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शिव-पार्वती के आध्यात्मिक प्रेम समर्पण का प्रतीक है तीज

मधेपुरा : हरतालिका तीज व्रत के बारे में सिंहेश्वर मंदिर के पंडित कलानंद ठाकुर बताते है कि यह व्रत पार्वती के शिव को प्राप्त करने की कथा है. विवाहित स्त्रियां भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाये जाने वाले इस व्रत के द्वारा मां पार्वती के कठोर तप का अनुसरण करते हुए […]

मधेपुरा : हरतालिका तीज व्रत के बारे में सिंहेश्वर मंदिर के पंडित कलानंद ठाकुर बताते है कि यह व्रत पार्वती के शिव को प्राप्त करने की कथा है. विवाहित स्त्रियां भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाये जाने वाले इस व्रत के द्वारा मां पार्वती के कठोर तप का अनुसरण करते हुए चौबीस घंटे निर्जला रह कर उपवास करती है.

कहते है कि मां पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अधोमुखी हो कर कठोर तप किया. इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया. काफी समय उन्होंने सूखे पत्ते चबा कर काटा. फिर कई वर्षों तक केवल हवा के सहारे ही जीवित रहीं. मां पार्वती की स्थिति देख उनके पिता काफी दुखी थे.

इस दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे. पिता ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया. पिता ने जब यह बात मां पार्वती को बतायी तो वह दुखी हो कर जोर – जोर से विलाप करने लगी. फिर एक सखी के पूछने पर उन्होंने बताया कि यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रहीं है. जबकि पिता उनका विवाह विष्णु से करना चाहते है. तब सहेली की सलाह पर मां पार्वती घने वन में जा कर एक गुफा में भगवान शिव की आराधना में लीन हो गयी.

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