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एक्जिट पोल ने चकरा दिया, दोनों पक्षों को आत्ममंथन की जरूरत : शिवानंद

एक्जिट पोल ने चकरा दिया, दोनों पक्षों को आत्ममंथन की जरूरत : शिवानंद : पटनापूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने शुक्रवार को कहा कि एक्ज़िट पोल ने सबका सिर चकरा दिया है. उन्होंने कहा कि अंतिम नतीजा निकलने तक ऊहापोह की यह स्थिति बनी रहेगी. बहरहाल चुनाव परिणाम चाहे जो हो, लेकिन एक बात साफ है […]

एक्जिट पोल ने चकरा दिया, दोनों पक्षों को आत्ममंथन की जरूरत :

शिवानंद : पटनापूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने शुक्रवार को कहा कि एक्ज़िट पोल ने सबका सिर चकरा दिया है. उन्होंने कहा कि अंतिम नतीजा निकलने तक ऊहापोह की यह स्थिति बनी रहेगी. बहरहाल चुनाव परिणाम चाहे जो हो, लेकिन एक बात साफ है कि दोनों पक्षों को आत्ममंथन करने की जरूरत है.

शिवानंद ने कहा कि इस बार का चुनाव देखकर दीया और तू़फान की लड़ाई वाला गीत की याद आ गया. उन्होंने कहा कि भारत की पूरी सरकार चुनाव लड़ने बिहार में उतर गयी थी. नरेंद्र मोदी ने तो यहां अपना सबकुछ दावं पर लगा दिया. बावजूद इसके पांच में तीन के अनुमान बिहार में गंठबंधन की सरकार बन रही है. स्थिति बता रही है कि मोदी और उनके समर्थकों को आत्मचिंतन की ज़रूरत है.

नरेन्द्र मोदी जी धूमकेतु की तरह भारतीय राजनीति के क्षितिज पर प्रकट हुए थे. इतनी जल्दी उनकी चमक क्यों धुंधलाने लगी है! अभी तक मोदी सरकार का कोई ठोस काम नहीं दिखा है, लेकिन धार्मिक उन्माद की उनकी भाषा ने देश में चिंता ज़रूर पैदा कर दी है. उनको ध्यान रखना होगा कि उन्माद किसी भी समाज का स्थाई भाव नहीं होता है.

ऊहापोह की वजह गंठबंधन के नेताओं को समझना होगा :महागंठबंधन पर शिवानंद ने कहा कि पिछड़ी जातियां, दलित और अकलियत समाज का समर्थन ही उनकी रीढ़ है,

इसलिए गठबंधन के नेताओं पर जात-पात की राजनीति करने का आरोप लगाया जाता रहा है. लेकिन नान्ह जात वाले उनके साथ कैसे रिश्ता बनाएं, जो आज भी मन ही मन उनको नान्ह और अपने को श्रेष्ठ समझते हैं. संबंध तो बराबरी में बनता है. जाति व्यवस्था का आधार ही गैरबराबरी है, इसलिए नीचे वाले एक तरफ दिख रहे हैं,

तो ऊपर वाले दूसरी तरफ. हालांकि, गंठबंधन का आधार इतना बड़ा है कि मुझे लगता है कि उसमें थोड़ा बहुत क्षरण के बावजूद इसको स्पष्ट बहुमत मिल जा सकता है. उन्होंने कहा कि इतने बड़े आधार के बावजूद ऊहापोह की वजह गंठबंधन के नेताओं को समझना होगा. गंठबंधन में दो के अलावा तीसरा नेता नहीं दिख रहा है.

अतिपिछड़ा, दलित, मुस्लिम और महिला समाज से नेतृत्व उभारना होगा, अन्यथा भविष्य में और ज्यादा कठिनाई होगी. उन्हें याद रखना होगा कि मोहन भागवत हमेशा मदद नहीं पहुंचायेंगे.

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