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अंग, बंग व मिथिला के मध्य में अवस्थित होने के कारण कहलाता है मध्यपुरा

मधेपुरा : बीहड़ जंगलों एवं कोसी की छाड़न नदियों से आच्छादित गंगा का समस्त उत्तरी भू-भाग आर्यों के आगमन से पूर्व ब्रात्यों का निवास स्थल रहा था. दीर्घ काल तक आर्य इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर पाये. अंग के ब्रात्यों से लोहा लेना भी आर्यों के बलबूते के बाहर की बात थी. कालांतर में […]

मधेपुरा : बीहड़ जंगलों एवं कोसी की छाड़न नदियों से आच्छादित गंगा का समस्त उत्तरी भू-भाग आर्यों के आगमन से पूर्व ब्रात्यों का निवास स्थल रहा था. दीर्घ काल तक आर्य इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर पाये. अंग के ब्रात्यों से लोहा लेना भी आर्यों के बलबूते के बाहर की बात थी. कालांतर में अपनी समन्वयवादी प्रवृति के बल पर आर्यों ने यहां फैलना आरंभ किया और इस पूर्वी भाग में अपना वर्चस्व स्थापित करते हुए शनै: शनै: रामायण काल में प्रवेश किया.

रामायण काल . रामायण काल में इस भूखंड की पहचान ऋषि श्रृंग आश्रम से आरंभ होता है. यह आश्रम वर्तमान सिंहेश्वर स्थान में कोसी के तट पर अवस्थित था. ऋृष्य श्रृंग महात्मा विभांडक के पुत्र थे. अंग के राजा रोमपाद की पुत्री शांता उनकी पत्नी थी. चिकित्सा शास्त्र में गहरी पैठ होने के कारण ऋृष्य श्रृंग ने राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ किया था. सप्त पोखड़ में हवन कुंड बनाया गया था, जो आज सिंहेश्वर से पश्चिम सतोखड़ गांव के नाम से जाना जाता है. तीनों रानियों ने चार पुत्रों – राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न को जन्म दिया था.
महाभारत काल . महाभारत काल में पांडवों के वनवास के समय लोमश ऋषि के साथ धर्मराज युद्धिष्ठिर ऋषि श्रृंग आश्रम में पधारे थे. उस समय आश्रम में लगभग दस हजार छात्र भोजन-वस्त्र सहित नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त किया करते थे.
विदेह भूमि . प्रारंभ में उत्तर में नेपाल तक, दक्षिण में गंगा किनारे तक, पूरब में अंग की राजधानी चंपा के अरण्य भाग तक तथा पश्चिम में गंडकी तट तक फैले कोसी के इस भू-भाग को ”विदेह भूमि” के नाम से सदियों तक जाना जाता रहा. यही कारण है मिथिला के राजा जनक को भी विदेह कहा जाता रहा है.
कौशिकी कक्ष . कालांतर में महाभारत काल, बौद्धकाल आदि से गुजरता हुआ यह भू-भाग कोसी की छाड़न नदियों से आच्छादित ही रहा और कौशिकी कक्ष का स्वरूप लिए विभिन्न परिवर्तनों से गुजरता रहा.
विभिन्न वंशों का सूर्योदय व सूर्यास्त .
इस इलाके में कमश: कुषाण वंश, गुप्त वंश, पालवंश आदि का क्रमश: सूर्योदय एवं सूर्यास्त होता चला जाता है. तब यह क्षेत्र इस प्रकार निशंकपुर परगना में तब्दील होता है.
निशंकपुर परगना . अन्त में जब बंगाल के सेन शासक एवं मिथिला के कर्नाट शासक के बीच इस भूखंड को पाने के लिए युद्ध होता है तो उस युद्ध में बंगाल के सेन शासक विजय सेन के पुत्र बल्लाल सेन की विजय होती है. विजयोपरांत वल्लाल सेन को उनके पिताश्री द्वारा ‘निशक शंकर’ की उपाधि से सम्मानित किया जाता है. बारहवीं शताब्दी के मध्य में वल्लाल सेन इस उपाधि को चिरायु रखने के लिए इस विशाल भू-भाग का नाम ‘निशंकपुर परगना’ रख देता है.
मध्यपुरा यानी मधेपुरा . बाद में निशंकपुर परगना का मुख्यालय बनाया गया – इस विशाल भू-भाग के मध्य अवस्थित ‘मध्यपुरा’ को, जो बीहपुर-वीरपुर सड़क के मध्य अवस्थित है, जिसे कालक्रम में लोगों द्वारा ‘मधेपुरा’ के नाम से पुकारा जाने लगा. यह भी गौरतलब है कि मधेपुरा आज भी अंग, बंग एवं मिथिला की सीमा से सौ किमी की दूरी पर मध्य में अवस्थित है.
अकबर का शासनकाल. अकबर के शासनकाल (1556-1604) में ‘मधेपुरा’ एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन चुका था. राजा टोडरमल ने 1582 ई में इस क्षेत्र को कई परगनों में विभक्त कर जमीन की पैमाइश कराकर मालगुजारी भी लागू की थी. संपूर्ण सूबा को विभिन्न सरकारों में तथा सरकार को विभिन्न महालों में विभक्त कर दिया गया था.
बंगाल प्रेसिडेंसी में मधेपुरा अनुमंडल की स्थापना .कालांतर में बंगाल प्रेसिडेंसी द्वारा प्रशासनिक दृष्टिकोण से आवश्यक समझते हुए भागलपुर जिले के इसी उत्तरी भू-भाग में एक नये अनुमंडल की स्थापना की गई. जिसका मुख्यालय मधेपुरा को बनाया गया. स्मरण रहे मधेपुरा अनुमंडल की स्थापना – तीन सितंबर, 1845 (बुधवार) के दिन हुई थी.

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