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उषा-अनिरुद्ध के प्रेम का गवाह है वाणावर

रमेश कुमार, मखदुमपुर : संपूर्ण भारत में प्रेम के इतिहास के नाम से कई ऐतिहासिक धरोहर का नाम जानते हैं, लेकिन प्रेम में भगवान भोलेनाथ और श्री कृष्ण की युद्ध की बात जब भी आती है तो वाणावर की वादियों का नाम जरूर आता है. धार्मिक ग्रंथ गीता, महाभारत, विष्णु पुराण और शिव पुराण में […]

रमेश कुमार, मखदुमपुर : संपूर्ण भारत में प्रेम के इतिहास के नाम से कई ऐतिहासिक धरोहर का नाम जानते हैं, लेकिन प्रेम में भगवान भोलेनाथ और श्री कृष्ण की युद्ध की बात जब भी आती है तो वाणावर की वादियों का नाम जरूर आता है. धार्मिक ग्रंथ गीता, महाभारत, विष्णु पुराण और शिव पुराण में रचित कथा में वाणावर का इतिहास रहा है.

कहा जाता है कि द्वापर युग में वाणावर शोणितपुर अवरेश नाम (सोनपुर) का राजा वाणासुर हुआ करता था, जो वाणावर पहाड़ स्थित बाबा सिद्धनाथ का महान भक्त था, जो भोलेनाथ से किसी भी युद्ध में असफल होने पर साथ देने का वरदान प्राप्त कर लिया था. वाणासुर की एक पुत्री उषा थी.
वह भी भोलेनाथ की परम शिष्या थी. एक दिन पहाड़ी इलाका के हथियाबोर इलाके में भगवान भोले और पार्वती को जल कीड़ा करते देख लिया, तो भोलेनाथ से मनोकुल वर की प्राप्ति का आशीर्वाद मिला.
इस आशीर्वाद के बाद उषा सपने देखना शुरू कर दी. एक दिन उसे सपना में एक राजकुमार आया, जो अपने सहेली चित्रलेखा को बताया. चित्रलेखा वाणासुर के मंत्री रहे कुम्भाण्ड की बेटी थी. उषा ने सपने में आया राजकुमार के बारे में मन की बात बताया, जिस पर चित्रलेखा ने कहा कि हम अपने योग साधना विद्या से सपने में आया चितचोर का चित्र बनाती हूं.
तुम पहचान लोगी तो उसे मैं ले आऊंगा. चित्रलेखा ने कई देव, महर्षि, मनुष्य का चित्र बनाया, लेकिन वह राजकुमार नहीं था, तब उसने अनिरुद्ध का चित्र बनाया, जिसे देख उषा खुश हुई और उसे लाने को कही. सहेली की बात पर चित्रलेखा ने अपने योग साधना से द्वारिकापुरी से अनिरुद्ध को पलंग सहित उठा वाणावर ले आया.
उषा और अनिरुद में प्रेम हो गया, जिसकी सूचना सिपाही ने राजा वाणासुर को दिया. खबर मिलते ही वाणासुर क्रोधित हो गये और अनिरुद्ध से वाणावर पहाड़ी इलाका में युद्ध करने लगे, जिसमें वाणासुर ने नागपाश के द्वारा अनिरुद्ध को कब्जे में ले लिया, जिसकी सूचना श्रीकृष्ण को मिला.
श्रीकृष्ण ने आक्रमण कर वाणासुर से युद्ध करने लगे. यद्ध में वाणासुर की हार देख स्वयं भोलेनाथ कूद पड़े. अंततः सभी देवी -देवता मिलकर श्रीकृष्ण और भोलेनाथ के साथ वार्ता किये. भगवान भोलेनाथ के पहल पर वाणासुर ने अपनी पुत्री उषा का विवाह धूमधाम से श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से किया.
मगध का हिमालय है वाणावर
वाणावर पहाड़ भारतवर्ष के पुरातन ऐतिहासिक पर्वतों में एक है. 1200 फुट ऊंचे वाणावर पर्वत को मगध का हिमालय भी कहा जाता है. यहां सात अद्भुत गुफाएं भी बनी हुई हैं, जिनका पता अंग्रेजों के कार्यकाल में चला. इनमें से चार गुफाएं वाणावर पहाड़ और बाकी तीन गुफाएं नागार्जुन पहाड़ स्थित हैं. भारत में पहाड़ों को काटकर गुफा बनाने की शुरुआत भी यहीं से हुई थी. ये देश का सबसे प्राचीन गुफाएं हैं. पर्यटन के लिहाज से भी ये काफी उपयुक्त स्थान है. ये पर्वत सदाबहार सैरगाह के रूप में प्राचीन काल से ही चर्चित है.
पहाड़ काटकर बनायी गयी हैं गुफाएं
जिले के मखदुमपुर बेलागंज सीमा पर स्थित अशोक कालीन गुफाओं में कर्ण चौपड़ गुफा, सुदामा गुफा, लोमस ऋषि गुफा, नागार्जुन गुफा सहित सात गुफायें हैं, जिसे पहाड़ को काटकर बनाया गया था. सबसे खास बात यह है कि कर्ण चौपड़, सुदामा और लोमस ऋषि गुफा एक ही चट्टान को काटकर बनायी गयी हैं. देखने में अद्भुत लगने वाली ये गुफाएं प्राचीन समय की कलाकारी को दर्शाती हैं. गुफा के भीतर तेज आवाज में चिल्लाने पर काफी देर तक प्रतिध्वनियों को सुनकर आने वाले सैलानी काफी रोमांचित होते हैं.

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