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कभी साइकिल की घंटी की आवाज से खिल जाता था मन

अब से करीब एक दशक पहले सड़कों पर न तो इतनी गाड़ियां हुआ करती थीं और न ही वाहनों का इतना शोरगुल हुआ करता था. साइकिल लोगों के जीवन का अहम हिस्सा थी. साइकिल की घंटी बजते ही बाल मन खिल उठता था.

जमुई . अब से करीब एक दशक पहले सड़कों पर न तो इतनी गाड़ियां हुआ करती थीं और न ही वाहनों का इतना शोरगुल हुआ करता था. साइकिल लोगों के जीवन का अहम हिस्सा थी. साइकिल की घंटी बजते ही बाल मन खिल उठता था. लेकिन आज वह साइकिल धीरे-धीरे लोगों की यादों में सिमटती जा रही है. भाग दौड़ वाली इस जिंदगी में लोगों की रफ्तार इतनी बढ़ गयी है कि लोग बाइक और गाड़ियों के सहारे अपना काम निपटाने लगे हैं. परंतु आज भी साइकिल सेहत और पर्यावरण के लिए उतना ही उपयोगी है, जितना पहले हुआ करती थी. कई बड़े चिकित्सक भी लोगों को साइकिल चलाने की सलाह देते हैं. पर्यावरणविद भी पर्यावरण संरक्षण को लेकर साइकिल का इस्तेमाल करने की बात कहते रहते हैं. चाहे कितनी भी भाग दौड़ क्यों न हो, पर इसके बावजूद भी बाजारों में साइकिल का ट्रेंड है और बड़े पैमाने पर साइकिल का कारोबार फल फूल रहा है.

बाजार में उपलब्ध है कई प्रकार की साइकिलें

जमुई जिले के विभिन्न बाजारों में साइकिल की कई दुकानें उपलब्ध हैं. जहां एक से बढ़कर एक वैरायटी और कीमत की साइकिल उपलब्ध है. साइकिल विक्रेता राजन कुमार बताते हैं कि पहले केवल सामान्य साइकिल की बिक्री होती थी. लेकिन अब लोगों का रुझान अलग-अलग तरह के साइकिल की तरफ बढ़ गया है. लोग गियर का साइकिल खरीदने हैं. कुछ लोग रेंजर साइकिल खरीदने हैं तो कुछ लोग कस्टमाइज साइकिल की भी डिमांड करते हैं. आमतौर पर 4000 से 4800 तक कीमत की साइकिल की अधिक बिक्री होती है. जबकि 5 से 6000 कीमत वाला साइकिल भी लोग खूब खरीद रहे हैं. बाजारों में 22 हजार रुपए तक कीमत की साइकिल उपलब्ध है.

कोट :

साइकिल का कारोबार स्थिर रूप से चलता है. ना तो इसमें बहुत अधिक वृद्धि देखने को मिलती है और ना ही इसके व्यापार में कोई मंदी आती है. आमतौर पर प्रतिदिन लगभग एक समान के हिसाब से साइकिल की बिक्री होते रहती है.

राजन कुमार, साइकिल कारोबारी

कई लोग ऐसे हैं जो साइकिल का इस्तेमाल करते हैं. खासकर कोचिंग और कॉलेज जाने वाले छात्र अक्सर साइकिल मरम्मत करने के लिए आते हैं. वहीं बाजार जाने के लिए भी कई लोग साइकिल इस्तेमाल करते हैं और अक्सर मरम्मत के लिए आते रहते हैं.

मो शमीम, मैकेनिक

साइकिल चलाना सेहत के लिए काफी फायदेमंद

जमुई सदर अस्पताल के चिकित्सक डॉ मनीष कुमार बताते हैं कि साइकिल चलाना हृदय और फेफड़ों के लिए बहुत लाभकारी होता है. उन्होंने कहा कि यह वजन कम करने, रक्तचाप नियंत्रित रखने और मानसिक तनाव घटाने में भी मदद करता है. नियमित साइकिलिंग से हड्डियां मजबूत होती हैं और स्टैमिना भी बढ़ता है. यह हर उम्र के लोगों के लिए उपयुक्त व्यायाम है. डॉ मनीष कुमार ने बताया कि अगर प्रतिदिन साइकिल चलाया जाए तो इससे अच्छी कसरत हो जाती है और आपको कोई अतिरिक्त व्यायाम करने की जरूरत नहीं पड़ती. लगातार साइकिल चलाने वाले लोग शारीरिक रूप से भी काफी सक्षम होते हैं.

साइकिल चलाने से बर्न हो सकती है कैलोरी

समयबर्न होने वाली कैलोरी1 घंटा : 500 कैलोरी2 घंटे : 1000 कैलोरी3 घंटे : 1500 कैलोरी4 घंटे : 2000 कैलोरी5 घंटे : 2500 कैलोरीसाइकिल से संबंधित कुछ मजेदार बातेंसबसे तेज साइकिल गति :296 किमी/घंटा (डेनिस मुलर, यूएस)सबसे भारी साइकिल : 860 किलो (जर्मनी)सबसे लंबी साइकिल : 41.42 मीटर (ऑस्ट्रेलिया)सबसे लंबी दूरी एक दिन में : 896 किमी (क्रिस्टोफ स्ट्रासर, ऑस्ट्रिया)सबसे बड़ी साइकिल परेड : 48,615 लोग (फिलिपींस, 2013)

तमाम संसाधन के बाद भी साइकिल का ही करते हैं उपयोग

जमुई जिले के खैरा प्रखंड क्षेत्र के मालवीय नगर, नवडीहा के रहने वाले अनिल कुमार की उम्र करीब 70 साल है और यह पिछले 50 सालों से भी अधिक समय से लगातार साइकिल का इस्तेमाल कर रहे हैं. शिक्षक की नौकरी के बाद सेवानिवृत हुए अनिल कुमार पारिवारिक रूप से काफी समृद्ध हैं. जमींदार परिवार में पैदा हुए अनिल कुमार के यहां तमाम तरह की सुविधाएं हैं. उनके घर में मोटरसाइकिल से लेकर गाड़ियां मौजूद हैं, पर आज भी यह साइकिल से ही चलते हैं. बाजार जाना हो या आसपास किसी काम के लिए जाना हो, वह साइकिल को ही इस्तेमाल में लाते हैं. इतना ही नहीं प्रतिदिन शाम 2 घंटे यह केवल साइकिल चलाते हैं, ताकि वो फिट रह सकें. अनिल कुमार का कहना है की साइकिल चलाने से उनकी सेहत बरकरार रहती है. उनके घुटनों में काफी दर्द होता था, लेकिन लगातार साइकिल चलाने के बाद अब वह दर्द चला गया है. साइकिल उनके फिटनेस का राज है.

साइकिलिंग से पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं यह लोग

जमुई में कुछ युवकों ने साइकिलिंग को बढ़ाने तथा साइकिल चलाकर पर्यावरण संरक्षण करने को लेकर काफी बेहतरीन प्रयास किया है. साइकिल यात्रा एक विचार मंच नामक संस्था बनाकर यह युवा लोगों को साइकिल चलाने की प्रेरणा देते हैं. इसमें कई सारे ऐसे लोग हैं जो सरकारी सेवा में हैं, तो कई सारे लोग अलग-अलग क्षेत्र में काम करते हैं. हरे राम कुमार सिंह, शेषनाथ राय, सिंटू कुमार, अजीत कुमार सहित कई ऐसे युवक हैं, जो पिछले करीब 5 सौ सप्ताह से लगातार साइकिल चलाकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हैं. सप्ताह के प्रत्येक रविवार को यह लोग जमा भी होते हैं, और साइकिल से यात्रा करते हुए जिले के अलग-अलग हिस्सों में जाते हैं. जहां जाकर यह लोगों को साइकिल चलाने की सलाह देते हैं और पौधे लगाकर पर्यावरण संरक्षण के दिशा में काम करते हैं. इस संस्था के हरे राम कुमार ने बताया की साइकिल एक ऐसा वाहन है, जिससे पर्यावरण को बिल्कुल भी नुकसान नहीं होता. ना ही इसमें पेट्रोल की आवश्यकता होती है, जिससे जीवाश्म ईंधन के खत्म होने की भी चिंता रहेगी. उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को साइकिल चलानी चाहिए. उन्होंने कहा कि जो लोग घर से थोड़ी दूर पर ऑफिस जाते हैं, वह गाड़ी की जगह साइकिल का इस्तेमाल करें तो पर्यावरण भी संरक्षित रहेगा और उनकी सेहत भी बनी रहेगी.

70 वर्षीय भीम ने आज तक दूसरे वाहन पर नहीं रखा है पैर, बना चुके हैं रिकॉर्ड

साइकिल के प्रति एक शख्स कि इतनी दीवानगी है कि उसने अपने पूरे जीवन में कभी दूसरे वाहन पर पैर तक नहीं रखा. इतना ही नहीं, उम्र के इस पड़ाव पर भी आकर उनकी यह दीवानगी कम ही नहीं हुई है. जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड क्षेत्र के मौरा गांव के रहने वाले 70 वर्षीय भीम प्रसाद मेहता साइकिल चलाने को लेकर कई रिकॉर्ड भी अपने नाम कर चुके हैं. भीम मेहता की उम्र जब 18 साल की थी, तब देवघर के सिनेमा हॉल में उन्होंने हिंदी फिल्म शोर देखी थी. फिल्म में एक्टर मनोज कुमार को साइकिल चलाते देख भीम ने उसे अपनी रियल लाइफ में उतार लिया. 18 साल की उम्र से ही उन्होंने अपना पूरा जीवन साइकिल को समर्पित कर दिया. भीम मेहता के बारे में लोग बताते हैं कि उन्हें लंबी दूरी में भी कहीं आना जाना होता है तो वो केवल साइकिल का ही इस्तेमाल करते हैं. भीम पिछले करीब 5 दशक से लगातार साइकिल की सवारी कर रहे हैं. उनका दावा है कि उन्होंने अपने जीवन में सबसे अधिक 122 घंटे और 17 मिनट तक लगातार साइकिल चलायी है. कई सारे प्रशस्ति पत्र उनके पास मौजूद है. भीम प्रसाद मेहता मूलतः बांका जिले के रहने वाले हैं, लेकिन ससुराल में सास-ससुर के बाद किसी के नहीं होने के कारण वह यहीं बस गए हैं और अब मौरा में ही रहते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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