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परिवार के साथ छठ मनाने के लिए देश भर से पहुंच रहे लोग

मुजफ्फरपुर : लोक आस्था का महापर्व छठ. ऐसे में घर से दूर रहना संभव नहीं. देश के विभिन्न कोने में बसे शहर के लोग छठ के मौके पर घर आना नहीं भूलते.अन्य मौके पर वे भले ही नहीं आयें, लेकिन छठ तो परिवार के साथ ही मनायेंगे. ट्रेन में नो रूम के बाद भी लोग […]

मुजफ्फरपुर : लोक आस्था का महापर्व छठ. ऐसे में घर से दूर रहना संभव नहीं. देश के विभिन्न कोने में बसे शहर के लोग छठ के मौके पर घर आना नहीं भूलते.अन्य मौके पर वे भले ही नहीं आयें, लेकिन छठ तो परिवार के साथ ही मनायेंगे. ट्रेन में नो रूम के बाद भी लोग 24 से 36 घंटे तक किसी तरह सफर कर घर पहुंच रहे हैं. रविवार को मुजफ्फरपुर आने वाली विभिन्न ट्रेनों से हजारों लोग छठ के मौके पर घर आये. स्टेशन पर उतरने के साथ जल्दी घर पहुंचने की बेचैनी थी
तो शहर पहुंच कर संतुष्टि का भाव भी था. जंक्शन पर पवन, मौर्य, सप्तक्रांति, संपर्क क्रांति, ग्वालियर बरौनी, मिथिला, टाटा-छपरा सहित दर्जनों ट्रेनों से लोग यहां पहुंचे. इन लोगों से जब बातचीत की गयी, तो सभी ने कहा कि वे छठ पूजा में शामिल होने के लिए घर आये हैं. यहां कुछ लोगों से बातचीत रखी जा रही है.
साल में एक बार खुशियां मनाने का मौका
जयपुर से लौट रहे गोला रोड निवासी मनीष कुमार ने बताया कि वे जयपुर में एक बैंक में कार्यरत है. हर साल छठ पर्व में घर आते हैं. यह एक ऐसा पर्व है, जिसमें घर परिवार गांव सभी लोग आपस में मिलकर खुशियां बाटते हैं. उनके साथ लौट रही पत्नी अंकिता ने बताया कि पति के काम के वजह से वह गांव नहीं आ पाती है.
सिर्फ छठ में ही गांव आने का मौका मिलता है. साल भर छठ का इंतजार रहता है. परिवार के साथ पूजा होने से घर में उल्लास का माहौल रहता है. सभी लोगों से मुलाकात भी होती है. भले ही दूसरे मौकों पर घर नहीं लौट पायें, लेकिन छठ में घर से दूर रहना संभव नहीं है.
हर साल रहता है छठ का इंतजार
दिल्ली की एक कंपनी में पीआरओ के रूप में कार्यरत अखाड़ाघाट रोड निवासी प्रशांत कुमार ने बताया कि छठ पर्व का हर साल इंतजार रहता है. काम की वजह से बार-बार घर आने का मौका नहीं मिलता. छठ पर छुट्टी लेकर हर साल घर आते हैं. इसके लिए पहले से ही छुट्टी का आवेदन देते हैं. इस पर्व में घर से दूर रहना संभव नहीं है.
पत्नी वंदना व बेटा रेयांश भी घर नहीं आ पाते हैं. छठ पर परिवार के लोगों को इंतजार रहता है कि सब लोग यहां पहुंचे. जब तक घर नहीं पहुंचता हूं एक बेचैनी बनी रहती है. यहां पहुंच जाता हूं तो लगता है कि घर पहुंच गया. पर्व के मौके पर परिवार के अलावा दोस्तों से मिलने का मौका मिलता है.

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