मोतिहारी : शहर में आश्रय स्थल की समुचित व्यवस्था नहीं है. रैनबसेरा के अभाव में लोग रेलवे स्टेशन व इधर-उधर आश्रय लेने को मजबूर है. गांधी चौक स्थित रिक्शा पड़ाव सह आश्रय स्थल अतिक्रमण का शिकार है. इस आश्रय स्थल का कब्जा कर व्यवसायिक उपयोग हो रहा है. रिक्शा पड़ाव की जगह पर अवैध कब्जा […]
मोतिहारी : शहर में आश्रय स्थल की समुचित व्यवस्था नहीं है. रैनबसेरा के अभाव में लोग रेलवे स्टेशन व इधर-उधर आश्रय लेने को मजबूर है. गांधी चौक स्थित रिक्शा पड़ाव सह आश्रय स्थल अतिक्रमण का शिकार है.
इस आश्रय स्थल का कब्जा कर व्यवसायिक उपयोग हो रहा है. रिक्शा पड़ाव की जगह पर अवैध कब्जा कर चाय व सैलून चल रहे हैं. ऐसे में रिक्शा चालकों को आश्रय देने वाला यह स्थल अतिक्रमण का शिकार है. प्रशासन भी इसकी सुध नहीं ले रहा है.
इधर, छतौनी बस पड़ाव परिसर में वैकल्पिक व्यवस्था के तहत संचालित अस्थायी रैनबसेरा भी ठीक से काम नहीं कर रहा. छोटे स्तर पर संचालित रैनबसेरा की क्षमता आश्रय के लिए कम पड़ रही है. वही शहर से दूर होने एवं जानकारी के अभाव में लोगों को लाभ नहीं मिल रहा है. ऐसे में सर्द रात में रिक्शा, ठेला व देहाती क्षेत्रों से उपचार के लिए आये लोगों को रेलवे स्टेशन परिसर में रात गुजारनी पड़ रही है. प्रशासनिक स्तर पर शहर में अन्य जगह रैनबसेरा की व्यवस्था भी नहीं की गयी है.
पिछले साल नप प्रशासन ने नगर भवन में टेंट डाल कर रैनबसेरा की व्यवस्था करायी थी. इसका लाभ चिकित्सीय उपचार व अन्य कार्य के लिए शहर आनेवाले लोगों को रात्रि में मिला. लेकिन इस साल प्रशासनिक स्तर पर इस तरह की कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं शुरू की गयी है, जबकि मोतिहारी के लिए 60 बेड का रैनबसेरा की स्वीकृति वर्षों पहले मिल चुकी है. लेकिन विभागीय तकनीकी पेंच के कारण निर्माण का मामला अब तक लटका हुआ है.