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गया : रैनबसेरों में ठिठुर कर गुजार रहे रात

गया : किसी तरह रैन बसेरे में ठिठुर कर रात गुजार लेते हैं. यहां अलाव 10 बजे रात तक जलाया जाता है. रैन बसेरा के अंदर आने पर दो पतले कंबल दिये जाते हैं, जिससे ठंड नहीं जाती है. ऐसे में पूरी रात ठिठुर कर ही गुजारनी पड़ती है. ये बातें शनिवार की रात गांधी […]

गया : किसी तरह रैन बसेरे में ठिठुर कर रात गुजार लेते हैं. यहां अलाव 10 बजे रात तक जलाया जाता है. रैन बसेरा के अंदर आने पर दो पतले कंबल दिये जाते हैं, जिससे ठंड नहीं जाती है. ऐसे में पूरी रात ठिठुर कर ही गुजारनी पड़ती है.
ये बातें शनिवार की रात गांधी मैदान स्थित रैन बसेरे में रह रहे गुरुआ के रहनेवाले रिक्शा चालक संजय कुमार ने कहीं. संजय बताते हैं कि रात में शौच की जरूरत होने पर बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है. यहां शौचालय में पानी नहीं रहता है. वहीं, शेखपुरा के अइपनी गांव से यहां देहाड़ी पर बिजली पोल गाड़ने आये मजदूर पिंटू कुमार व सुमन कुमार ने कहा कि रैन बसेरा में कंबल ऐसा मिलता है कि मजबूरी में बैठ कर ही रात गुजार देते हैं.
कंबल पतला व छोटा है, जिसके कारण सोने पर पैर बाहर ही निकल जाता है. बहार जब तक अाग जलती है, तब तक तो किसी तरह समय गुजर जाता है. इसके बाद भगवान भरोसे ही रात गुजारते हैं. गौरतलब है कि शहर में तीन रैन बसेरे 12-12 बेड का गांधी मैदान के पास व एक 12 बेड का रैन बसेरा पंचायती अखाड़ा में गरीबों के लिए चलाया जा रहा है.
यहां रैन बसेरा चालू करते वक्त अधिकारियों ने कहा था कि रैन बसेरा गरीबों के लिए होटल होगा. यहां सस्ते दाम पर खाना, शौचालय, पानी, लाइट, टीवी, पंखा आदि की समुचित व्यवस्था होगी. लेकिन, इन जगहों पर अब तक पानी व खाने की व्यवस्था नहीं हो सकी है. शहर का तापमान तीन डिग्री पहुंच गया है. घर में लोग कई कंबल व रजाई ओढ़ कर ठंड काट रहे हैं. रैन बसेरों में इसकी समुचित व्यवस्था नहीं है. रैन बसेरा के आगे लाइट की भी समुचित व्यवस्था नहीं की गयी है.

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