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27 को लगेगा सदी का सबसे बड़ा चंद्र ग्रहण, 13 को आंशिक सूर्य ग्रहण

बक्सर : सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण लगनेवाला है. इस चंद्र ग्रहण का संयोग 104 साल बाद बन रहा है. वहीं इसी माह में 13 जुलाई को सूर्य ग्रहण भी लगेगा. हालांकि यह सूर्य ग्रहण आंशिक सूर्यग्रहण होगा जो दिखाई नहीं देगा लेकिन जो चंद्रग्रहण लग रहा है वह सदियों बाद चार घंटे तक दिखाई […]

बक्सर : सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण लगनेवाला है. इस चंद्र ग्रहण का संयोग 104 साल बाद बन रहा है. वहीं इसी माह में 13 जुलाई को सूर्य ग्रहण भी लगेगा. हालांकि यह सूर्य ग्रहण आंशिक सूर्यग्रहण होगा जो दिखाई नहीं देगा लेकिन जो चंद्रग्रहण लग रहा है वह सदियों बाद चार घंटे तक दिखाई देनेवाला लग रहा है. यह चंद्रग्रहण 27 जुलाई की मध्य रात्रि 11 बजकर 55 मिनट से शुरू होकर 28 जुलाई की सुबह तीन बजकर 39 मिनट पर मोक्ष काल यानी समाप्त होगा. यह चंद्रग्रहण श्रवण नक्षत्र व मकर राशि में होगा. इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाले जातक एवं राशि वालों को दर्शन वर्जित है. ग्रहण में किया गया पुण्य कार्य एक लाख गुना फलदायी होता है. ग्रहण के दौरान गंगा जल से स्नान करना एवं दान करने का बहुत बड़ा महत्व शास्त्रों में वर्णित है.

कौन सी राशि पर क्या पड़ेगा प्रभाव : मेष, सिंह, वृश्चिक एवं मीन राशिवाले जातक पर ज्यादा प्रभाव रहेगा. वहीं मकर, मिथुन, कन्या एवं धनु राशिवालों के लिए यह चंद्रग्रहण अशुभ असर देगा. इधर कुंभ, तुला, कर्क एवं वृष राशि पर चंद्रग्रहण का मिलाजुला असर रहेगा.
ग्रहण क्या है : जब एक खगोलीय पिंड पर दूसरे खगोलीय पिंड की छाया पड़ती है तब ग्रहण होता है. हर साल सूर्य एवं चंद्र ग्रहण दिखाई देता है. चाहे वह आंशिक रूप में दिखाई दे या पूर्ण रूप में.
चंद्र ग्रहण क्या है : जब पृथ्वी सूर्य एवं चंद्रमा के बीच आ जाती है तब चंद्रमा पर पड़नेवाली सूर्य की किरणों को रोकती है और उसने अपनी छाया बनाती है. इस घटना को चंद्र ग्रहण कहा जाता है.
सूर्य ग्रहण क्या है : चंद्रमा सूर्य व पृथ्वी के मध्य में आता है तब यह पृथ्वी पर आनेवाले सूर्य के प्रकाश को रोकता है और सूरज में अपनी छाया बनाता है. इस खगोलीय घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है.
कहते हैं आचार्य : सदियों बाद इस तरह का चंद्र ग्रहण लग रहा है. चंद्र ग्रहण के दौरान गंगा स्नान व दान का बड़ा महत्व है. आचार्य कृष्णानंद शास्त्री ने कहा कि इस दौरान लोगों को दान-पुण्य करना चाहिए. इसका बहुत बड़ा महत्व है.
जाने क्या है ग्रहण का पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन से उत्पन्न अमृत को दानवों ने देवताओं से छीन लिया. इस दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक सुंदर कन्या का रूप धारण करके दानवों से अमृत ले लिया और उसे देवताओं में बांटने लगे लेकिन भगवान विष्णु की इस चाल को राहु नामक असुर समझ गया और वह देव रूप धारण कर देवताओं के बीच बैठ गया. जैसे ही राहु ने अमृतपान किया. उसी समय सूर्य और चंद्रमा ने उसका भंडा फोड़ कर दिया. उसके बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु की गर्दन को उसके धड़ से अलग कर दिया. अमृत के प्रभाव से उसकी मृत्यु नहीं हुई इसलिए उसका सिर व धड़ राहु और केतू छायाग्रह के नाम से सौर मंडल में स्थापित हो गये.
माना जाता है कि राहु और केतू इस बैर के कारण से सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण के रूप में शापित करते हैं. हिंदू धर्म में ग्रहण को मानव समुदाय के लिए हानिकारक माना गया है, जिस नक्षत्र और राशि में ग्रहण लगता है. उससे जुड़े लोगों पर ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं. हालांकि ग्रहण के दौरान मंत्र जाप व कुछ जरूरी सावधानी अपनाकर इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है.

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