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होलिका दहन में गेहूं के बालियों की दी जाती है आहुति

घर-घर में होली त्योहार मनाने की तैयारी अंतिम चरण में हैं. हर वर्ग के लोग इसकी तैयारी में जुटे हुए हैं.

खगड़िया. घर-घर में होली त्योहार मनाने की तैयारी अंतिम चरण में हैं. हर वर्ग के लोग इसकी तैयारी में जुटे हुए हैं. फगुआ गीतों से माहौल मदमस्त हो चुका है. जोगीरा सारा रा की धूम चारों तरफ सुनाई दे रही हैं. नवविवाहिता अपने पिया की आस में पलकें बिछाई हुई है. गांव में होली की परंपरा आज भी विद्यमान हैं. होलिका दहन के साथ गेहूं की बालियों की आहुति देने की परंपरा सदियों पुरानी है. फाल्गुन मास की शुरुआत ओर नए धान, एवं गेहूं की पैदावार घर घर में खुशियां लेकर आती हैं. घर में सुख- समृद्धि की कामना के लिए होलिका दहन में गेहूं की बालियों की आहुति दी जाती हैं. मान्यता है कि पहली फसल का पहला गेहूं ईश्वर ओर पूर्वजों को भेंट करने से पूरे साल घर में पूर्वजों के आशीर्वाद से सुख, शांति और समृद्धि बनीं रहती हैं. होलिका दहन का समय संसारपुर गांव निवासी पंडित अजय कांत ठाकुर ने बताया कि मिथिला पंचांग के मुताबिक होलिका दहन 13 मार्च रात्रि 10.47 मिनट के बाद किया जायेगा. 14 मार्च को कुल देवी देवताओं को सिंदूर अर्पण के बाद होली मनाई जायेगी, लेकिन कुछ जगहों पर, 15 मार्च को होली मनाई जायेगी. साथ ही उसी दिन डोरा पूजा प्रारंभ होगा. जानकार लोगों की माने तो होली का पर्व कुछ जगहों पर पूर्णिमा तो कई जगहों पर पूर्णिमा के सुबह खेलने की पुरानी परंपरा है. सात बालियों की आहुति होलिका दहन के समय सभी लोगों द्वारा अग्नि में गेहूं की सात बालियों की आहुति दी जाती हैं. मान्यताओं में सात अंक शुभ माना जाता है. इसलिए सप्ताह में सात दिन ओर विवाह में सात फेरे होती हैं. इसी वजह से गेहूं की सात बालियों को होलिका दहन में आहुति दी जाती हैं.

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