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दरभंगा : यहां की हर तीन में से दो माताओं ने गंवाया है अपना बच्चा

पुष्यमित्र कीरतपुर(दरभंगा) pushyamitra@prabhatkhabar.in कोसी नदी के पश्चिमी तटबंध से सटा एक गांव है कुबौल. यह दरभंगा जिले के कीरतपुर प्रखंड में पड़ता है. पिछले दिनों एक खबर के सिलसिले में यह संवाददाता जब उस गांव में गया था, तो पता चला कि पिछली रात गांव में एक महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया है. […]

पुष्यमित्र
कीरतपुर(दरभंगा) pushyamitra@prabhatkhabar.in
कोसी नदी के पश्चिमी तटबंध से सटा एक गांव है कुबौल. यह दरभंगा जिले के कीरतपुर प्रखंड में पड़ता है. पिछले दिनों एक खबर के सिलसिले में यह संवाददाता जब उस गांव में गया था, तो पता चला कि पिछली रात गांव में एक महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया है.
गांव की महिलाएं आपस में बतिया रही थीं कि वह बचेगी नहीं, हालत बहुत बुरी है. घर में ही प्रसव हुआ और बहुत सारा खून बह गया है. प्रसव में महिलाओं की स्थिति अनियंत्रित हो जाना बहुत असामान्य घटना नहीं है. मगर औरतें इस प्रसंग पर जिस तरह बड़ी सहजता से बात कर रही थीं, वह परेशान कर डालनेवाला था. कोई घबराहट नहीं थी, महिलाएं यह भी नहीं कह रही थीं कि उसे अस्पताल ले जाना चाहिए या और कुछ नहीं, तो किसी डॉक्टर को ही बुला लेना चाहिए. जैसे यह सब सामान्य प्रसंग हो, बचना होगा तो बच जायेगी और मरना होगा तो मरनेवाले को कौन बचा सकता है…
वहां हमारे साथ गये एक स्थानीय समाजसेवी नंदकिशोर पांडे ने बताया कि यह इस इलाके के लिए आम बात है. इस गांव में बच्चे को जन्म देते हुए कब कौन महिला मर जाये या कब किसी छोटी बीमारी से किसी बच्चे की मौत हो जाये कहना मुश्किल है. किसी की डायरिया की वजह से तो किसी की निमोनिया के कारण. ऐसी कोई बीमारी नहीं है, जिसे ठीक नहीं किया जा सके. मगर कई कारणों से इन बच्चों को बचाया नहीं जा सक रहा है. अभी हाल में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस के बच्चों ने घर-घर जाकर सर्वे किया.
उस सर्वे में पता चला कि इस बस्ती की 130 माताओं में से 80 के बच्चे किसी न किसी वजह से काल के ग्रास बन गये. कई माताओं ने तो चार-चार, पांच-पांच बच्चे गंवाये हैं. उस रोज हमें एक ऐसी भी महिला मिली जिसके एक बच्चे की मौत महज 15 दिन पहले हुई थी. उसके दूसरे बच्चे का सर मूंडा हुआ था. उस बच्चे को भी कोई रोग था. उस सर जरूरत से ज्यादा बड़ा था. मगर मां को इस बात को कोई चिंता नहीं थी. इसकी संभवतः सबसे बड़ी वजह है गरीबी.
रोज खाने का जुगाड़ करने के फिक्र में समय ने उन्हें इन हादसों के प्रति उदासीन बना दिया है. गांव में घूमने पर कई बच्चे ऐसे दिखे जो पहली ही निगाह में अतिकुपोषित नजर आ रहे थे. ज्यादातर छोटे बच्चे नंगे थे और मिट्टी और कीचड़ में लेट कर खेलते हुए नजर आ रहे थे.
गांव में गंदगी का अंबार था. इन हालात में छोटे बच्चे कैसे डायरिया या कुपोषण का शिकार न हों.कोसी नदी के किनारे पश्चिमी तटबंध के पास बसे इस गांव की यह त्रासदी पहली दफा तब बाहर आयी जब यहां स्थानीय स्वयंसेवी संस्था, मिथिला ग्राम विकास परिषद के सचिव नारायणजी चौधरी आये हुए थे. महिलाओं की एक आम बैठक में उन्होंने बैठे-बैठे 46 ऐसी माताओं की सूची तैयार की जिन्होंने अपना एक न एक बच्चा जरूर गंवाया है.
उस सूची में फुलिया देवी जैसी महिला का नाम भी था. 45 साल की फुलिया देवी ने अपने पांच संतानों को अब तक गंवा दिया है. यही नहीं गांव में उन्हें ऐसी पांच महिलाएं मिल गयीं जिन्होंने अपने चार संतानों को गंवाया है. तीन संतानों को गंवाने वाली सात महिलाएं और दो संतानों को गंवाने वाली दस महिलाओं के नाम उस सूची में हैं. शेष 23 महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने अपना एक बच्चा गंवाया दिया है. उन्होंने यह सूची अक्तूबर, 2015 में तैयार की थी. उनकी इस प्राथमिक सूची को आधार बना कर मई, 2016 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के छात्रों की टोली कुबौल पहुंची. घर-घर जाकर सर्वे किया.
उस सर्वे की फाइनल रिपोर्ट तो नहीं आयी है, मगर सर्वे टीम की सदस्य अतिशि मिश्रा ने फोन पर बताया कि उनकी टीम ने 130 माताओं से बातचीत की जिनमें 80 माताएं ऐसी मिलीं, जिनका कोई न कोई बच्चा अकाल मृत्यु का शिकार हो गया है. कालाजार, तेज बुखार, निमोनिया और कुपोषण की वजह से यहां बड़ी संख्या में बच्चे मौत के शिकार हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि गांव में बाल विवाह का खूब प्रचलन है. लड़कियों की शादी अमूमन 12-13 साल में कर दी जाती है. कुपोषण और विकलांगता भी आम है. सबसे दुखद बात है कि लोगों के लिए अब बच्चों की मौत सहज घटना हो गयी है. मिथिला ग्राम विकास परिषद के सचिव नारायण जी कहते हैं, कोसी से सटा इलाका होने के कारण यहां अक्सर बाढ़ का पानी आ जाता है.
गांव में आंगनबाड़ी केंद्र भी नहीं है, केंद्र यहां से एक किमी दूर है. बरसात के महीनों में वहां तक पहुंचना मुश्किल होता है. बाढ़ग्रस्त इलाका होने के कारण 5 किमी दूर जो स्वास्थ्य केंद्र है वह भी ठीक से नहीं चलता. और लोगों के पास इतना पैसा नहीं कि निजी चिकित्सकों की फीस चुका सकें. ऐसे में लोग बीमारियों को तब तक टालते हैं, जब तक जीने-मरने का सवाल न खड़ा हो जाये. और जब यह हालत बनती है तब मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है. ज्यादातर बच्चों की मौत इसी वजह से होती है.
दरभंगा िजले के कुबौल गांव की 130 में से 80 महिलाओं ने गंवाये हैं बच्चे
चार-चार और पांच-पांच बच्चे गंवाने वाली माताएं भी हैं दरभंगा के कुबौल गांव में
महादलितों की बस्ती में कालाजार, कुपोषण और निमोनिया का है भीषण प्रकोप
बाल विवाह, अस्पताल से दूरी और घर में प्रसव और टीकाकरण का अभाव हैं बड़ी वजहें
टिस के छात्रों ने पिछले दिनों किया सर्वेक्षण, निकले कई चौंकाने वाले आंकड़े
ज्यादातर पुराने मामले हैं, हम जांच करा रहे हैं
इन आंकड़ों को देखने और फील्ड से वेरिफाइ कराने से पताचला है कि ज्यादातर मामले काफी पुराने हैं, हाल के मामले काफी कम हैं. हम लोग जांच करा रहे हैं और विस्तृत जांच के बाद ही कुछ कह पायेंगे.जीतेंद्र श्रीवास्तव, कार्यकारी निदेशक, राज्य स्वास्थ्य समिति
इन्होंने तीन या अधिक बच्चे गंवाये हैं
फुलिया देवी (45) 5 बच्चे
गुलबिया देवी (40) 4 बच्चे
तारा देवी (38) 4 बच्चे
यशोदा 4 बच्चे
फुलिया देवी (45) 4 बच्चे
घुथरी (50) 4 बच्चे
जिबो देवी (30) 3 बच्चे
मंगला देवी 3 बच्चे
कारो देवी 3 बच्चे
डोमनी देवी 3 बच्चे
तुला देवी (36) 3 बच्चे
मंगला देवी (33) 3 बच्चे
अमिरका देवी 3 बच्चे
(मिथिला ग्राम विकास परिषद के आंकड़े)
बच्चों की मौत की वजह
कालाजार 32
बुंड्स और तेज बुखार 15
प्रसव के दौरान 17
गर्भावस्था में 13
निमोनिया 6
चिकेन पॉक्स 5
सांप काटने से 3
बॉडी इर्रेगुलरिटी 2
अज्ञात कारणों से 24
(टिस के सर्वे के आंकड़े)
बिहार के आंकड़े
शिशु मृत्यु दर- 48 बच्चे प्रति हजार
मातृत्व मृत्यु दर, प्रसव के दौरान- 274 महिलाएं प्रति एक लाख
अप्रैल 14 से मार्च 15 के बीच
शिशुओं की मृत्यु- 126118
माताओं की मृत्यु- 6246
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के आंकड़ों पर आधारित

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