कमतौल : हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी ‘गुरु पूर्णिमा’ आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा रविवार नौ जुलाई को मनाया जाएगा. इसे व्यास पूजा के नाम से भी जाना जाता है. वैसे तो किसी भी तरह का ज्ञान देने वाले गुरु कहलाते हैं, लेकिन तंत्र-मंत्र-अध्यात्म का ज्ञान देने वाले सद्गुरु कहलाते हैं. इनकी प्राप्ति पिछले जन्मों के कर्मों से ही होती है.
शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था. गुरु वेद व्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेद का ज्ञान दिया था. इसलिए वे सभी के प्रथम गुरु हुए. इसलिए उनके जन्म दिवस के दिन उनके सम्मान में यह पर्व मनाया जाता है. इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है.
ज्योतिष के जानकार डॉ संजय कुमार चौधरी के अनुसार गुरु पूर्णिमा आठ जुलाई शनिवार की सुबह से प्रारंभ होकर नौ जुलाई को सुबह 9.37 मिनट तक रहेगी.
इसलिए नौ जुलाई को गुरु पूर्णिमा मनाया जाना श्रेयस्कर होगा. वेद-पुराणों के हवाले से बताया कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है. यह पर्व महर्षि वेद व्यास को प्रथम गुरु मानते हुए उनके सम्मान में मनाया जाता है. महर्षि वेद व्यास ही थे जिन्होंने सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के चारों वेदों की व्याख्या की थी. उन्होंने कहा कि दीक्षा प्राप्ति जीवन की आधारशिला है. इससे मनुष्य को दिव्यता तथा चैतन्यता प्राप्त होती है. दीक्षा लेकर मनुष्य अपने जीवन के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच सकता है. दीक्षा आत्मसंस्कार कराती है. दीक्षा प्राप्ति से शिष्य का जीवन धन्य हो जाता है.