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अमरूद की खातिर की गयी थी अंकित की हत्या
फुलवरिया : इस तस्वीर को जरा गौर से देखिए. यह वही मां है जिसकी गोद उसी गांव के तीन लोगों ने ही उजाड़ दी. उसकी सुनी आंखों के दर्द को समझिए. चेहरे पर शून्य का भाव. बार-बार आंचल को निहारतीं आंखें, अचानक उसकी निद्रा टूटती है और वह फिर आंचल से उन आंखों को पोंछने […]
फुलवरिया : इस तस्वीर को जरा गौर से देखिए. यह वही मां है जिसकी गोद उसी गांव के तीन लोगों ने ही उजाड़ दी. उसकी सुनी आंखों के दर्द को समझिए. चेहरे पर शून्य का भाव. बार-बार आंचल को निहारतीं आंखें, अचानक उसकी निद्रा टूटती है और वह फिर आंचल से उन आंखों को पोंछने लगती है. आंखों के आंसू भी अब सूख चुके हैं.
चेहरे के भाव यह बताने के लिए काफी हैं कि वो कितना दर्द सह रही है. जमीन पर बैठकर शून्य को निहारतीं आंखें. मानो एक सवाल पूछ रही हो कि उस मासूम ने किसी का क्या बिगाड़ा था. सिर्फ एक अमरूद ही तो तोड़ा था. अगर दुश्मनी ही थी तो मुझे मार डालते. कम-से-कम मेरे लाल की जिंदगी तो बख्स देते. पास ही उसकी सास बैठी है.
सास के हाथों में हलवा की कटोरी है, जिससे कभी अंकित हलवा खाता था. उस कटोरी को देखकर उसकी आंखें भी नम हो जा रही हैं. फिर अचानक से विद्यावती देवी उठती है और कटोरी सास के हाथों से छीन कर अचानक चूल्हे की ओर हलवा बनाने जाती है. फिर कहती है मेरे बाबू को भूख लगी होगी. सहसा उसे यह एहसास होता है कि अब हलवा खाने वाला नहीं रहा. उसकी होठों पर बस एक ही सवाल है कि आखिर मेरे बेटे को इस कदर तड़पा कर क्यों मारा गया.
उसे विश्वास है कि उसके जिगर का टुकड़ा जरूर आयेगा. फिर परिवार के अन्य सदस्य पहुंचते हैं. बदहवास हो चुकी विद्यावती को संभालने की कोशिश करते हैं. अचानक से विद्यावती चौंक जाती है. आंचल को छूने से मना करती है. कहती है कि मत छुओ. मेरा बाबू मेरी आंचल में सोया है. यह शब्द हर किसी के सीने छलनी कर देते हैं.
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