गौरव कुमार, किशनगंज
लोकआस्था के महापर्व छठ पर्व पर बांस से बना डाला, सूप का विशेष महत्व है. किशनगंज शहर के खगडा स्टेडियम रोड में इसे बनाने वाले सैकड़ों कारीगर दिन रात इसे तैयार करते नजर आ रहे हैं. दरअसल किशनगंज और आसपास के इलाकों में बांस को व्यापक पैमाने पर उगाया जाता है. यहां के बांस से बनी टोकरियां अपनी मजबूती और खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसके चलते इनकी मांग देश- विदेश में है. यहां छपरा, पूर्णिया सहित कई जिलों के कारीगर दुर्गा पूजा समाप्त होने पर किशनगंज पहुंच जाते है और छठ के खरना पर्व तक छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाली टोकरी, सूप व डाला बनाते है. थोक व्यापारी इसे इसे यहां से खरीदकर देश के अन्य राज्यों और विदेश में भी सप्लाई कर देते है. इनकी मांग दिल्ली, मुंबई से लेकर मॉरीशस, अमेरिका जैसे देशों में भी है. छठ पूजा के दौरान बांस की टोकरियों की मांग हर साल बढ़ रही है. ये टोकरियां पूजा सामग्री को व्यवस्थित करने और सूर्य भगवान को अर्घ्य देने में आवश्यक है.क्या कहते है कारीगर
कारीगर संजीव कुमार, राजीव, यमुना महतो, रवि कुमार, रत्न महतो, रामू महतो सहित अन्य कारीगरों ने बताया कि इस साल बांस की कीमतों में इजाफा हुआ है और टोकरी की मांग भी बढ़ी है. इस वजह से इनकी कीमतों में भी बढ़ोतरी हुई है. इस साल छोटी टोकरी की कीमत 120 रुपये और बड़ी टोकरी की कीमत 140 रुपये रखी गई है. जबकि पिछले साल छोटी टोकरी 80 रुपये और बड़ी टोकरी 100 रुपये में बिक रही थी. कारीगरों ने बताया कि पांच सात हजार टोकरी बनाते है और अब एक लाख के आसपास टोकरी बना चुके है. सड़क किनारे रहकर टोकरी बनाने वाले कारीगरों का मानना है कि इन्हें सुविधाओं की काफी कमी है. टोकरी खरीदने आए एक व्यापारी ने बताया कि वे थोक में टोकरियां खरीदकर पटना और दिल्ली जैसे शहरों में ले जाते हैं, जहां से इन्हें विदेशों में भेजा जाता है. किशनगंज की टोकरियों की गुणवत्ता और हस्तशिल्प की वजह से इनकी मांग वैश्विक स्तर पर बढ़ रही है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

