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इटली विवि में हिंदी पढ़ती हैं 60 छात्राएं

मां की इच्छा के विरुद्ध एचडब्ल्यू बेसर्लर ने पढ़ी हिंदी मोतिहारी : महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में दो दिवसीय अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पहली बार किया गया. भारत विद्या का अतीत, वर्तमान तथा भविष्य: चुनौतियां एवं संभावनाएं विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी में स्वीडन, इटली व इजरायल के विद्वानों के साथ अपने देश के विद्वानों […]

मां की इच्छा के विरुद्ध एचडब्ल्यू बेसर्लर ने पढ़ी हिंदी
मोतिहारी : महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में दो दिवसीय अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पहली बार किया गया. भारत विद्या का अतीत, वर्तमान तथा भविष्य: चुनौतियां एवं संभावनाएं विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी में स्वीडन, इटली व इजरायल के विद्वानों के साथ अपने देश के विद्वानों को सुनने तथा देखने का मौका मिला. इस संगोष्ठी में आकर्षक का केंद्र भाषाई एवं समाजशास्त्र संस्थान उप्पसला स्वीडेन से आये एचडब्ल्यू बेसलर, तुरीन विश्वविद्यालय इटली से आयी अलेक्जेंडर कॉन सोलरों तथा द हेब्रे यूनिवर्सिटी ऑफ येरूसलम, इजराइल से आयी रीम्सा मेरीना रही. प्रभात खबर ने शुक्रवार को इन विदेशी विद्वानों से बात की.
फर्राटेदार िहंदी बोलती हूं : ए कॉन सोलरो
चेहरे देखने से नहीं लगता कि इस विदेशी महिला को हिंदी की जानकारी होगी. संगोष्ठी में लोग खुद सोचने पर मजबूर हो गये कि इनकी भाषा समझाने में परेशानी होगी पर जब इस विदेशी महिला ने फर्राटेदार हिंदी बोलना शुरू किया तो सभी आश्चर्यचकित थे. इतना ही नहीं तुरीन विश्वविद्यालय की इस प्राध्यापिका ने बताया कि वे तुरीन विश्वविद्यालय में बीए में 50 छात्रों को व एमए में 10 छात्रों को हिंदी पढ़ाती हैं. बताया कि बिहार वे पहली बार आयी है. इससे पहले वे पुस्तकों में बिहार के बारे में पढ़ी थी कि बिहार में आकर बड़ी खुशी मिली. यहां के लोग बहुुत अच्छे है.
चंपारण का इतिहास अत्यंत गौरवपूर्ण है. भविष्य में मौका मिला तो वह फिर यहां आनाा पसंद करेगी. जब उनसे यह पूछा गया कि उन्होंने हिंदी की शिक्षा कैसे हासिल की तो बताया कि स्वीडन में प्राची भाषाओं, साहित्य व दर्शनशास्त्र की पढ़ाई होती है. यहां उन्हें हिंदी के प्रति जिज्ञासा जगी. हिंदी सीखने के लिए वे तीन माह के लिए बनारस गये पर वहां उन्हें संस्कृत की शिक्षा मिली. पुन: वह इटली जाकर हिंदी की शिक्षा ली. उसके बाद अमेरिका के इंटरनेशनल स्कूल में जाकर पढ़ाई की, जहां उन्हें स्कॉलरशिप मिला. 30 वर्षों से विदेशों में हिंदी का ज्ञान देनेवाली इस महिला ने बताया कि हिंदी सीखने में उनके परिवार में किसी ने विरोध नहीं किया.
मां की इच्छा के विरुद्ध की हिंदी की पढ़ाई
कहते हैं वृक्ष पर जब फल लगता है तो वृक्ष झुक जाता है. यही स्थिति विद्वानों की है. इसका ताजा उदाहरण महात्मा गांधी केंद्रीय विवि में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी में देखने को मिला. गोरा चेहरा, लंबा कद देखने में विदेशी पर पोशाक हिंदुस्तानी है. यह व्यक्ति केविवि के सभागार में लैपटॉप व इलेक्ट्रीक उपकरणों को ठीक कर रहा था. साथ ही हिंदी में लोगों को नमस्कार भी कर रहा था. सादगी इसकी पहचान है और यह व्यक्ति है भाषाई एवं भाषाशास्त्र संस्थान उप्पसला स्वीडेन के विद्वान एच डब्ल्यू वार्सनर जिन्होंने विदेश में भी हिंदी का अलख जगाया है. प्रथम दिन के संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता उन्होंने बताया कि वे जर्मनी के निवासी है उनका कार्य क्षेत्र स्वीडन है.
उन्होंने बताया कि जब हिंदी सिखना शुरू किया तब उनके घर वाले इनकी इस निर्णय का विरोध किये पर माता की इच्छा के विरुद्ध उन्होंने हिंदी पढ़ना शुरू किया. आज फर्राटेदार हिंदी बोल कर अपनी प्रभावी भाषा से सबको आश्चर्यचकित कर दिया. उन्होंने बताया कि जब वे 15 वर्ष के थे तो एक उपन्यास के माध्यम से भारत के बारे में जाना. वे हिंदी भाषा सीखना चाहते थे.
उन्होंने जर्मन में इसकी पढ़ाई की. उन्होंने बताया कि हिंदी की पढ़ाई करते समय यह कभी नहीं सोचा कि उनका भविष्य क्या होगा. सिर्फ ज्ञान इक्ठ्ठा करने की प्रयास की. शुक्रवार को वे जार्ज ऑरवेल पार्क, एमएस कॉलेज पहुंचे तथा वहां की ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त की.

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