कटिहार लगातार बढ़ रही ठंड ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है. एक ओर लोग गर्म कपड़ों व अलाव के सहारे ठंड से बचने की कोशिश कर रहे हैं. दूसरी ओर दिहाड़ी मजदूरों के लिए यह मौसम रोजी-रोटी का सबसे बड़ा संकट बनकर सामने आया है. ठंड के कारण कामकाज ठप पड़ गया है. इसका सीधा असर मजदूरों की आमदनी पर पड़ा है. सुबह से शाम तक मजदूर चौक-चौराहों, बाजारों और निर्माण स्थलों के आसपास खड़े रहकर काम मिलने का इंतजार करते हैं. अधिकतर दिन उन्हें निराशा ही खाली हाथ घर लौटना पड़ रहा है. शहरी व ग्रामीण इलाकों में निर्माण कार्य, ईंट-भट्ठा, खेतों से जुड़े मजदूरी का काम और छोटे-मोटे ठेकेदारों के कार्य ठंड के कारण लगभग अभी बंद पड़े हुए हैं. ठेकेदार और मकान मालिक ठंड का हवाला देकर काम रुकवा दिया है. दिहाड़ी मजदूरों के सामने जीवन-यापन की गंभीर समस्या खड़ी हो गयी है. काम की तलाश में पहुंचे मिथुन पंडित, आसिफ आलम, सुशील मंडल, अनिल रविदास, अब्दुल रहमान, अजय पोद्दार, इंद्रजीत, राजेंद्र दास, असलम, मनोज साह, उपेंद्र मंडल, अजय परिहार आदि मजदूरों ने बताया कि पहले रोज कुछ न कुछ काम मिल जाता था. लेकिन जब से ठंडी आयी है कई-कई दिनों तक मजदूरी नहीं मिल पा रही है. रोज कमाने और खाने वाले इन परिवारों के लिए एक दिन की मजदूरी बेहद अहम होती है. काम नहीं मिलने की स्थिति में बच्चों की पढ़ाई, घर का राशन, दवा और अन्य जरूरी खर्चों की चिंता लगातार सताती रहती है. मजदूरों ने बताया की ठंड में न केवल काम की कमी है, बल्कि ठंड से बचने के लिए अतिरिक्त खर्च भी बढ़ गया है. गर्म कपड़े तो दूर तीन वक्त का खाना जुटाना भी अभी के मौसम में इनके लिए आसान नहीं है. सुबह से लेकर दोपहर तक काम के आस में चौक चौराहों पर रहते खड़े सुबह के समय मजदूर अपने औजार लेकर अपने तय स्थानों पर पहुंच जाते हैं. ठिठुरती ठंड में घंटों इंतजार करने के बावजूद जब कोई काम देने नहीं आता, तो मायूस चेहरे लिए वे वापस लौट जाते हैं. सुबह से लेकर दोपहर तक इस आस में रहते हैं कि कोई तो आ जाए और उन्हें काम दे दें. लेकिन ऐसा नहीं होता. कई मजदूरों का कहना है कि ठंड में शरीर जवाब देने लगता है. मजबूरी ऐसी है कि इंतजार करना ही पड़ता है. ग्रामीण क्षेत्रों में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं. खेतों में काम सीमित हो गया है, और जो थोड़ा बहुत काम है. वह भी ठंड के कारण बंद पड़ा हुआ है. कृषि मजदूरों को उम्मीद थी कि सर्दी में कुछ काम मिलेगा, लेकिन मौसम की मार ने उनकी उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है. गांवों से शहर की ओर मजदूरी की तलाश में आए लोग भी काम न मिलने से परेशान और हतास हैं. सरकार व प्रशासन को करनी चाहिए कोई पहल आमतौर पर ठंड का लगभग तीन महीना मजदूरों के लिए किसी कहर भरे दिन से कम नहीं होता. सामाजिक संगठनों और आम लोगो का कहना है कि ठंड के मौसम में दिहाड़ी मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित वर्ग होता है. इनके पास न तो स्थायी रोजगार होता है और न ही कोई बचत, जिससे वे मुश्किल समय का सामना कर सकें. ऐसे में सरकार और प्रशासन खासकर ठंड के मौसम में इनके लिए राहत और सहायता की व्यवस्था की जाय. अस्थायी रोजगार जैसी योजनाएं इन मजदूरों के लिए बड़ी राहत साबित होगी. जिससे वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर सकेंगे. ऐसी व्यवस्था कर दी जाए जो इस दुख भरे दिन में इनके लिए कोई काम करने का स्रोत हो सके. ठंड का मौसम मजदूरों के लिए सुकून नहीं, होता है कहर यह कहना गलत नहीं होगा कि ठंड का मौसम दहियारी मजदूरों के लिए सुकून भरा मौसम नहीं बल्कि किसी कहर से कम नहीं होता है. कुल मिलाकर, ठंड का यह मौसम दिहाड़ी मजदूरों के लिए सुकून नहीं, बल्कि रोजी-रोटी पर कहर बनकर टूट रहा है. काम की तलाश में बिताए जा रहे लंबे घंटे, खाली जेब और घर की बढ़ती जरूरतें इनकी पीड़ा को और गहरा कर रही हैं. जरूरत है कि इस वर्ग की समस्याओं को गंभीरता से समझा जाए और ठंड के इस कठिन दौर में इन्हें सहारा दिया जाय.
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