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खेल के क्षेत्र में आसमां छू रही हैं कटिहार की बेटियां

सूरज गुप्ता, कटिहार : अगर व्यक्ति में इच्छाशक्ति मजबूत हो तो कामयाबी उसकी कदम चूमती है. इसी तरह की कहावत को कटिहार की दो बेटियों ने चरितार्थ किया है. शहर के हरि शंकर नायक उच्च विद्यालय में पढ़ने वाली दो छात्राओं ने कबड्डी के राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन करके अपनी पहचान बनायी है. इन्हीं […]

सूरज गुप्ता, कटिहार : अगर व्यक्ति में इच्छाशक्ति मजबूत हो तो कामयाबी उसकी कदम चूमती है. इसी तरह की कहावत को कटिहार की दो बेटियों ने चरितार्थ किया है. शहर के हरि शंकर नायक उच्च विद्यालय में पढ़ने वाली दो छात्राओं ने कबड्डी के राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन करके अपनी पहचान बनायी है. इन्हीं दो बेटियों को गुरुवार को राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर पटना में आयोजित राजकीय समारोह में राज्य सरकार की ओर से सम्मानित किया जायेगा.

इस खबर को सुनकर कटिहार जिला के लोगों को उत्साह का माहौल है. शहर के संत कॉलोनी मिरचाईबाड़ी निवासी दयानंद भगत व सुलेखा देवी की पुत्री 15 वर्षीय नंदनी कुमारी व शहर के इंद्रपुरी बीएमपी सात मुहल्ले के रमेश कुमार उरांव व इंदिरा उरांव की 16 वर्षीय बेटी अनामिका उरांव ने 30 वीं राष्ट्रीय सब जूनियर कबड्डी प्रतियोगिता 2019 में बिहार टीम में शामिल होकर बेहतर प्रदर्शन किया है.
इसके अतिरिक्त फुटबॉल में मिथिलेश टूडू व मानेएल किस्कू, पैरालंपिक में प्रियांशु कश्यप आदि को भी राज्य सरकार की ओर से खेल पुरस्कार के लिए चुना गया है. खिलाड़ियों में खासे उत्साह देखा जा रहा है. सम्मान िमलने से खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ेगा.
कबड्डी में नंदिनी ने बनायी पहचान
शहर के संत कॉलोनी मिरचाईबाड़ी निवासी दयानंद भगत व सुलेखा देवी की पुत्री नंदनी कुमारी स्थानीय हरिशंकर नायक उच्च विद्यालय में पढ़ती है. बचपन से ही कबड्डी खेलने की उनकी रुचि रही है. उनके पिता उच्च विद्यालय काटाकोष में संगीत शिक्षक है. मां गृहिणी है. घर का वातावरण से अलग हटकर नंदनी खेल के क्षेत्र में अलग पहचान बनाने की दिशा में अग्रसर है.
यही वजह है कि कबड्डी उनकी पहली पसंद है. इसी वर्ष जनवरी में पटना स्पोर्ट्स कंपलेक्स में आयोजित 30 वां राष्ट्रीय सब जूनियर कबड्डी प्रतियोगिता में नंदनी को बिहार टीम में शामिल किया गया. प्रतियोगिता के दौरान अन्य सदस्यों की तरह नंदिनी भी टीम के लिए बेहतर प्रदर्शन किया. यही वजह है कि राज्य सरकार ने वर्ष 2019 के खेल पुरस्कार के लिए नंदिनी का चयन किया है. नंदनी को गुरुवार को पटना में आयोजित राजकीय समारोह में खेल पुरस्कार से नवाजा जायेगा.
नंदनी कुमारी
ऑटो चालक की बेटी का कबड्डी में परचम
शहर के बीएमपी सात के समीप स्थित इंद्रपुरी निवासी रमेश कुमार उरांव ऑटो चालक है. रमेश एवं इंदिरा उरांव की बेटी 16 वर्षीय अनामिका उरांव को भी कबड्डी के क्षेत्र में दूर तक जाने का लक्ष्य है. यही वजह है कि शुरू से ही वह कबड्डी खेलने में दिलचस्पी दिखायी. अनामिका भी हरि शंकर नायक उच्च विद्यालय में पढ़ती है.
पढ़ाई के साथ साथ कबड्डी के लिए भी वह समय निकालती है तथा राजेंद्र स्टेडियम जाकर प्रैक्टिस करती है. राजेंद्र स्टेडियम में कबड्डी की राष्ट्रीय खिलाड़ी मीनू सिंह एवं अमर प्रताप की देखरेख में अनामिका कबड्डी की प्रैक्टिस करती है. बातचीत वह कहती है कि घर का माहौल उस तरह का नहीं है. वह कबड्डी के क्षेत्र में कटिहार का नाम देश दुनिया तक ले जाना चाहती है. अनामिका भी इस बार कबड्डी के बिहार टीम में शामिल थी तथा बिहार के टीम में सक्रिय भागीदारी निभाते हुए बेहतर प्रदर्शन किया. उन्हें भी गुरुवार को खेल पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा.
अनामिका उरांव
ताइक्वांडो में अपनी लोहा मनवा रही है चांदनी
शहर के विनोद सिंह एवं प्रतिभा देवी की पुत्री चांदनी को शुरू से ही खेलने में रुचि रही है. फिलहाल वह ताइक्वांडो के खेल में अपनी प्रतिभा का जौहर दिखा रही है. शहर के उत्क्रमित मध्य विद्यालय वर्मा कॉलोनी की छात्रा रही चांदनी बातचीत में कहती है कि उन्हें परिवार का पूरा सपोर्ट मिला. साथ ही इस विद्यालय का भी पूरा सपोर्ट मिला है. इसी विद्यालय में अभी भी प्रैक्टिस करती है.
चांदनी 54 वां राष्ट्रीय स्कूल गेम प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए विदिशा गयी थी. मध्य प्रदेश के विदिशा में आयोजित राष्ट्रीय स्तर के प्रतियोगिता में चांदनी ने बेहतर प्रदर्शन किया है. अभी भी वह लगातार प्रैक्टिस कर रही है तथा जिला से लेकर विभिन्न स्तर की प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही है. वह कहती है कि पढ़ाई के साथ-साथ खेल जरूरी है. पर यहां संसाधन एवं कोच का अभाव है. सरकार को ऐसे खेलों को आगे बढ़ाने के लिए संसाधन उपलब्ध कराना चाहिए.
चांदनी
राष्ट्रीय प्रतियोगिता से मिली रूबी को पहचान
ताइक्वांडो खेल में रुचि रखने वाली रूबी कुमारी 11वीं की छात्रा है. बचपन से ही उन्हें खेलने का शौक रहा है. शहर के उत्क्रमित मध्य विद्यालय बर्मा रिफ्यूजी कॉलोनी में पढ़ाई के दौरान ताइक्वांडो खेलने का अवसर मिला. यही वह लगातार प्रैक्टिस भी करती रही है. अभी हाल ही में गुजरात 64 वां राष्ट्रीय स्कूल गेम प्रतियोगिता में अपनी सक्रिय भागीदारी से रूबी को पहचान मिली. इस खेल में रूबी ने कटिहार का भी नाम रोशन किया.
बातचीत में वह कहती है कि उन्हें परिवार का पूरा सपोर्ट मिला. पिता मोहन यादव एवं मां सीता देवी सहित परिवार के अन्य सदस्यों ने उन्हें खेल में भागीदारी को लेकर हमेशा ही हौसला अफजाई करते रहे. साथ ही इसी विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक व अन्य समाज के लोगों ने भी उनका हौसला अफजाई किया. इसी दृष्टिकोण से वह खेल के क्षेत्र में कटिहार और बिहार का नाम आगे बढ़ाना चाहती है.
रूबी कुमारी
60 के दशक में कटिहार का था परचम
सरकार व जनप्रतिनिधि की उदासीनता की वजह से जिले के कई परंपरागत खेल विलुप्त होने के कगार पर है. जिले में फुटबॉल खेल अभी आदिवासी समुदाय की वजह से बची हुयी है. इसी समुदाय के बीच अभी यह खेल का आयोजन होता है. इस जिले में फुटबाल का स्वर्णिम इतिहास रहा है. जब कटिहार जिला भी नहीं बना था. तब 60 के दशक में कटिहार रेलवे फुटबाल टीम पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे व बिहार में अपना परचम लहराया करता था. इतना ही नहीं कटिहार की टीम दुरंतो कप, मुहम्मद स्पोर्टिंग, मोहन बगान आदि के खिलाड़ियों के साथ खेलते थे.
कटिहार में कई ख्यातिप्राप्त फुटबॉल खिलाड़ी आते रहे है. संसाधनों की कमी के बीच पिछले साल स्मिता कुमारी, पूजा कुमारी, प्रीति कुमारी,प्रिया सोरेन, शांति टुडू, करीना सोरेन, सुरेश कुमार आदि ने फुटबॉल की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन किया. वॉलीबॉल खेल पिछले कई वर्षों से यहां नहीं हुआ है. साथ ही कई परंपरागत खेल लगभग समाप्त होने के कगार पर है.
दूसरी तरफ कबड्डी, टेबल टेनिस, वुशु, खो खो, क्रिकेट, बैडमिंटन, ताइक्वांडो, जैवलिन थ्रो, डिस्कस थ्रो, हैमर थ्रो, एथलेटिक्स आदि विभिन्न तरह के प्रतिस्पर्धा व खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. यह अलग बात है कि जिले के विभिन्न खेल संघों के द्वारा समय-समय पर खेल गतिविधियों का आयोजन किया जाता है तथा उसके लिए प्रेक्टिस की व्यवस्था भी की जाती है.
कहते है खेल संघ के पदाधिकारी : कटिहार जिला फुटबाल संघ के सचिव दिलीप कुमार साह उर्फ भोला ने बताया कि कटिहार के खिलाड़ियों में प्रतिभा की कमी नहीं है. संसाधनों के अभाव के बीच में खेल संघ और खिलाड़ी अपनी इच्छाशक्ति की बदौलत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है.
पर कटिहार में खिलाड़ियों के लिए एक बेहतर मैदान भी नहीं है. साथ ही खेल के अनुकूल स्टेडियम का भी अभाव है. बेहतर खेलने वाले खिलाड़ियों को सरकार की ओर से प्रोत्साहन भत्ता भी दिया जाना चाहिए. साथ ही खिलाड़ियों को कोचिंग की व्यवस्था भी निशुल्क होनी चाहिए.
शहरी क्षेत्र का एक प्रमुख मैदान राजेंद्र स्टेडियम है. यहां कभी-कभी खेल का आयोजन होता है. मजबूरी में खिलाड़ी इस मैदान में न केवल प्रेक्टिस करते है. बल्कि कई तरह का टूर्नामेंट भी होता है. पर इस मैदान में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. शुद्ध पेयजल के साथ-साथ अन्य कई तरह की बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है. साथ ही खेल प्रतिस्पर्धा के अनुकूल मैदान नहीं है. मैदान का भी अत्यधिक उपयोग राजनीतिक व सामाजिक गतिविधियों में होता है.
रखरखाव का भी घोर अभाव है. इसी तरह महेश्वरी एकेडमी का मैदान का उपयोग भी खेल गतिविधियों में होता है. पर इस मैदान का व्यवसायिक उपयोग भी होता है. महीनों भर डिज्नीलैंड व अन्य कई तरह के व्यवसायिक गतिविधियों का आयोजन होता है. जिससे खिलाड़ी को प्रैक्टिस करने में परेशानी होती है.
शहर के महेश्वरी अकादमी परिसर में स्थित इंडोर स्टेडियम बनाने के पीछे यही उद्देश्य था कि कटिहार में इंडोर गेम खेलने वाले खिलाड़ियों को सहूलियत मिले. साथ ही इंडोर गेम प्रतियोगिता भी हो. इस इंडोर स्टेडियम में कई तरह की बुनियादी सुविधा का अभाव है. इंडोर गेम के खिलाड़ी बताते हैं कि खेल के अनुकूल इंडोर स्टेडियम नहीं है.
मजबूरी में खिलाड़ी यहां प्रैक्टिस करते है. साथ ही इंडोर गेम का आयोजन भी किया जाता है. वास्तविक में इंडोर गेम के लिए यह स्टेडियम उपयुक्त नहीं है. इसी तरह शहर के श्रम कल्याण केंद्र मैदान, डीएस कॉलेज मैदान आदि भी खेल मानक के अनुरूप नहीं है. खेल मानक के अनुरूप मैदान नहीं होने से यहां के खिलाड़ियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.
शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के खिलाड़ियों के लिए न केवल संसाधन का अभाव है. बल्कि कोच का भी अभाव है. कोचिंग की व्यवस्था नहीं होने से खिलाड़ी आगे नहीं बढ़ पाते है. यहां जितनी आबादी है. उस हिसाब से खिलाड़ी सामने नहीं आ रहे है. राज्य सरकार ने प्रारंभिक विद्यालयों में जूनियर स्पोर्ट्स मीट तरंग प्रतियोगिता के माध्यम से बच्चों में खेल भावना विकसित करने की प्रक्रिया शुरू की है.
पर अधिकांश विद्यालयों में न तो खेल का मैदान है और न ही बच्चे को खेल के क्षेत्र में प्रशिक्षण देने की व्यवस्था है. कुछ विद्यालय में शारीरिक शिक्षक के जरिए खेलकूद का प्रशिक्षण दिया जाता है. पर वह भी उपयुक्त नहीं है. कला, संस्कृति एवं युवा विभाग भी खेल कैलेंडर के जरिए कई तरह की खेल प्रतिस्पर्धा का आयोजन करती है. लेकिन खिलाड़ी को प्रशिक्षण देने की कोई व्यवस्था नहीं है.

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