अपराधियों काे ट्रेस करने तक सिमटा साइबर सेलमिशन 2016 : साइबर क्राइम रोकने को पुलिस नहीं है तैयार विशेषज्ञों ने दी साइबर थाना और साइबर फोरेंसिक लैब बनाने की सलाहजालसाज अपराधी धमकी और तमंचे से ई-फ्रॉड तक पहुंच गये, लेकिन पुलिस की जांच का तरीका वहीं है. हर हाथ में मोबाइल, इंटरनेट और पर्स में नोट की जगह प्लास्टिक मनी का ट्रेंड शुरू हो चुका है. इन सविधाओं में जोखिम भी उतनी ही तेजी के साथ बढ़ा है. कम रिस्क के इस अपराध में बड़ी संख्या में शातिर लगे हुए हैं, लेकिन इससे निबटने को न तो पुलिस तैयार है और न ही समाज. प्रभात खबर ने मिशन 2016 की शुरुआत की है, जिसमें विभिन्न समस्याओं पर विशेषज्ञों की राय पर आधारित रिपोर्ट की शृंखला पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास किया है. तसवीर की जगह कार्टून लगावेसंवाददाता, गोपालगंज साइबर अपराधी जिले में प्रतिदिन 9-10 लोगों को अपना शिकार बनाते हैं. अधिकतर मामलों में पुलिस प्राथमिकी तक दर्ज नहीं करती. प्राथमिकी दर्ज भी हो जाये, तो कार्रवाई अनुसंधान के दौरान कांड को सूत्रहीन करार दे दिया जाता है. यह गंभीर विषय है. साइबर विशेषज्ञ डॉ आरके मिश्र का मानना है कि इस तरह के अपराध को रोकने के लिए पुलिस और समाज को तैयार करना पड़ेगा. वर्ष 2008 में प्रदेश में साइबर सेल बनाने की शुरुआत हुई और वर्ष 2011 तक हर जिले में साइबर सेल बन गया, मगर इसका काम केवल शिकायत आने के बाद अपराधियों को ट्रैस करने तक का है. आगे की कार्रवाई थाने से होती है. उन्होंने इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए कुछ सुझाव भी दिये.खाता साफ होने के बाद भटकते हैं पीड़ितसाइबर अपराधियों के शिकार होने के बाद पीड़ित जब पुलिस के पास जाता है, तो उसे टरका दिया जाता है. थाना पुलिस साइबर सेल और साइबर सेल संबंधित थाने के माध्यम से आने की बात कहता है. ऐसे में अधिकतर पीड़ित निराश होकर घर बैठ जाते हैं.स्थानीय स्तर पर यह हो सकता हैसभी जिलों में क्राइम मीटिंग की तरह ड्यूटी के समय में से ही एक घंटे का समय निकाल इंस्पेक्टर, जब इंस्पेक्टर और सिपाहियों को साइबर क्राइम की ट्रेनिंग दी जाये. उन्हें यह बताया जाये कि साइबर अपराध के नये ट्रेंड क्या चल रहे हैं और उनके पास पीड़ित आता है, तो क्या कार्रवाई करें. इसके अलावा आइटी एक्ट की जानकारी देने साथ-साथ साइबर क्राइम के अलावा अन्य जघन्य कांड में डिजिटल एविडेंस कलेक्ट करने की विधि बतायी जाये.इन सुधारों की है जरूरतसभी बड़े जिलों में साइबर पुलिस थाने बनाये जाएं. शिकायतों पर जांच के बाद कार्रवाई भी यहीं से हो.आइटी एक्ट के मुकदमे की विवेना का अधिकार इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के अधिकारी को है. हर जिले में इंस्पेक्टरों की कमी है, इसलिये साइबर क्राइम के मामलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है.हर जिले में साइबर क्राइम विंग अलग से बनाया जाये. इसके लिए एसपी के साथ साथ 4 -5 इंस्पेक्टर हो. नियुक्ति और प्रशिक्षण की व्यवस्था अलग से हो.प्रदेश में साइबर फोरेसिंक लैब नहीं है. ऐसे में जांच के दौरान इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस की जांच को उन्हें सीबीआइ की पटना स्थित लैब में भेजा जाता है. इससे जांच में देरी होती है और अपराधियों को लाभ मिल जाता है. पुलिसकर्मियों को डिजिटल एविडेंस सीज करने की ट्रेनिंग दी जाये. इन्हें कैसे सीज किया जाये और रखा जाये. साइबर विंग में तैनाती के बाद पुलिस अधिकारी या कर्मचारी की तैनाती को समय तय हो. ऐसा नहीं होना चाहिए कि ट्रेंड होने के कुछ दिन बाद उन्हें किसी दूसरी जगह भेज दिया जाये.
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अपराधियों को ट्रेस करने तक सिमटा साइबर सेल
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