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चैत मास की शुरूआत में ही सूखने लगे ताल-तलैया

चैत मास की शुरूआत में ही इस बार मौसम ने तल्ख तेवर अपना लिया है. तापमान का पारा अभी से 36 डिग्री के आसपास पहुंच गया है.

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बेनीपुर. चैत मास की शुरूआत में ही इस बार मौसम ने तल्ख तेवर अपना लिया है. तापमान का पारा अभी से 36 डिग्री के आसपास पहुंच गया है. इसमें लगातार हो रही वृद्धि से भूगर्भीय जलस्तर नीचे खिसकने लगा है. क्षेत्र की ताल-तलैया सूखने लगी है. लोगों के सामने जलसंकट की समस्या गहराने लगी है. स्थिति ऐसी ही रही तो आनेवाले समय में तमाम नदी-नाले सूख जायेंगे. इससे आमजन के साथ पशु-पक्षी तक के लिए पानी का घोर संकट उत्पन्न हो जायेगा. कमला व जीवछ नदी के बीच अवस्थित प्रखंड में तीन छोटी-छोटी नदियां हैं. इसमें जीबछ-कमला को छोड़ सभी छोटी नदियां सूख चुकी हैं या सूखने के कगार पर हैं.

प्रखंड में 174 सरकारी सैराती तालाब हैं. इसमें 94 तालाब में मछली पालन व 80 तालाब मखान की खेती योग्य है. इसके अलावा सौ से अधिक निजी तालाब हैं, लेकिन अनावृष्टि के कारण अधिकांश ताल-तलैया सूखने के कगार पर पहुंच गये हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार प्रखंड के पूरब में कमला तो दक्षिण में जीबछ नदी के साथ की उपधारायें प्रवाहित हो रही हैं. पूर्व में ये नदियां सदानीरा हुआ करती थी. इसके पानी का उपयोग किसान खेतों के पटवन में करते थे. साथ ही गर्मी के मौसम में पशु-पक्षियों के लिए यह जीवनदायिनी साबित होती थी, परंतु स्थानीय लोगों द्वारा नदी को भरकर उसपर अवैध कब्जा कर लिए जाने के कारण नदी सिकुड़ती जा रही है. अधिकांश छोटी नदियां नाला सरीखा दिख रही हैं.

उड़ाहीकरण की जरूरत

धेरूख के किसान राजीव झा, बिकूपट्टी के सुभाष झा, अरुण झा, मायापुर के गंगाविष्णु महतो आदि ने बताया कि कमला नदी की यह उपधारा वर्षों से बहती आ रही है, लेकिन पिछले तीन-चार दशकों से यह मृतप्राय हो गयी है. इससे किसानों की फसल से लेकर मनुष्य, जानवरों व पक्षी भी प्रभावित हो रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि इन मृतप्राय नदियों की अगर उड़ाहीकरण कर दी जाये, तो किसानों के लिए काफी लाभप्रद साबित होगी.

तालाब में देना पड़ रहा पानी

मछली व मखान उत्पादक किसानों का कहना है कि मौसम की तपिश के साथ तमाम तालाब सूखने लगे हैं. इस कारण मखान के पौधे व मछली को बचाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. किसान जैसे-तैसे सूख रहे तालाबों में निजी नलकूप के सहारे पानी देकर उसके अस्तित्व को बचाने तथा अपनी फसल की रक्षा में जुटे हैं.

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