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चंपारण की फिजां में फैल रहा जहर, 1600 उद्योग उगल रहे 40 टन धुआं

बेतिया : तरक्की के राह पर दौड़ रही दिल्ली की आबोहवा धुएं से भरने लगी तो पिछले 20 सालों में उसने अपनी हरियाली 18.72 फीसदी तक बढ़ा ली. दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 1993 में दिल्ली की हरियाली 1.48 फीसदी थी जो अब बढ़ कर 20.20 फीसदी हो गयी. इसके बावजूद […]

बेतिया : तरक्की के राह पर दौड़ रही दिल्ली की आबोहवा धुएं से भरने लगी तो पिछले 20 सालों में उसने अपनी हरियाली 18.72 फीसदी तक बढ़ा ली. दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 1993 में दिल्ली की हरियाली 1.48 फीसदी थी जो अब बढ़ कर 20.20 फीसदी हो गयी.
इसके बावजूद भी हालात ठीक नहीं है. कुछ ऐसा ही पश्चिम चंपारण में भी अब होने लगा है. पर्यावरणविद डॉ. देवी लाल यादव के सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक चंपारण में हरियाली महज 9 फीसदी है. जबकि मानक 33 फीसदी होना चाहिए.नोट- आंकड़े वर्ष 2015 में पंजीकृत वाहनों के हैं. जिले में करीब 12 लाख से अधिक वाहनों का रजिस्ट्रेशन हैं.
तेजी से फैल रहा धुआं
चंपारण के फेफड़े में तेजी से धुआं फैल रहा है. जिला उद्योग केंद्र के जीएम जर्नादन शर्मा ने बताया कि जिले में 1600 उद्योग (चीनी मिल, छोटे कारखाने, वर्कशॉप, इंट भट्ठा आदि) हैं. सरकारी अनुमान के मुताबिक रोजाना 40 टन से अधिक धुआं निकाल रहा है. इसमें सर्वाधिक रसायन तत्व धुले हैं. गनीमत है कि चंपारण में हरियाली इतनी है कि इस धुएं का मानव जीवन पर खास असर नहीं पड़ रहा है. लेकिन हर साल घटती हरियाली से इस खतरे का अंदेशा बढ़ गया है.
इंसान और विज्ञान की जंग से बचना जरूरी
बगहा. प्रकृति बदल रही है. उसका असर हम सभी अपने आंखें से देख रहे हैं. लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं है. ग्लोबल वार्मिग का सच हमारे सामने आने लगा है. इनसान की भौतिक और विकासवादी सोच उसे मुसीबत की ओर धकेल रही है. उक्त बातें पर्यावरण प्रेमी गजेंद्र यादव ने विश्व पर्यावरण पखवारा के अवसर पर बगहा एक प्रखंड के शिवराजपुर गांव में पौध रोपण के दौरान कही.
उनका कहना है कि प्रकृति के खिलाफ इनसान और उसका विज्ञान जिस तरह युद्ध छेड़ रखा है, उसका परिणाम भयंकर होगा. भौमिक विकास की रणनीति इनसान का वजूद खत्म कर देगी.
यह नहीं भूलना चाहिए कि हम विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति से संतुलन बनाए रखने में नाकामयाब रहे हैं. इस लिए पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिए पेड़ लगाना एवं पुराने पेड़ों का संरक्षण बहुत जरूरी है. उन्होंने गांव के लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़ लगाने के लिए जागरूक किया. उल्लेखनीय है कि बगहा एक प्रखंड के सेमरकोल गांव निवासी पर्यावरण प्रेमी गजेंद्र यादव विगत 12 वर्ष से चंपारण समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न गांवों में तकरीबन दो लाख पेड़ लगाने की ख्याति अजिर्त कर लिये है. 35 वर्षीय गजेंद्र यादव ने पेड़ – पौधों को हीं अपना परिवार माना है.
उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए आजीवन शादी नहीं करने की संकल्प ली है. सेमर कोल गांव के स्व. बासुदेव यादव के तीन पुत्रों में सबसे बड़े गजेंद्र की शादी करने के लिए कई रिश्ते आते है. लेकिन पेड़ों से उनके अगाध प्रेम को देख कर आने वाले मेहमान भी उनकी भावनाओं के कायल हो जाते. गरीब एवं मजदूर परिवार में जन्मे गजेंद्र ने अपने घर के समीप पांच कट्ठे जमीन में एक छोटी से नर्सरी स्थापित की है. उस नर्सरी में फलदार से लेकर सदाबहार पौधों का बालपन गुजरता है.
इस नर्सरी से लोगों को मुफ्त में पौधे दी जाती है. जब भी कोई किसान पौध लगाने के लिए गजेंद्र को बुलाता है, वह निश्चित तौर पर पहुंचते है. सिर्फ पेड़ लगाते हीं नहीं है, उसके रख रखाव का भी ध्यान रखते हैं. ऐसी मान्यता है कि गजेंद्र के लगाये पेड़ सुखते नहीं है. इस लिए उन्हें दूर – दराज से लोग बुला कर ले जाते हैं और अपने खेत में पेड़ लगवाते हैं.

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