कटिहार में 100 में मात्र 13.8 बच्चों की ही मिलता है पौष्टिक आहार
सूरज गुप्ता, कटिहारहर पांच वर्ष में विधानसभा चुनाव होते हैं, चुनाव के जरिये बिहार में सरकार बनती है, लेकिन आमलोगों से जुड़ी कई ऐसी बुनियादी जरूरतें हैं, जो अब तक पूरी नहीं हुई है. इस बार भी विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गयी है. जिले के सात विधानसभा क्षेत्र में 11 नवंबर को मतदान होना है. ऐसे में बुनियादी जरूरतों से जुड़े सवाल भी उठने लगे हैं. मसलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पोषण, सड़क पुल-पुलिया जैसी जन सरोकार के मुद्दे व बुनियादी जरूरतों को लेकर लोग गंभीर है. प्रभात खबर आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आम जनमानस से जुड़ी समस्याएं एवं उनकी जरूरतों के सवाल को सामने लाने की मुहिम में जुटी हुई है. इसी कड़ी में जिले में पोषण की स्थिति से पाठकों एवं विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को रूबरू कराते हुए उसके समाधान की अपेक्षा भी रखती है. उल्लेखनीय है कि पोषण के मामले में कटिहार की स्थिति अत्यंत खराब है. नवजात शिशु, बच्चे, किशोरी व महिलाओं में न केवल पोषण के प्रति समझ कम है, बल्कि कुपोषण के शिकार भी है. अगर सरकार की एक हालिया रिपोर्ट पर भरोसा करें तो पिछले पांच वर्षों में कुपोषण के मामले में चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं, यानी कुपोषित महिलाएं एवं बच्चों की तादाद बढ़ गयी है. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से हाल में जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे पांच की रिपोर्ट बताता है कि कटिहार जिले में पिछले पांच-छह वर्षों के दौरान अंडरवेट बच्चों की तादाद बढ़ गयी हैं.
हर दूसरा बच्चा अंडरवेट
रिपोर्ट के मुताबिक कटिहार जिले के हर दूसरा बच्चा अंडरवेट है. साथ ही महिलाओं में खून की कमी के मामले में भी वृद्धि हो गयी है. एनएफएचएस चार 2015-16 की तुलना में एनएफएचएस पांच की रिपोर्ट के मुताबिक पोषण के मामले में कटिहार की स्थिति अत्यंत खराब है. नवजात शिशु, बच्चे, किशोरी व महिलाओं में न केवल पोषण के प्रति समझ कम है, बल्कि कुपोषण के शिकार भी हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट बताता है कि पोषण के मामले में इस जिले की स्थिति गंभीर है. एनएफएचएस-पांच की रिपोर्ट के अनुसार कटिहार जिले के 6-23 महीने की आयु समूह के 100 में मात्र 13.8 बच्चे को ही पौष्टिक आहार मिल पाता है. जिले में बच्चों के पोषण एवं स्वास्थ्य की स्थिति राष्ट्रीय मानक की तुलना में ठीक नहीं है. यद्यपि इस सर्वे के अनुसार पिछले सर्वे की तुलना में कई सूचकांक पर स्थिति में सुधार पायी गयी है. एनएफएचएस-चार के अनुसार जिले में स्तनपान करने वाले छह से 23 महीने के बच्चों में से मात्र 13.6 प्रतिशत को ही पर्याप्त पौष्टिक आहार प्राप्त हो रहा है.दो तिहाई बच्चे में है खून की कमी
एनएफएचएस पांच में 6-59 महीने की उम्र में लगभग दो तिहाई बच्चे यानी 65.6 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से ग्रसित पाया गया है, जबकि 2015-16 में जारी एनएफएचएस चार की रिपोर्ट में इस आयु वर्ग के 61.3 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित थे. दूसरी तरफ 15-49 आयु वर्ग समूह की 61 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित है. चार-पांच साल पहले 57.8 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित थे. यह इस बात की ओर इशारा करता है कि पीढ़ी दर पीढ़ी कुपोषण चक्र बना हुआ है. इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार में केवल 16.2 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं ने गर्भावस्था के दौरान सौ दिनों या उससे अधिक दिनों तक आयरन और फोलिक एसिड की दवा का सेवन किया. इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों के बीच कुपोषण की जानकारी का आधार उम्र के अनुसार कम ऊंचाई, ऊंचाई के अनुसार कम वजन, उम्र के अनुसार कम वजन के आधार पर बच्चों के कुपोषण का आकलन किया गया है. पिछले सर्वे की तुलना इस बार पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के वजन में भी गिरावट दर्ज की गयी है. पिछले सर्वे में कटिहार जिले में 45.1 प्रतिशत बच्चे का वजन निर्धारित वजन से कम था, लेकिन इस सर्वे के अनुसार इस जिले में में 48.1 प्रतिशत बच्चे कम वजन वाले हैं.एनएफएचएस-चार व पांच की खास बातें
सूचकांक 2015-16 2019-20
गर्भवती माता में एनीमिया 57.8 61.0गैर गर्भवती मातम में एनीमिया 64.3 68.9महिलाओं में एनीमिया 65.7 66.76-23 माह के बच्चे को आहार 7.9 13.805 वर्ष तक के अंडरवेट बच्चा 45.1 48.1डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

