गया जी. सीयूएसबी के बायोइन्फरमेटिक्स विभाग के प्रो आरएस राठौर और उनके शोध छात्र एम कुमार ने एक अभिनव और बहुउपयोगी ऑनलाइन उपकरण ‘रामप्लॉट’ विकसित किया है. यह टूल प्रोटीन संरचना के विश्लेषण के लिए रामचंद्रन मानचित्रों का दो-आयामी और त्रि-आयामी रूप में निर्माण और अध्ययन करने की सुविधा प्रदान करता है. प्रो राठौर ने बताया कि पहले ऐसे ऑनलाइन सर्वर की भारी कमी थी, जिससे शोधकर्ताओं के लिए विविध विश्लेषण कर पाना मुश्किल होता था. अब ‘रामप्लॉट’ की मदद से वैज्ञानिक गैर-मानक अमीनो एसिड की संरचनात्मक वरीयताओं का परीक्षण कर सकते हैं और आणविक सिमुलेशन के दौरान संरचनात्मक परिवर्तन को भी ट्रैक कर सकते हैं. यह टूल https://www.ramplot.in पर निःशुल्क उपलब्ध है, जबकि ऑफलाइन उपयोग के लिए इसे GitHub और अन्य ऑनलाइन रिपॉजिटरी से डाउनलोड किया जा सकता है. सीयूएसबी के पीआरओ मोहम्मद मुदस्सिर आलम ने बताया कि यह शोध कार्य प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हुआ है. कुलपति व संकाय सदस्यों ने दी बधाई सीयूएसबी के कुलपति प्रो कामेश्वर नाथ सिंह ने इस उपलब्धि पर शोधकर्ता टीम को बधाई दी और कहा कि यह विश्वविद्यालय के लिए गर्व की बात है. इस अवसर पर स्कूल ऑफ अर्थ, बायोलॉजिकल एंड एनवायरनमेंटल साइंसेज के डीन प्रो रिजवानुल हक, बायोइन्फरमेटिक्स विभाग के अध्यक्ष प्रो आशीष शंकर, डॉ. कृष्ण कुमार ओझा, डॉ दुर्ग विजय सिंह, डॉ विजय कुमार सिंह और अनिल कुमार ने भी टीम को शुभकामनाएं दीं. मानचित्र की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि प्रो राठौर ने विस्तार से बताया कि प्रोटीन, जो जैविक मैक्रोमोलेक्यूल होते हैं, बीस प्राकृतिक अमीनो एसिड से बने होते हैं और शरीर में विकास, मरम्मत, सिग्नलिंग, एंजाइम क्रिया आदि अनेक कार्यों के लिए उत्तरदायी हैं. इनकी संरचना का विश्लेषण अत्यंत आवश्यक है क्योंकि प्रोटीन का कार्य उसकी संरचना पर निर्भर करता है. 1963 में वैज्ञानिक जीएन रामचंद्रन द्वारा प्रस्तावित दो-आयामी मानचित्र के माध्यम से प्रोटीन संरचना की गुणवत्ता का मूल्यांकन करना संभव हुआ, जिससे अमीनो एसिड स्तर पर भी खामियों की पहचान की जा सकती है. यह मानचित्र आज आणविक जीवविज्ञान में संरचना की वैधता जांचने का एक आवश्यक उपकरण बन चुका है. शोध को मिलेगा वैश्विक लाभ ‘रामप्लॉट’ न केवल शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं के लिए बल्कि दवा कंपनियों और जैव प्रौद्योगिकी संस्थानों के लिए भी अत्यंत उपयोगी साबित होगा. इससे न केवल विश्लेषण की प्रक्रिया सरल होगी, बल्कि प्रोटीन इंजीनियरिंग और दवा विकास जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान को नयी दिशा मिलेगी.
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