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सावधान! पटना की सड़कों पर इस इलाके में घूम रहा है मोबाइल चोरों का गैंग, हर महीनें उड़ा रहे 67 लाख रुपये के फोन

पटना में इन दिनों स्नैचरों का आतंक काफी बढ़ गया है. मोबाइल, पैसा और चेन को स्नैचर्स पलक झपकते ही झपट कर फरार हो जा रहे हैं. पुलिस के आंकड़ों की बात करें, तो जनवरी महीने में पटना में 453 मोबाइल झपटने की वारदातें हुई हैं.

पटना में इन दिनों स्नैचरों का आतंक काफी बढ़ गया है. मोबाइल, पैसा और चेन को स्नैचर्स पलक झपकते ही झपट कर फरार हो जा रहे हैं. पुलिस के आंकड़ों की बात करें, तो जनवरी महीने में पटना में 453 मोबाइल झपटने की वारदातें हुई हैं. एक मोबाइल के औसतन दाम 15 हजार रुपये मानें, तो बाइक सवार स्नैचरों ने जनवरी माह में 67. 95 लाख हजार रुपये के मोबाइल झपट लिये. हैरत की बात यह है कि पुलिस ने इनमें से बहुत कम ही मोबाइल छिनतई की प्राथमिकी दर्ज की है, मोबाइल छिनतई की ज्यादातर घटनाओं को गुमशुदगी में तब्दील कर दिया गया है. स्नैचिंग की वारदातें रोकने के लिए विशेष रूप से तैनात पुलिस की क्विक मोबाइल सर्विस भी इनके आगे विवश दिख रही है. स्नैचिंग की कई वारदातों का भंडाफोड़ करने के बावजूद स्नैचरों में पुलिस का खौफ दिख नहीं रहा है.

कोतवाली, कंकड़बाग में सबसे अधिक मोबाइल छिनतई

कोतवाली, कंकड़बाग व पत्रकार नगर थाना क्षेत्र में सबसे अधिक मोबाइल छिनतई होती है. इसके बाद कदमकुआं और पीरबहोर में सबसे अधिक शातिर मोबाइल झपट लेते हैं. कॉलेज, कोचिंग व भीड़भाड़ वाले इलाकाें को स्नैचर अधिक टारगेट करते हैं. हर माह शहरी थाना क्षेत्रों में 15 से 20 मोबाइल छिनतई, गुमशुदगी व चोरी की प्राथमिकी दर्ज होती है, जबकि 5% पीड़ितों को ही मोबाइल मिल पाते ह

सबसे अधिक कोतवाली क्षेत्र में पैसों की झपटमारी

इस साल केवल कोतवाली थाना क्षेत्र में चेन व पैसे की झपटमारी की 12 से अधिक घटनाएं हुई हैं. इनमें बीते 15 दिनों में चार लोगों से पैसों से भरा झोला झपट लिया गया है. इतनी छिनतई की घटनाएं होने के बाद भी अब तक किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हो पायी है. कोतवाली के बाद शास्त्रीनगर, सचिवालय और गर्दनीबाग थाना क्षेत्रों में सबसे अधिक पैसे छीने जाते हैं.

सड़क पर क्विक मोबाइल व गश्ती, फिर भी स्नैचिंग

पटना के लगभग सभी थानाें में क्विक मोबाइल के जवान हैं. प्रत्येक थानों में दो से चार क्विक मोबाइल के जवान तैनात हैं. सभी क्विक मोबाइल सड़क पर रहते हैं, लेकिन फिर भी स्नैचर को पकड़ने में क्विक मोबाइल जवान विवश दिख रहे हैं. सूचना मिलने के बाद जब तक क्विक मोबाइल टीम या पुलिस की गश्ती टीम मौके पर पहुंचती है, तब तक अपराधी बहुत दूर निकल चुके होते हैं. बाद में पुलिस सीसीटीवी फुटेज और अन्य माध्यमों पर निर्भर हो जाती है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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