बक्सर. नगर के चरित्रवन स्थित बुढ़वा शंकर जी के मंदिर परिसर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन गुरुवार को मामाजी के कृपापात्र आचार्य रणधीर ओझा द्रौपदी और उत्तरा की रक्षा तथा परीक्षित जन्म-श्राप का दिव्य वर्णन किया. कथा के आरंभ में आचार्य श्री ने श्रोताओं को भागवत कथा के महत्व से परिचित कराते हुए कहा कि यह केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि मनुष्य के आत्मोद्धार का मार्ग है. उन्होंने कहा कि भागवत कथा में वर्णित प्रत्येक प्रसंग मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक है. जो भक्ति, ज्ञान और वैराग्य तीनों का संगम है. इसके पश्चात् आचार्य श्री ने अत्यंत भावपूर्ण ढंग से द्रौपदी की लाज रक्षा का प्रसंग सुनाया. उन्होंने कहा कि जब द्रौपदी ने असहाय होकर श्रीकृष्ण को पुकारा, तब स्वयं भगवान ने उसकी लाज की रक्षा की. यह प्रसंग हमें सिखाता है कि जब भक्ति और विश्वास अटूट हो, तब भगवान स्वयं अपने भक्त की रक्षा के लिए उपस्थित हो जाते हैं. आचार्य श्री रणधीर ओझा जी ने बताया कि महाभारत युद्ध के पश्चात जब अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, तब गर्भ में पल रहे परीक्षित के प्राण संकट में आ गये. उसी समय श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से ब्रह्मास्त्र की शक्ति को निष्प्रभावी कर उत्तरा के गर्भ में स्थित बालक की रक्षा की. यही बालक आगे चलकर राजा परीक्षित कहलाया, जिनके श्रापवश ही श्रीमद्भागवत कथा का प्रवाह प्रारंभ हुआ. आचार्य जी ने कहा कि परीक्षित का श्राप प्रसंग जीवन के गूढ़ सत्य को उजागर करता है कि जीवन क्षणभंगुर है और जब मृत्यु निश्चित है, तब मनुष्य को हर क्षण भगवत भक्ति में लगाना ही सार्थक है. उन्होंने बताया कि कैसे श्राप के सात दिनों में परीक्षित ने श्रीशुकदेव जी से भागवत श्रवण कर जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त किया.
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