Bihar News: बिहार के जहानाबाद जिले में एक गांव ऐसा है जहां सिर्फ महिलाएं ही दिखाई देती है. इस गांव का नाम नसरत है. इस गांव के पुरुष शादी होते ही काम के लिए तुरंत घर छोड़ देते हैं. नसरत की तरह बिहार के ऐसे सैकड़ों गांव हैं जहां पति अपनी पत्नियों को शादी के बाद गांव में ही छोड़ कर काम के लिए शहर चले जाते हैं. वह सिर्फ छठ पर्व या किसी विशेष मौके पर ही परिवार के पास आते हैं.
उधार खाते से चलता परिवार
नसरत गांव पटना से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर है और इस गांव में महिलाएं अपने पतियों के भेजे पैसों से घर चलाती हैं. इस गांव में एक किराना दुकान है जहां लगभग हर महिला का उधार खाता चलता है. इसकी वजह है के भेजे गए पैसों से घर खर्च पूरा नहीं हो पाता है.
कमाई का साधन खेती
अकेली महिलाओं पर काम का बोझ भी ज्यादा रहता है. गांव में खेती के अलावा महिलाओं के पास कमाई का और कोई माध्यम नहीं है. ये महिलाएं सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक खेतों में काम करती हैं लेकिन इतने लंबे काम के बदले उन्हें सिर्फ सौ रुपये मिलते हैं. इस गांव में महिलाओं को यह डर भी सताता है कि अगर उनके पति वापस न लौटे तो क्या होगा.
कर्ज के बोझ तले महिलाएं
इस गांव में रहने वाली कई ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने बेटी की शादी या पशु खरीदने के लिए उधार लिया है. अब इस उधार को चुकाने की जिम्मेदारी उनकी अकेले की ही है. इस गांव में कई महिलाएं ऐसी हैं जो शादी, बीमारी, इलाज या खेती‑बाड़ी के लिए माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से कर्ज लेने को मजबूर हैं. गांव में अधिकतर महिलाओं का कर्ज बकाया है.
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महिलाओं की उम्मीद
बिहार सरकार ने उद्योगों को प्रभावित करने के लिए कई स्पेशल आर्थिक पैकेज की घोषणा की है. राज्य के ग्रामीण अंचलों में आज भी बड़े उद्योगों की बजाय खेती और अस्थायी काम ही ज्यादा है. महिलाओं को उम्मीद है कि नई सरकार गांवों में ही कंपनियां और फैक्ट्रियां लगाए, ताकि उनके पतियों को काम के लिए घर से दूर नहीं जाना पड़े.
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