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अवैध तरीके से बच्च गोद लेने वालों पर होगी कार्रवाई

मुजफ्फरपुर: जिला बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) ने बच्चे गोद लेने मामले में एक अहम निर्णय लिया है. गोद लेने वाले दंपति को किशोर न्याय अधिनियम के तहत पूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा. इसके लिए कोई भी दंपति किसी बच्चे को हॉस्पिटल, किसी परिचित, गरीब परिवार से गोद लेते हैं. कुछ दंपति लावारिस व बेसहारा बच्चों […]

मुजफ्फरपुर: जिला बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) ने बच्चे गोद लेने मामले में एक अहम निर्णय लिया है. गोद लेने वाले दंपति को किशोर न्याय अधिनियम के तहत पूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा. इसके लिए कोई भी दंपति किसी बच्चे को हॉस्पिटल, किसी परिचित, गरीब परिवार से गोद लेते हैं.

कुछ दंपति लावारिस व बेसहारा बच्चों को गोद लेते हैं. लेकिन वे कानूनी प्रक्रिया को नहीं अपनाते हैं. ऐसे में उस बच्चे का भविष्य अंधकार में लटका रहता है. ऐसा करने वाले दंपति अब सतर्क हो जायें. इसको लेकर सीडब्ल्यूसी ने बैठक कर कड़ा कदम उठाने का निर्णय लिया है.

इसके तहत जो दंपति बच्चे को अवैध रूप से गोद ले रखे हैं, वह एक माह के भीतर सीडब्ल्यूसी के समक्ष बच्चे को लेकर उपस्थित हों. पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत गोद लें, ताकि भविष्य में बच्चे को कोई परेशानी न हो. यह निर्णय समिति अध्यक्ष संजय भाई, अधिवक्ता सह समिति सदस्य मो सफदर अली व वंदना शर्मा ने संयुक्त रूप से लिया. मो सफदर अली ने बताया, एक माह के भीतर अवैध रूप से गोद लेने वाले दंपति इसकी सूचना समिति को नहीं देते हैं, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जायेगी. इसके लिए समिति चाइल्ड प्रोवेशन ऑफिसर (सीपीओ), एनजीओ व अन्य माध्यम से मदद ले रही है. फिलहाल ऐसे कुछ मामलों की जानकारी समिति को मिली है और इसकी जांच चल रही है.

एक बच्ची पर तीन मां का दावा : हाल ही में समिति के समक्ष एक दूधमुहे बच्चे पर तीन मां ने दावा किया, लेकिन किसी ने मां होने का साक्ष्य उपलब्ध नहीं किया. अंत में समिति ने बच्चे को पटना पादरी के हवेली भेज दिया. यह बच्ची बखरी निवासी शालू मिश्र को 27 जनवरी 2014 को स्टेशन पर मिली. उसने बच्ची को अपने गांव की विरंजन देवी को दे दिया. उसने बच्चे को मीनापुर के रोहिणी देवी को दे दिया. अचानक दो माह बाद गोरखपुर की संगीता देवी उस बच्ची पर दावा करने पहुंची और अहियापुर थाने में शिकायत की. मामला समिति के पास पहुंचा, जहां विरंजन देवी, संगीता देवी व रोहिणी देवी ने बच्चे पर अपनी मां का दावा पेश किया. मगर किसी ने समिति के समक्ष कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया. ऐसे ही मामलों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया.

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