किशनगंज . कालाज़ार को चिकित्सा की भाषा में विसरल लीशमैनियासिस कहा जाता है, यह बीमारी बिहार, झारखंड में सक्रिय है. यह रोग एक विशेष प्रकार की बालू मक्खी के काटने से फैलता है. इसके लक्षणों में लंबे समय तक चलने वाला बुखार, वज़न घटना, कमजोरी, तिल्ली और यकृत का बढ़ना प्रमुख हैं. समय रहते पहचान और इलाज नहीं होने पर यह रोग जानलेवा भी हो सकता है. हालांकि, चिकित्सा विज्ञान में आई प्रगति के चलते अब इसका प्रभावी और सस्ता इलाज संभव हो गया है. बिहार के सीमावर्ती ज़िलों में कालाज़ार जैसी जानलेवा बीमारी के उन्मूलन को लेकर लगातार प्रयास जारी हैं. इसी क्रम में किशनगंज जिले के बहादुरगंज स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य चिकित्सकों और पारा मेडिकल कर्मियों को एमविशम आधारित उपचार पद्धति से प्रशिक्षित करना था. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में पीएचसी टेढ़ागाछ और सीएचसी बहादुरगंज से आये चिकित्सा पदाधिकारी एवं पारा मेडिकल कर्मी सम्मिलित हुए. प्रशिक्षण का संचालन डब्ल्यूएचओ के जोनल कोऑर्डिनेटर डॉ. दिलीप कुमार ने किया. उन्होंने कहा कि कालाज़ार को जड़ से मिटाने के लिए जरूरी है कि हम उसके प्रत्येक संदिग्ध लक्षण की समय पर पहचान करें और एमविशम जैसे प्रभावी उपचार को प्राथमिकता दें. डॉ. मंज़र आलम ने भी कालाज़ार के जिले में फैलाव और प्रबंधन पर अपना अनुभव साझा किया. उन्होंने बताया कि जिले के अधिकांश प्रखंडों में सक्रिय निगरानी दल गठित किया गया है. सामुहिक सहयोग से होगा कालाजार उन्मूलन. सिविल सर्जन डॉ राज कुमार चौधरी ने कहा कि कालाज़ार जैसे रोग के खिलाफ लड़ाई अकेले किसी विभाग की नहीं है. इसमें डॉक्टर, नर्स, एएनएम,एएसएचए कार्यकर्ता से लेकर आम जनता तक की भागीदारी आवश्यक है. एमविश्जम सी सुरक्षित दवा का उपयोग कर हम इस बीमारी को जिले से पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं. उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि सभी चिकित्सा संस्थानों में कालाज़ार के लक्षणों को लेकर सतर्कता बरती जाए और हर संदिग्ध मामले की तुरंत जांच कराकर इलाज शुरू किया जाय. इस प्रशिक्षण से जुड़े प्रतिभागियों ने भी इसे बेहद उपयोगी बताते हुए कहा कि उन्हें रोग की पहचान, उपचार पद्धति, रोगी प्रबंधन और फॉलोअप जैसे तमाम पहलुओं पर गहन जानकारी प्राप्त हुई. वेक्टर जनित रोग नियंत्रण प्रकोष्ठ के अविनाश राय ने कहा कि आईईसी गतिविधियों के जरिए आमजन को कालाज़ार के लक्षणों एवं बचाव के तरीकों की जानकारी दी जा रही है. गांव-गांव जाकर बालू मक्खी के प्रजनन क्षेत्रों की पहचान कर स्प्रे आदि की कार्रवाई की जा रही है.
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