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नगर परिषद केवल कहने को है या कुछ करता भी है?

शहर के किसी भी बाजार में कहीं भी महिला शौचालय की तो छोड़िए पुरुष भी खुले में होते हैं लघुशंका से निवृत्त मधेपुरा : नगर परिषद का मुख्य कार्य नगरवासियों को नगरीय सुविधा मुहैया कराना है. उन्हें शुद्ध पेयजल मिले. बेहतर कचरा प्रबंधन मिले, सड़कें साफ-सुथरी हों और रात में पर्याप्त रोशनी हो. टहलने के […]

शहर के किसी भी बाजार में कहीं भी महिला शौचालय की तो छोड़िए पुरुष भी खुले में होते हैं लघुशंका से निवृत्त

मधेपुरा : नगर परिषद का मुख्य कार्य नगरवासियों को नगरीय सुविधा मुहैया कराना है. उन्हें शुद्ध पेयजल मिले. बेहतर कचरा प्रबंधन मिले, सड़कें साफ-सुथरी हों और रात में पर्याप्त रोशनी हो. टहलने के लिए पार्क हो. सार्वजनिक शौचालय हों. आवागमन के लिए चौड़ी सड़कें हों आदि और भी कई कार्य हैं. मधेपुरा में नगर परिषद क्या कार्य करता है यह समझ से परे है. अब सार्वजनिक शौचालय की ही बात करें. न जाने कितनी ही बार इस मुद्दे पर अखबारों में खबरें बार-बार प्रकाशित हुई.
कई लोगों ने डीएम सहित स्थानीय निकाय से मिल कर इसके लिए गुजारिश की, लेकिन शहर में कहीं भी सार्वजनिक शौचालय नहीं बनाये गये. पूछने पर ले-देकर बस स्टैंड के शौचालय का हवाला दे दिया जाता है. गत वर्ष शहर की महिलाओं ने खास महिला शौचालय बनाने का मुद्दा भी उठाया, लेकिन पता नहीं मामला कहां अटक गया. लगातार असंवेदनशील व्यवहार प्रशासन द्वारा किया जा रहा है और लोग चुपचाप मौन हो कर सारी स्थिति को झेल रहे हैं.
मधेपुरा की स्त्रियां अभिशप्त क्यों
खरीदारी करने में महिलाओं को आगे माना जाता है. कपड़े की दुकान हो या गहनों की दुकानें. महिलाओं की भीड़ इन दुकानों पर लगी रहती है, लेकिन विडंबना है कि बाजार का ये मुख्य खरीदार व्यापारी, जनप्रतिनिधि व प्रशासन की उपेक्षा बरर्दाश्त करने पर विवश है. बाजार में इनके लिए कोई सुविधा नहीं. अगर किसी महिला को खरीदारी के दौरान नैचुरल कॉल (मल-मूत्र) आ जाये, तो उसे किसी के घर की शरण लेनी होगी या इस अपने शरीर पर अत्याचार सहन करना पड़ता है.
शहर में मिहलाओं के लिए कहीं भी न तो मूत्रालय बनाये गये हैं और न ही शौचालय: नगर परिषद में 26 वार्ड हैं. इनमें से 17 वार्ड की पार्षद पर आधी आबादी काबिज हैं. नगर परिषद के किसी निर्णय को इनकी सहमति के बगैर पारित नहीं किया जा सकता. अब इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि आधे से कहीं अधिक वार्ड में महिला जनप्रतिनिधि होने के बाद भी महिलाओं से जुड़े इस संवेदनशील बिंदु पर कहीं कोई चर्चा नहीं होती. इससे यह समझा जा सकता है महिलाओं का प्रतिनिधित्व कितना छद्म है. गत के वर्षों में कई बार शहर में शौचालय व मूत्रालय नहीं होने के मुद्दे को समाचारपत्रों में उठाया जाता रहा है. हर बार पदाधिकारी यहीं कहते रहे हैं कि कुछ ही माह में निर्माण शुरू हो जायेगा, लेकिन होता कुछ नहीं. यह नाटक गत एक दशक से चल रहा है.
पड़ोसी शहर से लें सीख
मधेपुरा से महज 36 किलोमीटर दूर है सुपौल शहर. इस शहर में अन्य व्यवस्थाओं को दरकिनार भी कर दें और केवल सार्वजनिक शौचालय की बात करें तो रात में भी सफेद रोशनी से लिखा हुआ दिखता है सार्वजनिक शौचालय. बिल्कुल साफ-सुथरा शौचालय. यहां केवल गांधी मैदान के आसपास ही तीन सार्वजनिक शौचालय हैं. व्यवहार न्यायालय, रजिस्ट्री कार्यालय आने वाले स्त्री व पुरुषों के यह किसी वरदान की तरह है. इसके अलावा साफ और स्वच्छ व चौड़ी सड़कें व उनके किनारे लगे स्टील के डस्टबीन आप जरूर प्रभावित करेंगे. क्यों इस 36 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसा शहर भी है जहां शहर को लगभग अच्छी स्थिति में कहा जा सकता है.
शहर में जगह की तलाश की जा रही है. हालांकि निर्माणाधीन बस स्टैंड पर शौचालय बनाया जा रहा है. वहीं पुराने बस स्टैंड पर भी शौचालय है. जगह मिलते ही ही अन्य जगहों पर भी शौचालय बनाया जायेगा.
मनोज कुमार पवन, नप कार्यपालक पदाधिकारी, मधेपुरा

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