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उच्चैठ में भक्तों की मुरादें होती हैं पूरी

शारदीय नवरात्र . 51 शक्तिपीठों में उच्चैठ भगवती स्थान भी है शामिल मधुबनी : बेनीपट्टी अनुमंडल मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम कोण में थुम्हानी नदी एवं पवित्र सरोवर के तट पर अवस्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती स्थान रामायण काल के पूर्व से ही भक्तों पर दया करनेवाली, चारों पुरुषार्थ अर्थात […]

शारदीय नवरात्र . 51 शक्तिपीठों में उच्चैठ भगवती स्थान भी है शामिल

मधुबनी : बेनीपट्टी अनुमंडल मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम कोण में थुम्हानी नदी एवं पवित्र सरोवर के तट पर अवस्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती स्थान रामायण काल के पूर्व से ही भक्तों पर दया करनेवाली, चारों पुरुषार्थ अर्थात धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रदान करनेवाली मानी जाती हैं. सालों भर मां के दरबार में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. नवरात्र में यहां मां के दर्शन को दूर दूर से लोग आते हैं.
नवरात्र में उमड़ती है भीड़
वैसे तो सिद्धपीठ मां उच्चैठ वासिनी दुर्गा के दरबार में सालों भर पड़ोसी मित्र राष्ट्र नेपाल, बिहार सहित देश के विभिन्न प्रदेशों के कोने कोने से भक्तजन पहुंच इनके चरणों में माथा टेकते हैं और भगवती की पूजा-अर्चना करते हैं, किंतु चैत्र, शारदीय और आषाढ़ नवरात्र के पावन मौके पर श्रद्धालुओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो जाती है. वैदिक मंत्रोच्चार एवं भक्तजनों की जयकारा से समूचा मंदिर परिसर सहित इलाका एक अलग तरह के आध्यात्मिक वातावरण में परिणत हो जाता है.
सिंह पर सवार स्वर वनदुर्गा उच्चैठ भगवती की ढ़ाई फीट की कलात्मक प्रतिमा जो गदा, चक्र, शंख एवं पद्य को धारण की हुई है, जिनके चरणों के बायां भाग में मौजूद मछली प्रतिमा का प्रतीक है, तो चरण के दायें भाग नीचे ब्रह्मा जी के प्रतिमा का प्रतीक है, जिनके शीर्ष पर अनमोल रत्न जड़ित अमूल्य मणियों से बना मुकुट शोभायमान है,
श्यामली वर्ण और विशाल नेत्रों वाली शुभलोचना चार भूजा वाली हैं. जिनकी पूजा-अर्चना हजारों-हजार वर्ष पूर्व से यहां की जा रही है. किंवदंति है कि पुरुषोत्तम राम भी उच्चैठ में भगवती दुर्गा की पूजा किये हैं. उच्चैठ भगवती के संबंध में कहा जाता है कि राजा जनक की यज्ञ भूमि उच्चैठ स्थान है और उन्हें वरदान भी यहीं से मिला था. राम, लक्ष्मण एवं विश्वामित्र को दुर्गा के दर्शन भी यहीं हुए थे. नरलीला के लिए उच्चैठ वासिनी ही यहां सीता रूप में विराजमान रही हैं और पांचों पांडवों को उच्चैठ भगवती का आशीर्वाद मिला.
कालीदास को मिला ज्ञान
महाकवि विद्यापति, गोनू झा, महर्षि कपिल, कणाद, गौतम, जेमिनी, विभांडक, पुण्डरीक ऋषि, श्रृंगी ऋषि, लोमस ऋषि, पिपलाद मुनि, याज्ञवल्क्य, सतानंद का साधना स्थान उच्चैठ ही रहा है. आदि शंकराचार्य नेपाल जाने के क्रम में उच्चैठ में रूककर भगवती की पूजा किये थे. यह भगवती महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती का एकात्मक प्रतीक है. कालिदास को ज्ञान की प्राप्ति उच्चैठ भगवती से ही हुआ. कालिदास के नाम से अभी भी एक डीह यहां विद्यमान है.
जहां आज भी प्राथमिक संस्कृत स्कूल है. कहा जाता है कि कालिदास डीह की मिट्टी का उपयोग जो लोग अपने बच्चे के मुंडन व उपनयन संस्कार एवं कुल देवता की स्थापना में करते हैं उनके बच्चे की तेजस्विता कालिदास जैसे ही हो जाती है. कालिदास से संबंधित एक बड़ा भूखंड अभी भी यहां मौजूद है.
जो सरकारी उपेक्षा का शिकार है. इस बीच यहां की डीएसपी निर्मला कुमारी इस संस्कृत प्राथमिक विद्यालय को गोद लेकर हर दिन एकबार दस्तक देकर छात्रों एवं यहां के शैक्षणिक सहित सभी तरह के प्रगति और बदलाव की समीक्षा करती हैं.
भगवान राम, पांडव भी कर चुके हैं मां की पूजा
उच्चैठ भगवती स्थान स्थित मां दुर्गा की प्रतिमा एवं मधेपुर के लक्ष्मीपुर चौक पर मां का दर्शन करते श्रद्धालु.
आिदकाल से शक्ति उपासना में िमथिला अग्रणी
महामाया देवी के संबंध में प्रकाशित कई पुस्तकों में वर्णित तथ्यों के अनुसार भारत के कुल 51 शक्तिपीठों में उच्चैठ वासिनी सतरहवां शक्तिपीठ है. आदि काल से ही मिथिला शक्ति उपासना में अग्रणी रहा है. उच्चैठ भगवती वह अवतार है जिनका प्रभाव तत्काल ही भक्तों पर पड़ता है.

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