डुमरांव
. कृषि क्रियाएं लघु व्यवसाय से बड़े व्यवसाय में बदलती जा रही हैं. कृषि और बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ रहा है, जबकि कुल कृषि योग्य भूमि घट रही है कृषि के विकास के लिए फसल, सब्जियां और फलों के भरपूर उत्पादन के अतिरिक्त दूसरे व्यवसायों से अच्छी आय भी जरूरी है. उक्त बातें वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय डुमरांव के सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक प्रदीप कुमार ने जानकारी देते हुए कही. उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन एक ऐसा ही व्यवसाय है, जो मानव जाति को लाभान्वित कर रहा है. यह एक कम खर्चीला घरेलू उद्योग है, इसमें आय, रोजगार व वातावरण शुद्ध रखने की क्षमता है. मधुमक्खी पालन यह एक ऐसा रोजगार है, जिसे समाज के प्रत्येक वर्ग के लोग अपनाकर लाभान्वित हो सकते हैं. मधुमक्खी पालन, कृषि व बागवानी उत्पादन बढ़ाने की क्षमता भी रखता है. मधुमक्खियां समुदाय में रहने वाली कीट वर्ग की जंगली जीव हैं. इन्हें उनकी आदतों के अनुकूल कृत्रिम गृह में पालकर उनकी बृद्धि करने तथा शहद एवं मोम आदि प्राप्त करने को मधुमक्खी पालन या मौन पालन कहते हैं. मधुमक्खी पालन से शहद एवं मोम के अतिरिक्त अन्य उत्पाद भी प्राप्त होते हैं. इसके साथ ही मधुमक्खियों से फूलों में परागण होने के कारण फसलों की उपज में लगभग एक चौथाई अतिरिक्त बढ़ोतरी हो जाती है. मधुमक्खी परिवार का उचित रखरखाव जरूरी : मधुमक्खी परिवारों की सामान्य गतिविधियां 10 से 38 डिग्री सेल्सियस के बीच में होती हैं. उचित प्रबंधन द्वारा प्रतिकूल परिस्थितियों में इनका बचाव आवश्यक है. इन स्थितियों को ध्यान में रखते हुए निम्न प्रकार से वार्षिक प्रबंधन करना चाहिये. ग्रीष्म ऋतु में मौन प्रबंधन : ग्रीष्म ऋतु में मौनो की देखभाल ज्यादा जरूरी होती है, जिन क्षेत्रों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तक पहुंच जाता है, वहां पर मौनगृहों को किसी छायादार स्थान पर रखना चाहिए, सुबह की सूर्य की रोशनी मौनगृहों पर पड़नी आवश्यक है. इससे मधुमक्खियां सुबह से ही सक्रिय होकर अपना कार्य करना प्रारंभ कर देती हैं. मौनों को लू से बचाने के लिए छप्पर का प्रयोग करना चाहिये, जिससे गर्म हवा सीधे मौनगृहों के अंदर न घुस सके, अतिरिक्त फ्रेम को बाहर निकालकर उचित भंडारण करना चाहिये, मौन वाटिका में यदि छायादार स्थान न हो, तो बक्से के ऊपर छप्पर या पुआल डालकर उसे सुबह-शाम भिगोते रहना चाहिये, जिससे मौनगृह का तापमान कम बना रहे. कृत्रिम आहार के रूप में आधा पानी आधा चीनी के घोल को उबालकर ठंडा होने पर मौनगृह के अंदर कटोरी या फीडर में रखना चाहिये. मौनगृह के स्टैंड की कटोरियों में प्रतिदिन साफ और ताजा पानी डालना चाहिए, यदि मौनों की संख्या ज्यादा बढ़ने लगे तो अतिरिक्त फ्रेम डालना चाहिए.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है