गया जी. सनातन धर्म में वृक्ष-पूजा का अपना एक स्थान हैं, जिसमें एक वट-पूजा (वर पूजा) है. क्षेत्र वाद में कहीं ज्येष्ठ अमावस्या तो कहीं ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है. वट पूजा के बारे में पुराणों में चर्चा है कि प्रजापति ब्रह्मा जी की तीन पत्नी थी- गायत्री, सावित्री और सरस्वती. मद्र (मद्रास) देश के राजा अश्वपति निःसन्तान थे. उन्होंने सावित्री देवी की उपासना के फल स्वरुप एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम उन्होंने सावित्री ही रखा. सावित्री की युवावस्था आने पर स्वयं वर ढूंढने की आज्ञा मिली. सावित्री ने मंत्रियों के साथ भ्रमण कर के शाल्वदेश राजा जिनका राज्य शत्रुओं ने जीत लिया था, द्युमत्सेन के सत्यवक्ता पुत्र सत्यवान को वरण कर लिया. नारद जी सत्यवान को अल्पायु होने की सूचना दी. फिर भी दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ. जब अन्त समय आया उस दिन सत्यवान लकड़ी काटने जंगल जा रहा था. तब सावित्री भी साथ गयी और वह घड़ी आ गयी जब यमराज का सामना हुआ. यमराज सत्यवान की आत्मा को लिए जा रहे थे, पीछे सावित्री चल पड़ी. अन्ततः यमराज ने सावित्री को वर मांगने को कहा. सावित्री ने तीन वर मांगे. एक सास-ससुर को नयन सुख के साथ खोया राज्य प्राप्त हो. दूसरा पिता को सौ पुत्र हो और तीसरा मेरे भी सौ पुत्र हों. सूर्य पुत्र यमराज द्वारा एवमस्तु कहने पर पुनः सावित्री ने कहा मेरे पुत्र कैसे होंगे? पति को आप लिए जा रहे हैं. अपनी भूल स्वीकार कर के यमराज ने सत्यवान के आत्मा को लौटा दिया और सत्यवान अल्पायु से दीर्घायु हो गया. सत्यवान सावित्री और यमराज का मिलन वट-वृक्ष के नीचे हुआ था. इससे वट पूजनीय हो गया. ऐसे पीपल को विष्णु रूप और वर को शिवरूप प्राप्त है. यह व्रत तीन दिनों का है. परन्तु प्रचलित एक ही दिन किया जाता है. वट की पूजा कर सौभाग्यवती स्त्री प्रदक्षिणा करती हैं. फेरी देने में मुकुनदाना, मूंगफली का दाना, फल, जौ, सिन्दूर गाठ का प्रयोग किया जाता है. पंखे से पौन कर के पति को पंखा झेलती है. उस पंखे को घर में रखने के साथ-साथ ब्रह्मा जी के निमित्त सौभाग्य सामग्री और एक पंखा दान भी करना ऊत्तम है. विवाहिता के लिए यह उत्तम व्रत है. देश परम्परा के अनुसार इसे अवश्य पालन करना चाहिए. क्या है 2025 में वट सावित्री व्रत की स्थिति हृषीकेश महावीर पञ्चाङ्ग 26 मई 2025 को दिन 10:54 से प्रारम्भ होकर दूसरे दिन 8:32 दिन तक बताते हैं. अन्नपूर्णा दिन 10:33 से प्रारम्भ होकर दूसरे दिन 8:31 तक बताते हैं. आदित्य 11:05 से आरम्भ होकर दूसरे दिन 8:31तक बताते हैं. मिथिला 11:02 से आरम्भ होकर दूसरे दिन 8:38 तक बताते हैं. मार्तण्ड दिन 12:12 से दूसरे दिन 8:32 तक दर्शाते हैं. इस तरह ऊपरिवत पञ्चाङ्ग अमावस्या का भोग बताते हुए 26 मई को व्रतोपवास बताया हैं . समस्या- व्रतियों को करना होगा अमावस्या की प्रतिक्षा या सुबह से चतुर्दशी में वट पूजन करने पर व्रती एवं आचार्य, पंडित होगें दोषभागी. क्यों न दूसरे दिन औदयिक अमावस्या में सुबह से वट पूजन किया जाये. जो लोक-व्यवहार में देखा जाता है, जिसका समर्थन शताब्दी पञ्चाङ्ग (इसका प्रकाशन आजाद भारत से कई वर्ष पूर्व हुआ है) व्रज भूमि पञ्चाङ्ग द्वारा प्राप्त है. प्रस्तुति : आचार्य नवीन, गया जी धाम.
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