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पदाधिकारियों के सिरदर्द बने बेचिरागी बन चुके गांवों के मतदाता

पदाधिकारियों के सिरदर्द बने बेचिरागी बन चुके गांवों के मतदाता जनगणना, 2011 एसटी आबादी प्रभावित कर रही आरक्षण कोसंवाददाता,पटनापंचायत चुनाव में बेचिरागी हो चुके गांव के लोग पदाधिकारियों के लिए सिरदर्द बन गये हैं. 2001 या उसके पहले की जनगणना में बेचिरागी हो चुके गांव 2011 की जनगणना में फिर से बसावट के रूप में […]

पदाधिकारियों के सिरदर्द बने बेचिरागी बन चुके गांवों के मतदाता जनगणना, 2011 एसटी आबादी प्रभावित कर रही आरक्षण कोसंवाददाता,पटनापंचायत चुनाव में बेचिरागी हो चुके गांव के लोग पदाधिकारियों के लिए सिरदर्द बन गये हैं. 2001 या उसके पहले की जनगणना में बेचिरागी हो चुके गांव 2011 की जनगणना में फिर से बसावट के रूप में गणना किये जा चुके हैं. अब समस्या आ रही है कि जिस गांव में वह रह रहे हैं, वहां के मतदाता नहीं हैं और 2011 की जनगणना में जिस गांव में आबादी दिखायी है, वहां कोई रहता नहीं है. संबंधित पंचायत की मतदाता सूची में नाम नहीं जुटा तो वे किसी भी पंचायत मतदाता नहीं रह जायेंगे. 2011 की जनगणना के समय प्रखंडों में पदस्थापित प्रखंड विकास पदाधिकारी ने उस समय की जनसंख्या के आधार पर मतगणना करायी. अब उनकी जगह पर नव पदस्थापित प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा पंचायत चुनाव के लिए मतदाता सूची को तोड़कर वार्ड के अनुसार सूची तैयार करायी गयी है. इसमें कई त्रुटियां सामने आ रही हैं. राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जनगणना 2011 को आधार मानकर ही आरक्षण व मतदाताओं के नाम को शामिल कराया जा रहा है या उससे हटाया जा रहा है. जिन राजस्व गांवों को 2011 में आबादी वाला बताया गया है, वहां की जनसंख्या किसी अन्य पंचायत में रह रही है. किशनगंज जिला पदाधिकारी ने इसी तरह के कुछ राजस्व गांव को शामिल करने का प्रस्ताव भी आयोग को भेजा था. आयोग को जनगणना 2011 के इतर जाने की अनुमति पंचायती राज अधिनियम नहीं देता है. दियारा क्षेत्र में इस तरह की समस्या आ रही है. पंचायतों के पदों में आरक्षण में एक दूसरी बड़ी समस्या आदिवासी जनसंख्या को लेकर आ रही है. जनगणना 2011 के दौरान कई गांवों में झारखंड से ईंट-भट्ठों पर काम करनेवाले आदिवासी आकर रह रहे थे. उनकी जनगणना संबंधित गांव के साथ कर दी गयी है. इसे जनगणना 2011 के अंतिम रूप से प्रकाशित जनसंख्या में दिखाया गया है. आयोग पंचायत की पूरी जनसंख्या के आधार पर पदों के आरक्षण का निर्धारण कर रहा है तो गांव के लोगों का दावा है कि उनकी पंचायत में एक भी आदिवासी नहीं है. बिना आदिवासी आबादीवाले गांवों में आरक्षण के निर्धारण में आदिवासी जनसंख्या को शामिल किया जा रहा है.

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