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अधिकतर प्रखंडों में उच्च शिक्षा के लिए नहीं है डिग्री कॉलेज, छात्र कर रहे हैं पलायन

जिले में सरकार मेडिकल कॉलेज खोले जाने की तैयारी जोर शोर से शुरू है, लेकिन आज भी जिले के सभी प्रखंडों में डिग्री कॉलेज की व्यवस्था नहीं है.

भभुआ नगर. जिले में सरकार मेडिकल कॉलेज खोले जाने की तैयारी जोर शोर से शुरू है, लेकिन आज भी जिले के सभी प्रखंडों में डिग्री कॉलेज की व्यवस्था नहीं है. इसके कारण जिले के छात्र-छात्राएं को स्नातक की पढ़ाई और डिग्री प्राप्त करने के लिए पलायन करने काे विवश हो जा रहे हैं. उच्च शिक्षा की तो बात छोड़ दें, सभी प्रखंडों में बीए करने के लिए सरकारी कॉलेज तो दूर वित्त रहित कॉलेज भी नहीं है. यानी कहें तो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आज भी कैमूर के छात्र तरस रहे हैं और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए घर से पलायन कर दूसरे राज्यों का रुख कर रहे हैं. यानी शिक्षा पर कैमूर जिले के लाखों रुपये दूसरे राज्यों व दूसरे जिलाें में खर्च हो रहे हैं. खासकर महिलाओं के लिए तो जिले में एक भी सरकारी डिग्री कॉलेज तक नहीं है. सरकारी कॉलेज नहीं रहने के कारण छात्राओं को वित्त रहित कॉलेजों में पढ़ना पड़ रहा है. डिग्री कॉलेज सभी प्रखंडों में नहीं रहने के कारण छात्राओं में काफी आक्रोश भी है, जिससे आगामी विधानसभा चुनाव में जिले के सभी प्रखंडों में सरकारी डिग्री कॉलेज की स्थापना नहीं होना भी जिले का मुख्य स्थानीय मुद्दा बना रहेगा. गौरतलब है कि बिहार, जिसकी ऐतिहासिक पहचान नालंदा और विक्रमशिला जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शिक्षण संस्थानों के कारण कभी दुनियाभर में थी, लेकिन आज उच्च शिक्षा के बुनियादी ढांचे की भारी कमी से जूझ रहा है. विशेषकर कैमूर जिले सहित बिहार के तमाम पिछड़े और अर्द्ध-शहरी इलाकों से हर साल हजारों छात्र बेहतर शिक्षा की तलाश में दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों का रुख कर रहे हैं. यह पलायन न केवल राज्य की शैक्षणिक कमजोरी को उजागर करती है, बल्कि राज्य की आर्थिक शक्ति को भी कमजोर करने का काम कर रही है. इसका उदाहरण है कि उच्च शिक्षा की व्यवस्था जिले में नहीं रहने के कारण प्रति वर्ष कैमूर से हजारों छात्र स्नातक व स्नातकोत्तर सहित इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, मैनेजमेंट और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए बाहर चले जाते हैं, इसके साथ ही इन छात्रों के रहने खाने सहित शिक्षा पर खर्च होने वाली भारी भरकम राशि से दूसरे राज्यों की अर्थव्यवस्था तो सुचारू रूप से चल रही है, लेकिन यहां के बाजार आज भी पिछड़े रह जा रहे हैं. कैमूर जिले की बात करें तो यहां उच्च शिक्षा के नाम पर कुछ ही सरकारी महाविद्यालय और निजी डिग्री कॉलेज उपलब्ध हैं. न तो यहां कोई केंद्रीय विश्वविद्यालय है, न ही मेडिकल कॉलेज. जो सरकारी कॉलेजों हैं भी, तो इनमें संसाधनों की भारी कमी है. शिक्षकों के पद वर्षों से खाली हैं. पुस्तकालयों और प्रयोगशालाओं की स्थिति दयनीय है, जिससे छात्र मजबूर होकर बाहर पलायन कर जा रहे हैं. = कॉलेज में पढ़ाई के नाम पर खानापूर्ति स्थानीय छात्र मानते हैं कि सरकारी डिग्री कॉलेजों में पढ़ाई का स्तर बेहद कमजोर है. बीए, बीएससी जैसी डिग्रियों के लिए नामांकन तो मिल जाता है, लेकिन पढ़ाई केवल औपचारिकता तक ही सीमित रह जाती है. किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में सफलता की गारंटी देने वाले कोचिंग संस्थान यहां एक भी नहीं हैं. मेडिकल या इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए भी संसाधन नदारद हैं. ऐसे में छात्रों को मजबूरन कोटा, दिल्ली या पटना जाना पड़ता है, जहां उन्हें लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं. = योजनाएं कागजों तक रह जाती हैं सीमित बिहार सरकार द्वारा ज्ञान भवन, मेगा यूनिवर्सिटी कैंपस, मॉडल कॉलेज, स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड जैसी योजनाएं चलायी जा रही हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि दूरदराज के जिलों तक ये सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. कैमूर जैसे सीमावर्ती जिले में न कोई केंद्रीय संस्थान है, न ही कोई व्यावसायिक पाठ्यक्रम चलाने वाला संस्थान, जिससे छात्र यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पूरी करके भी बेरोजगारी का शिकार हो रहे हैं. = कॉलेज में शिक्षकों व कर्मियों की कमी छात्रों का मानना है कि कॉलेज में नामांकन तो कर लिया जाता है, लेकिन अधिकतर कॉलेजों में शिक्षकों व कर्मियों की भारी कमी है. अगर एक नजर इन कॉलेज पर डालें तो जिले के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज सरदार वल्लभ भाई पटेल महाविद्यालय में ही शिक्षक, कर्मी व भवन का घोर अभाव है, जहां किसी तरह दो शिफ्ट में कॉलेज संचालित किये जा रहे है. अन्य संबद्धता प्राप्त महाविद्यालय की माने तो पढ़ाई एव लैब की स्थिति भी काफी खराब है. –जिले में महिलाओं के लिए नहीं है एक भी सरकारी डिग्री कॉलेज = उच्च शिक्षा के लिए तरस रहे हैं कैमूर के हजारों छात्र-छात्राएं

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