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पाश्चात्य की चकाचाैंध में पड़ अपनी संस्कृति खाेने की मिली सजा

गया: कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी का संजय सहाय द्वारा नाट्य रूपांतरित व निर्देशित नाटक ‘विनाेद’ की प्रस्तुति बुधवार की शाम रेनेसां में की गयी. कलाकाराें के हास्य-विनाेद व भावपूर्ण प्रस्तुति देख दर्शक वाह-वाह कह उठे. नाटक की प्रस्तुति जनसत्ता के प्रधान संपादक मुकेश भारद्वाज व उनकी पत्नी के सम्मान में स्थानीय कलाकाराें ने […]

गया: कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी का संजय सहाय द्वारा नाट्य रूपांतरित व निर्देशित नाटक ‘विनाेद’ की प्रस्तुति बुधवार की शाम रेनेसां में की गयी. कलाकाराें के हास्य-विनाेद व भावपूर्ण प्रस्तुति देख दर्शक वाह-वाह कह उठे. नाटक की प्रस्तुति जनसत्ता के प्रधान संपादक मुकेश भारद्वाज व उनकी पत्नी के सम्मान में स्थानीय कलाकाराें ने किया. नायक के राेल में मनु मणि ने चक्रधर भारद्वाज व प्रतिभा ने लुसी का किरदार निभाया. लुसी विदेशी छात्रा है. चक्रधर भारद्वाज विशुद्ध भारतीय संस्कृति व ब्राह्मण वेशधारी छात्र है. संस्कृत में पांडित्य. कॉलेज के शरारती छात्राें ने उसे अपना निशाना बनाया व लुसी काे उसपर फिदा हाेने का भुलावा दिया. चक्रधर उनकी बातों में आ गया. उसने स्वांग रचना शुरू कर दिया.
चक्रधर शरारती छात्राें के फॉल्स चिट्ठी काे लुसी का पत्र समझ कर भारतीय संस्कृति काे ताक पर रख पाश्चात्य संस्कृति व वेश-भूषा धारण कर लिया. कॉलेज के सहपाठियाें ने मजे लेने के लिए उससे सहभाेज कराया. इसमें भारतीय व विदेशी व्यंजन व डांस का भी आयाेजन हुआ. जब फाइनल परीक्षा की घड़ी आयी आैर साथ छाेड़ने की नाैबत आयी, ताे शादी-शुदा चक्रधर काे लूसी से जुदाई की यादें आने लगीं. वह उसे प्रेमपाश में बांध लेना चाहता था.
लुसी काे चक्रधर का वेश-भूषा, हाव-भाव बदलती बात समझ में नहीं आती थी. चूंकि, उसका उसके प्रति काेई आकर्षण था ही नहीं. एक दिन अकेले में टहल रही लूसी के पास चक्रधर अपने प्रेम का इजहार करते हुए उसका हाथ थाम लेता है. गुस्से से लाल लूसी उसे न केवल भला-बुरा कहती है बल्कि चाटे भी मारती है आैर पत्र न लिखने की बात कहती है. वह उसे बताती है कि उसके शरारती दाेस्ताें की यह चाल रही हाेगी. लूसी ने यह शिकायत प्रिंसिपल से करने की धमकी दी.
यह बात चक्रधर अपने दाेस्त गिरिधर व नइम काे बताता है आैर उसे फॉल्स पत्र देने की बात पर भला-बुरा कहता है, ताे दाेस्ताें काे गलती का अहसास हाेता है. आैर अंत में लूसी इस बात पर राजी हाेती है कि वह 20 हजार रुपये फिर चक्रधर से 20 बार सभी के सामने उठक-बैठक पर बात बनेगी. चक्रधर 20 बार उठक-बैठक पर राजी हाे, ऐसा ही करता है. नाटक यह मैसेज छाेड़ गया कि बाहरी चकाचाैंध व भुलावे में पड़ कर अपनी संस्कृति व वेश-भूषा व्यक्ति काे कभी नहीं बदलनी चाहिए. नाटक के अंत में जनसत्ता के प्रधान संपादक मुकेश भारद्वाज ने कलाकाराें काे ढेर सारी बधाइयां दीं व कहा कि शानदार, लाजवाब रहा.
यह प्रेम का व्हील चेन है. नाटक में राजनीतिक मैसेज, भारतीय व पाश्चात्य संस्कृति का मैसेज छिपा है. उन्हाेंने कहा कि जाे काम यहां हाे रहा है वह मेट्राे सिटी में भी नहीं हाे रहा. उन्हाेंने कहा कि समाज कितने मुश्किलों के दाैर से गुजर रहा है, इसे समझना हाेगा.

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