सरायगढ़ मनुष्य को अहंकारी नहीं होना चाहिए. अहंकारी व्यक्ति का सर्वदा विनाश ही होता है. मनुष्य को झूठ, चोरी, नशा, व्यवविचार, हिंसा आदि पांच पाप कर्मों से बचना चाहिए. अहंकारी व्यक्ति समाज में आगे नहीं बढ़ता है. सत्संग प्रवचन सुनने से ही मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है. प्रत्येक दिन कुछ समय निकालकर ईश्वर का भक्ति करना चाहिए. उक्त बातें दो दिवसीय सदगुरु सत्संग प्रवचन के समापन के दिन सरायगढ़ रेलवे स्टेशन के बगल में मां दुर्गा मंदिर परिसर में बुधवार को पूज्य पाद महर्षि चतुरानंद जी महाराज ने कही. उन्होंने कहा कि मनुष्य के दुःखों का कारण दूसरे की आलोचना, द्वेष, और भागदौड़ भरी जिंदगी है. इससे बचने के लिए आपसी सहयोग, प्रेम, कर्म और विश्वास करना चाहिए. संसार में प्रत्येक जीव जंतु किसी न किसी रूप में शांति की तलाश में लगा रहता है. मनुष्य अपने जीवन में सुख दुःख,वलाभ हानि, आशा निराशा के बीच निरंतर एक स्थाई शांति की खोज करते रहता है. शांति सभी को आवश्यक है. उन्होंने कहा कि जो मनुष्य वेदों और पुराणों में वर्णित जीवनशैली को अपनाता है. उसमें दिये गये तत्वों पर अपने आप को केन्द्रित करता है. उसके जीवन में कोई भी दुःख तकलीफ नहीं होती है. वहीं स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने प्रवचन में कहा कि जो मनुष्य सत्संग के रास्ते पर चलता है. वहीं सही मायने में उस परमपिता परमेश्वर को प्राप्त कर सकता है. संसार में मनुष्य अनेक साधनाओं, कर्मकांड, और भौतिक उपक्रमों से शांति पाने का प्रयास करता है. परंतु स्थाई शांति केवल आध्यात्मिक साधना से ही मिल सकती है. वहीं स्वामी लीलानंद जी महाराज ने कहा कि सदैव मनुष्य की आंतरिक साधना, सदाचार, सत्य और परोपकार बहुत ही जरूरी है. जीवन में उच्च विचार, सरलता, विनम्रता और सत्य की राह अपनाने से ही मन पवित्र होता है. शाही शरण जी महाराज ने कहा कि मनुष्य को चाहिए कि वह अपने दैनिक कार्यों करते हुए भी कुछ समय इश्वर की भक्ति, ध्यान और नाम सुरमित करना चाहिए. सत्संग प्रवचन को स्वामी नवल किशोर जी महाराज, विप्रा नंद जी महाराज, अयोधी बाबा मोती बाबा, राजेंद्र बाबा ने अपने अपने विचार व्यक्त किए. संत्संग प्रवचन सुनने को लेकर दूर दराज से भक्तों पहुंचकर आनंद लिए. आयोजन समिति के सदस्यों ने बताया कि यह संतमत सत्संग पूरे गांव के सहयोग से सफल कार्यक्रम हुआ है.
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