मांझा. विधानसभा चुनाव का शोर अब थम चुका है और बरौली विधानसभा का पूरा राजनीतिक कैनवाश अब मतगणना की तारीख पर टिक गया है. मतदाताओं का फैसला इवीएम में सुरक्षित है और प्रत्याशियों की धड़कनें अब हर गुजरते दिन के साथ तेज हो रही हैं. दोनों प्रमुख खेमों में बेचैनी के साथ-साथ रोमांच भी झलक रहा है. सोशल मीडिया पर समर्थक अपने-अपने दल की जीत का दावा करने में जुटे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार मुकाबला बिल्कुल कांटे का है और हार-जीत का अंतर बेहद कम रह सकता है. मतदान प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में थोड़ा अधिक रहने से प्रत्याशियों की उम्मीदें भी बढ़ी हैं. खासकर महिला मतदाताओं की भागीदारी उत्साहजनक रही. हालांकि प्रचार के दौरान धनबल का प्रभाव साफ नजर आया. रैलियों, लाव-लश्कर और वाहनों के लंबे-लंबे काफिलों ने लोकतांत्रिक मूल्यों पर सवाल खड़ा कर दिया. जनता की जुबान पर आज भी वही सवाल गूंज रहा है कि क्या वोट की ताकत लोकतंत्र को दिशा देगी या फिर धन की ताकत फैसले को झुका देगी? अब सबकी निगाहें मतगणना के दिन पर टिकी हैं, जब यह साफ होगा कि जनता ने किसे अपना वास्तविक प्रतिनिधि चुना.
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