मुंगेर. संन्यासपीठ पादुका दर्शन में चल रहे श्रीमद् देवी भागवत कथा के चौथे दिन गुरुवार को स्वामी गोविंद देव गिरी महाराज ने देवी आराधाना पर प्रकाश डालते हुए सभी पूजा व अनुष्ठान में नवरात्रि विधान को सर्वोत्तम बताया. कथा के दौरान वहां का वातावरण भक्तिमय और उल्लासपूर्ण हो गया. स्वामी गोविंद देव ने जोर देते हुए कहा कि देवी मां की साधना में मुख्य आवश्यकता है तीव्र संवेग अर्थात व्याकुलता की. व्यासदेव-जन्मेजय संवाद को रेखाकिंत करते हुए उन्होंने देवी साधना के प्रमुख अंग नवरात्रि व्रत की विशद व्याख्या की. उन्होंने बताया कि वर्ष में चार नवरात्रि होती है. लोग चैत्र और अश्विन नवरात्रियों के बारे में तो जानते है. लेकिन माघ और अषाढ में भी दो गुप्त नवरात्रि होती है. साधक को चाहिए कि इन चारों में नहीं तो वासंतिक और शारदीय नवरात्रि में नहीं तो कम से कम शारदीय नवरात्रि में व्रत का अनुष्ठान करें.अमावस्या के दिन ही व्रत की सभी तैयारियां कर ले. पंच गव्यों से शुद्ध किया गया पूजा स्थान सजा ले और व्रत के दौरान पूर्वनिर्धारित स्तोत्रों और मंत्रों का जप करे तथा अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार यथोचित उपवास करें. साथ ही अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार देवी मां की यथोचित पूजा सामग्री से आराधना करें. उन्होंने कहा कि अगर किसी कारणवश साधक संपूर्ण नवरात्रि का अनुष्ठान न कर सके तो केवल तीन दिन का कर ले. वह भी न हो सके तो अष्टमी के एक दिन का अनुष्ठान कर ले. व्यासदेव ने जन्मेजय से स्पष्ट कहा कि सभी पूजा पद्धतियों और अनुष्ठानों मं नवरात्रि विधान सवोत्तम है. इससे साधक की हर मनोकामना अवश्य पूरी होती है, इसलिए भक्तों और साधकों को नवरात्रि अनुष्ठान का अनुपालन अवश्य करना चाहिए. यह केवल शाक्त संप्रदाय वालों के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए है. चाहे वह शैव हो, वैष्णव हो या गणपत्य, क्योंकि शक्ति की उपासना तो सभी करते है.
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