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Gopalganj Assembly : कोर वोटरों के बिखरने के बीच भाजपा को अपनी सीट बचाने, तो कांग्रेस को कब्जाने की चुनौती

Gopalganj Assembly : कुल वोट 2.96 लाख, पुरुष 157066, महिला 138905, थर्ड जेंडर छह, प्रत्याशी आठसबसे अधिक मतदाता वैश्य जाति के कुल वोटरों के 17% वैश्य, 17% राजपूत, 15% मुसलमान, 14% यादव, ब्राह्मण व एसटी वोटर निर्णायक

gopalganj assembly : सदर विधानसभा क्षेत्र में कहीं घूम जाइए, आपको चुनाव वाली वह शोर नहीं मिलेगा. शहर में जब एंट्री करेंगे] तो कभी- कभी प्रचार गाड़ियां जिंदाबाद के नारे लगाते मिलेंगे. पोस्ट ऑफिस चौक पर रविवार की छुट्टी के दिन सुबह 10 बजे रिटायर कर्मी ध्रुप मिश्र मिल गये.

उनको मलाल इस बात का था कि जिस दौर में हम पहुंच गये हैं, इसके बाद युवाओं का भविष्य का क्या होगा. ध्रुप मिश्र अतीत से लेकर वर्तमान, जातीय गोलबंदी, राजनीति, स्थानीय मुद्दों पर स्पष्ट रूप से समझाते हैं. समस्याएं हैं. मुद्दे भी हैं. यहां हायर एजुकेशन नहीं है. काॅलेज है, तो शिक्षक नहीं हैं. एमए की पढ़ाई नहीं होती, लॉ कॉलेज, कृषि कॉलेज नहीं है. बेरोजगारी, करप्शन सबसे बड़ा मुद्दा है. लेकिन, चुनाव में जाति फैक्टर ही काम आने लगता है. लोग तो लंबी-चौड़ी बातें जरूर करते हैं. वोट देने के पहले जाति को देखने लगते हैं. उसी जाति की गोलबंदी में मुद्दे भी हवा हो गये हैं. आंबेडकर चौक के पास राजेश शर्मा व शेख अकरम मिल जाते हैं. वे स्पष्ट राजनीति समझा देते हैं. भाजपा की इस सीट पर 20 वर्षों से कब्जा है. इस बार जिला परिषद के चेयरमैन सुबास सिंह को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है. वहीं, टिकट नहीं मिलने से विधायक कुसुम देवी का दर्द छलक पड़ा. भाजपा के शीर्ष नेताओं की पहल पर अब वे मान कर भाजपा की खातिर वोट मांग रहीं. जबकि, भाजपा के ही कद्दावर नेता रहे अनूप लाल श्रीवास्तव बगावत कर निर्दलीय उतर गये. उनको जन सुराज ने समर्थन दे दिया.

भाजपा के कोर वोटरों में बिखराव को रोकने की बड़ी चुनौती है, तो कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार ओमप्रकाश गर्ग को बनाया है. यादव, मुसलमान, बिंद, मल्लाह इंडिया गठबंधन के कोर वोटर माने जाते हैं. इस बार पूर्व सांसद अनिरुद्ध प्रसाद यादव उर्फ साधु यादव ने अपनी पत्नी इंदिरा देवी को बसपा से चुनाव में उतारा है, तो एआइएआइएम ने अनस सलाम को चुनाव मैदान में उतारा है. इंदिरा यादव यादव वोट व अनस सलाम मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी कर रहे. ऐसे में दोनों गठबंधनों में घात-प्रतिघात भी कम नहीं है. साथ रह कर ही खेल बिगाड़ने में भी कुछ लोग जुटे हैं. गोपालगंज के रणक्षेत्र में आठ योद्धा हैं. मुख्य मुकाबला तो भाजपा के सुबास सिंह व कांग्रेस के ओम प्रकाश गर्ग के बीच ही है. जन सुराज से समर्थित निर्दलीय अनूप कुमार श्रीवास्तव, बसपा से इंदिरा यादव, एआइएमआइएम से अनस सलाम, आम आदमी पार्टी से बृज किशोर गुप्ता, भारतीय इंसान पार्टी से मोहम्मद हयातुल्लाह व समता पार्टी से सहाना खातून भी अपना नया समीकरण बनाने में जुटे हैं. अभी ब्राह्मण वोटर बैकुंठपुर में राजपूत वोटरों के निर्णय का इंतजार कर रहे. वहां, मिथिलेश तिवारी को राजपूत वोट नहीं मिला, तो यहां भी ब्राह्मण वोटर अपना निर्णय ले सकते हैं. जबकि वैश्य मतदाता अब भी बिखरे हुए हैं. उनमें टिकट नहीं मिलने की नाराजगी भी साफ दिख रही है.

गोपालगंज सीट पर 11 बार राजपूतों का रहा कब्जा

आजादी से अब तक के इतिहास पर नजर डालेंगे, तो सदर विधानसभा सीट पर 11 बार राजपूत जाति से ही विधायक चुने गये. देश के आजाद होने के बाद 1951 में स्वतंत्रता सेनानी कमला राय पहली बार चुनाव जीते. 1962 में कांग्रेस से ही अब्दुल गफूर चुने गये. 1967 में एच सिन्हा, तो 1969 व 1972 में रामदुलारी सिन्हा, 1977 में राधिका देवी, 1980 में काली प्रसाद पांडेय, 1985-90 में सुरेंद्र सिंह, 1995 में रामावतार साह, 2000 अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव, 2005 में फरवरी में रेयाजुल हक राजू, 2005 के नवंबर से अब तक सुभाष सिंह व उनकी पत्नी कुसुम देवी नेतृत्व करती रही हैं. यहां कोर वोटरों के भरोसे हर चुनाव कांटे की होती रही है. चुनाव परिणाम से भी स्पष्ट है कि गोपालगंज सदर की राजनीति में राजपूत जाति का वर्चस्व रहा है. इस बार यहां भाजपा से जिला परिषद अध्यक्ष व युवा सुबास सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है. शहर के डाकघर चौक पर सुभाष प्रसाद की चाय दुकान पर बैठे महेश प्रसाद, हरेराम राय ने कहा कि अब लड़ाई तो सीधी हो गयी है. दोनों दलों ने अपने वोटों के बिखराव को रोकने के लिए पूरी ताकत भी लगा दी है.

दियारा में गंडक नदी की तबाही जस की तस

सदर विधानसभा क्षेत्र के लगभग 16 गांव गंडक नदी की तबाही को हर साल झेलता है. साल दर साल फसलों की बर्बादी से किसान पूरी तरह से टूट गये हैं. विशुनपुर बांध पर कुछ दुकानें हैं, जहां सुबह से शाम लोगों की आवाजाही रहती है. यहां बैठी धौलरिया देवी, राम सुरत मुसहर, उमेश मुसहर ने कहा कि 20 वर्षों से स्थिति जस की तस है. दियारा के अधिकतर लोग बांध, सड़क के किनारे बसे हैं, जो संपन्न हैं वे शहर में जमीन खरीदकर बस गये हैं. रोजगार यहां सबसे बड़ा दर्द है. सैकड़ों की संख्या में आज भी ऐसे परिवार हैं, जो मजदूरी पर निर्भर हैं. मजदूरी नहीं मिली, तो उनके घर का चूल्हा तक नहीं जलता. ऐसे में इस चुनाव में रोजगार भी बड़ा मुद्दा बना हुआ है.

एनडीए को अपने विकास के संकल्प का सहारा

उचकागांव की हवा भांपने के लिए जब हम श्यामपुर बाजार में पहुंचे, तो चाय की दुकान पर चुनाव पर बहस छिड़ा हुआ था. सर्वेश सिंह बताते हैं कि एनडीए को अपने विकास वाले संकल्प पर जीत का भरोसा है. यहां तो नीतीश कुमार की ओर से दी गयी फ्री बिजली, महिलाओं को दिये गये रोजगार, सरकारी नौकरी, महिलाओं को दो-दो लाख की सहायता मिलने, नौकरी, रोजगार जैसे संकल्प पर जीत का भरोसा है. बगल में बैठे रमेश सिंह ने कहा कि कानून व्यवस्था, बीमार बिहार को पटरी पर लाने का काम भी तो एनडीए की सरकार ने किया है. अब नया संकल्प सहारा बना है.

वक्फ बिल, हर घर से नौकरी का मुद्दा भी जुबां पर आया

गोपालगंज शहर से सटा इलाका है थावे. वहां रेलवे स्टेशन पर बैठे मनोज खरवार, युगुल किशोर गुप्ता, जितेंद्र यादव करे चुनाव को लेकर जब उटकेरा गया, तो कहने लगे कि इस चुनाव में मिल-जुलकर सरकार बनेगी. चुनाव के बाद क्या होगा कोई नहीं जानता. जहां तक मुस्लिम वोट का सवाल है, तो वे वक्फ बिल, हर घर सरकारी नौकरी देने का प्रण इंडिया गठबंधन की ओर से लाने का जो वायदा है, उसे नकारा नहीं जा सकता. कांग्रेस को अपने प्रण के दम पर यहां चुनाव जीतने का भरोसा है.

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