कई ऐसे मैकेनिक शॉप हैं, जहां गाड़ियों में प्रेशर हॉर्न लगाया जा रहा है. विडंबना यह है कि परिवहन विभाग गाड़ियों के कागजात और लाइसेंस की तो जांच करता है, लेकिन प्रेशर हॉर्न पर उसकी नजर नहीं जाती. नियम के अनुसार सड़कों पर चलने वाले भारी वाहनों को 45 से 55 डेसीबल के हार्न लगाने की अनुमति है, लेकिन नियम को ताक पर रखकर 125 से 150 डेसीबल के हार्न लगाएं जा रहे हैं, इससे ध्वनि प्रदूषण तो बढ़ ही रहा है, लोगों के स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है. लोगों में बहरापन की समस्या बढ़ रही है.

प्रतिबंधित क्षेत्र में भी बजाते हैं प्रेशर हार्न

नियमानुसार शहर के भीड़भाड़ और शांत क्षेत्र में प्रेशर हार्न बजाने पर प्रतिबंध है, लेकिन यहां चालकों को नियम से कोई मतलब नहीं है. अधिकारियों ने भी उन्हें रोकने की कभी कोई ठोस पहल नहीं की. भीड़ भाड़ या शांत क्षेत्रों में भी प्रेशर हॉर्न का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है. शांत क्षेत्र में अस्पताल, शिक्षण संस्थाएं, अदालत, समाहरणालय या सार्वजनिक मंदिर या अन्य पूजा स्थल पर हर समय काफी भीड़ रहती है, लेकिन यहां भी प्रेशर हॉर्न का इस्तेमाल किया जाता है. युवा अचानक किसी वाहन के पीछे आकर प्रेशर हार्न बजा देते हैं, इससे आगे चलने वाला दोपहिया वाहन चालक संतुलन खोकर दुर्घटना का शिकार हो जाता है. वहीं सवारी ढोने वाले ऑटो चालक अपने ऑटो में लाउडस्पीकर लगाकर इतनी तेज आवाज में गाना बजाते हैं कि पीछे चलने वाले वाहन चालक हॉर्न बजाते रहते हैं, लेकिन ऑटो चालकों पर कोई असर नहीं होता है.

85 डेसिबल से अधिक ध्वनि नुकसानदेह

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने 85 डेसिबल से अधिक की ध्वनि को लोगों के लिए नुकसानदेह माना है. इससे अधिक की ध्वनि के संपर्क में रहने पर बहरापन की समस्या आ सकती है. मानक के अनुसार 60-70 डेसिबल ध्वनि को सुरक्षित माना गया है. व्यक्ति को अपने रोजमर्रा के जीवन में इतनी ही ध्वनि के बीच रहना चाहिए. यदि मनुष्य 60 डेसिबल से अधिक तीव्रता की ध्वनि के बीच आठ से 10 घंटे बिताता है तो उन्हें जल्दी थकान महसूस होना, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन और सिरदर्द होने लगता है. लगातार भारी शोरगुल के बीच रहने वाले लोगों की यह आदत में आ जाता है, लेकिन बाद में ऐसे लोगों को हाइ ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, स्थायी बहरापन, स्मरण शक्ति कमजोर हो जाना जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है. नवजात बच्चों और गर्भस्थ शिशुओं के विकास को ध्वनि प्रदूषण बुरी तरह प्रभावित करती है.

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निगम की गाड़ियों में लगा है प्रेशर हार्न

शहर में रोज निगम की दर्जनों गाड़ियां कूड़ा उठाती है. इनमें कचरा उठाने के लिए हाइवा और पानी खींचने के लिए सुपर सकर मशीन का इस्तेमाल होता है. इन गाड़ियों में प्रेशर हॉर्न लगा है. कई बार जाम लगे होने पर प्रेशर हार्न के इस्तेमाल से लोग परेशान हो जाते हैं.

ध्वनि का मानक

रिहायशी एरिया में – 40 डेसिबल
बाजार एरिया में – 60 डेसिबल
ध्वनि सुनने की क्षमता – 85 डेसिबल
वाहनों में लगे प्रेशर हॉर्न – 150 डेसिबल

मुजफ्फरपुर में पौने दस लाख वाहनों का है निबंधन

मुजफ्फरपुर में छोटे बड़े सभी वाहनों को मिलाकर करीब पौने दस लाख वाहनों का निबंधन है. इसमें 1.41 लाख कमर्शियल वाहन है. परिवहन विभाग का दावा है कि सड़कों पर वाहन जांच के दौरान प्रेशर हॉर्न को लेकर निरंतर जुर्माने की कार्रवाई की जाती है. लेकिन अब इसके जुर्माने की राशि में थोड़ा संशोधन हुआ है. क्योंकि परिवहन विभाग द्वारा प्रदूषण प्रमाण पत्र के नहीं होने पर जिस धारा के तहत जुर्माना किया जाता था, उसी धारा में उपधारा के तहत प्रेशर हॉर्न का भी जुर्माना होता था. एमवीआइ राकेश रंजन ने बताया कि बड़े गाड़ियों में प्रेशर हॉर्न लगता है जिस पर वाहन जांच के दौरान जुर्माने की कार्रवाई की जाती है. यह कार्रवाई लगातार चलती रहती है.

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