मृत डेढ़ साल के बच्चे के शव को हाथ में रख पोस्ट मार्टम रूम पहुंचे पिता किशनगंज.यह दृश्य आपके दिल को झकझोर देगा.एक पिता,जिसकी गोद में उसके डेढ़ साल के मासूम बच्चे का शव है, उसे पोस्टमार्टम के लिए ले जा रहा है. यह मार्मिक दृश्य सदर अस्पताल का है. सरकार भले ही स्वास्थ्य सुविधाओं के बड़े-बड़े दावे करे, लेकिन यह तस्वीर उन दावों की कड़वी सच्चाई बयां करती है. किशनगंज शहर के मारवाड़ी कॉलेज के पास फुलवाड़ी में रहने वाले गरीब मजदूर सनोज महतो का डेढ़ वर्षीय बेटा मंगलवार सुबह करीब साढ़े आठ बजे एक दर्दनाक हादसे का शिकार हो गया. मारवाड़ी कॉलेज के समीप एक कार ने मासूम को अपनी चपेट में ले लिया. हादसे के तुरंत बाद, कार चालक और स्थानीय लोगों ने बच्चे को फौरन एमजीएम मेडिकल कॉलेज पहुंचाया. लेकिन, नियति को कुछ और ही मंजूर था. डॉक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया. एक पिता का दिल टूट गया, और उसकी दुनिया उजड़ गई. मृत बच्चे के शव को पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल लाया गया. लेकिन यहां जो हुआ, वह इंसानियत को शर्मसार करने वाला था. सदर अस्पताल प्रशासन इतना असंवेदनशील निकला कि सनोज को अपने बच्चे के शव को ले जाने के लिए एक स्ट्रेचर तक नहीं दिया गया. मजबूरन, सनोज को अपने मासूम के शव को गोद में लेकर मोर्चरी तक जाना पड़ा. यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, और लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है.सवाल उठ रहे हैं.क्या गरीब की जान इतनी सस्ती है? क्या सदर अस्पताल जैसी सरकारी संस्थाएं अपनी जिम्मेदारी भूल चुकी हैं? एक स्ट्रेचर तक उपलब्ध न करवाना, क्या यह लापरवाही नहीं, बल्कि ओअमानवीयता है? इसपर सिविल सर्जन ने बताया कि मामला संज्ञान में आया है ऐसा हुआ है तो गलत है, आइंदा ऐसी गलती न दोहराई जाएगी ऐसी उम्मीद है. सनोज जैसे गरीब मजदूर, जो दिन-रात मेहनत कर अपने परिवार का पेट पालते हैं, उनके लिए यह हादसा और अस्पताल की कुव्यवस्था दोहरी मार है. यह कहानी सिर्फ सनोज की नहीं, बल्कि उन लाखों गरीबों की है, जो सरकारी तंत्र की उदासीनता का शिकार होते हैं. यह दृश्य हमें सोचने पर मजबूर करता है. आखिर कब तक गरीब की लाचारी को अनदेखा किया जाएगा? कब तक सरकारी अस्पतालों की कुव्यवस्था मासूमों की जान लेती रहेगी? यह समय है सवाल उठाने का, जवाब मांगने का और बदलाव लाने का.स्वास्थ्य महकमा अपनी कथित उपलब्धियों को बताने में जरा भी परहेज नहीं करती. लेकिन हकीकत इससे उल्ट है. जिला प्रशासन के निरीक्षण में सब कुछ ठीक मिलता है क्योंकि सदर अस्पताल को निरीक्षण की सूचना पूर्व में ही मिल जाती है और किशनगंज सदर अस्पताल की कुव्यवस्था ढकी रह जाती है. यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है और लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है. सवाल उठ रहे हैं. क्या गरीब की जान इतनी सस्ती है? क्या सदर अस्पताल जैसी सरकारी संस्थाएं अपनी जिम्मेदारी भूल चुकी हैं? एक स्ट्रेचर तक उपलब्ध न करवाना, क्या यह लापरवाही नहीं, बल्कि ओअमानवीयता है? इसपर सिविल सर्जन ने बताया कि मामला संज्ञान में आया है ऐसा हुआ है तो गलत है, आइंदा ऐसी गलती न दोहराई जाएगी ऐसी उम्मीद है. सनोज जैसे गरीब मजदूर,जो दिन-रात मेहनत कर अपने परिवार का पेट पालते हैं, उनके लिए यह हादसा और अस्पताल की कुव्यवस्था दोहरी मार है. यह कहानी सिर्फ सनोज की नहीं, बल्कि उन लाखों गरीबों की है, जो सरकारी तंत्र की उदासीनता का शिकार होते हैं. यह दृश्य हमें सोचने पर मजबूर करता है. आखिर कब तक गरीब की लाचारी को अनदेखा किया जाएगा? कब तक सरकारी अस्पतालों की कुव्यवस्था मासूमों की जान लेती रहेगी? यह समय है सवाल उठाने का, जवाब मांगने का,और बदलाव लाने का. स्वास्थ्य महकमा अपनी कथित उपलब्धियों को बताने में जरा भी परहेज नहीं करती. लेकिन हकीकत इससे उल्ट है. जिला प्रशासन के निरीक्षण में सब कुछ ठीक मिलता है क्योंकि सदर अस्पताल को निरीक्षण की सूचना पूर्व में ही मिल जाती है और किशनगंज सदर अस्पताल की कुव्यवस्था ढकी रह जाती है.
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