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हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक डॉ. नंदकिशोर नवल के निधन पर बिहार के राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने व्यक्त की संवेदनाएं, साहित्यकारों ने भी जताया दुख

हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक प्रो. डॉ नंदकिशोर नवल का मंगलवार रात निधन हो गया. उनके निधन को हिंदी साहित्य के लिए बड़ी क्षति माना जा रहा है. वे पटना विश्वविद्यालय में शिक्षक रह चुके थे. उन्होंने कई पीढ़ियों को हिंदी साहित्य पढ़ाया. साथ ही लेखन में भी नयी पीढ़ी तैयार की. पटना और बिहार के कई बड़े लेखक उनसे सीख कर साहित्य जगत में आगे बढ़े हैं. वे साहित्य में युवा पीढ़ी को हमेशा आगे बढ़ाने के अपना योगदान देते रहे.उनके निधन से पटना के साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गयी. उनके निधन पर बिहार के राज्यपाल फागू चौहान और प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संवेदना व्यक्त की.साथ ही कई बड़े साहित्यकारों ने भी गहरा दुख जताया है.

हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक प्रो. डॉ नंदकिशोर नवल का मंगलवार रात निधन हो गया. उनके निधन को हिंदी साहित्य के लिए बड़ी क्षति माना जा रहा है. वे पटना विश्वविद्यालय में शिक्षक रह चुके थे. उन्होंने कई पीढ़ियों को हिंदी साहित्य पढ़ाया. साथ ही लेखन में भी नयी पीढ़ी तैयार की. पटना और बिहार के कई बड़े लेखक उनसे सीख कर साहित्य जगत में आगे बढ़े हैं. वे साहित्य में युवा पीढ़ी को हमेशा आगे बढ़ाने के अपना योगदान देते रहे.उनके निधन से पटना के साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गयी. उनके निधन पर बिहार के राज्यपाल फागू चौहान और प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संवेदना व्यक्त की.साथ ही कई बड़े साहित्यकारों ने भी गहरा दुख जताया है.

बिहार के राज्यपाल फागू चौहान ने अपने शोक संदेश में कहा :

बिहार के राज्यपाल फागू चौहान ने हिंदी समालोचक प्रो नंदकिशोर नवल के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि एक कुशल शिक्षक, सुधी समीक्षक एवं प्रख्यात विद्वान प्रो नंदकिशोर नवल के निधन से हिंदी साहित्य को अपूरणीय क्षति हुई है. उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में बिहार का नाम रोशन किया है. राज्यपाल ने दिवंगत साहित्यकार की आत्मा की चिरशांति तथा उनके शोक–संतप्त परिजनों व प्रशंसकों को धैर्य–धारण की क्षमता प्रदान करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शोक जताते हुए कहा :

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी डॉ. नंदकिशोर नवल के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की और अपने शोक संदेश में कहा है कि डॉ. नवल पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक रह चुके थे. उनकी दर्जनों पुस्तकों में कविता की मुक्ति, हिन्दी आलोचना का विकास, शताब्दी की कविताएं, समकालीन काव्य यात्रा, कविता के आर-पार आदि प्रमुख हैं. उन्होंने निराला रचनावली (आठ खंडों में) और दिनकर रचनावली का संपादन भी किया था. उनके निधन से हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है.मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की चिर शांति तथा उनके परिजनों को दुख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है.

चर्चित कवि आलोक धन्वा ने कहा :

चर्चित कवि आलोक धन्वा ने कहा, कि साहित्य को उन्होंने गंभीरता से लिया. नवल जी से मेरा संबंध चार दशकों से था. हमारी पीढ़ी के अनेक लेखक उनकी आलोचना से समृद्ध हुये. उन्होंने निराला रचनावली का संपादन किया, मुक्तिबोध पर भी लिखा. आज की समकालीन कविता पर भी पुस्तक प्रकाशित की. आलोचना पत्रिका के संपादक रहे. कसौटी नामक पत्रिका भी उन्होंने निकाली. उन्होंने नामचीन कवियों के साथ ही कम विख्यात और युवा कवियों पर भी लिखा.

प्रसिद्ध नाट्यकार ऋषिकेश सुलभ ने साझा की यादें :

प्रसिद्ध नाट्यकार ऋषिकेश सुलभ ने कहा ,पढ़ाना और लिखना ही उनके जीवन का लक्ष्य था.उनसे मेरा लगभग 45 साल पुराना संबंध रहा. पटना विश्वविद्यालय में वे मेरे शिक्षक भी रहें. उनका जाना बिहार और हिंदी आलोचना के लिये बड़ी क्षति है. उनकी प्रसिद्धी देश भर में थी. इसके बावजूद वे नयी पीढ़ी के लोगों को लेकर हमेशा उत्सुक रहते थे. वे मूलत कविता के आलोचक थे, नये कवियों को पढ़ना, उन्हें रास्ता दिखाना उन्हें पसंद था. उन्होंने साहित्य में एक नयी पीढ़ी को तैयार किया जिसके लिये उन्हें हमेशा याद किया जायेगा. वह शुद्ध रूप से लेखक थे. उनके जीवन का दो ही लक्ष्य था छात्रों को पढ़ाना और लिखाना. हर वर्ष उनके जन्मदिन पर जाता था. उनसे मेरा पारिवारिक रिश्ता था.

साहित्यकार डॉ रामवचन राय ने कहा :

शिक्षाविद्ध और साहित्यकार डॉ रामवचन राय ने कहा ,आलोचना के क्षेत्र में उन्होंने बड़ी साधना की उनके निधन से हिंदी आलोचना का एक स्तंभ टूट गया है. वे बहुत अच्छे शिक्षक थे. पटना विश्वविद्यालय में वे बहुत लोकप्रिय रहे. उनके निधन से साहित्य और शिक्षा जगत को बड़ा नुकसान हुआ है. आलोचना के क्षेत्र में उन्होंने बड़ी साधना की और हमेशा एकाग्र होकर लिखते रहे. नवल जी प्रगतिशील विचारों के थे. साहित्य के क्षेत्र उन्होंने नयी पीढ़ी तैयार की. मुझे याद है कि छठे दशक में उन्होंने नये लेखकों का सम्मेलन पटना में करवाया था. उस दौर में हिंदी में नवलेखन आंदोलन शुरू हुआ था. उसके सारे हस्ताक्षर तब पटना में जमा हुये थे. उनकी पहचान एक कर्मठ साहित्यकार और लोकप्रिय शिक्षाविद्ध के रूप में थी. उनकी विशेषता थी वे किसी मसले पर तभी बोलते जब उसके बारे में प्रमाणिक जानकारी रखते. इसके कारण उनकी कही बातें काफी प्रमाणिक मानी जाती थी. हम लोग अक्सर ही किसी न किसी मसले पर उनसे सलाह लेते थे. आलोचना के क्षेत्र में उनका प्रोत्साहन सबों को मिला.

रंगकर्मी परवेज अख्तर ने साझा की अपनी यादें :

संगीत नाटक अकादमी सम्मान से सम्मानित रंगकर्मी परवेज अख्तर ने कहा, प्रो. नंदकिशोर नवल से हमारा संबंध 1977 से ही रहा है. उस दौर में वे हमारे लिये एक शिक्षक के साथ थियेटर के क्षेत्र में मार्गदर्शक भी थे. थियेटर को लेकर हम जैसे लोगों के बीच एक दृष्टि विकसित करने में उनका बड़ा रोल है. मुझे याद है कोई दिन ऐसा नहीं होता था जब हम युवा उनसे कविता और रंगमंच के बारे में बातें न करते थे. हम लोग युवा थे,और वे एक नामचीन आलोचक और शिक्षक लेकिन बड़े प्यार से हमें अपने पास बैठाते थे. उनके यहां चाय बड़ी अच्छी बनती थी. हम चाय के साथ थियेटर पर उनसे चर्चा करते. थियेटर को समझने की दृष्टि, विचार और सौन्दर्य के स्तर पर उनका योगदान हमेशा याद रखा जायेगा. मुझे याद है कि हम कोई नाटक करते तब उसका आलेख उन्हें दे देते थे और कहते कि आप हमें इसपर लेक्चर दें. उस पर उनका लेक्चर सुनकर हर सीन रंगकर्मियों के दिमाग में उतर जाता था और हम बेहतरीन नाटक करने में कामयाब होते थे. मेरे और मेरे जैसे अनेकों रंगकर्मियों के निर्माण में प्रो. नवल का बहुत बड़ा योगदान है. उन्होंने हमें बहुत सपोर्ट किया और आगे बढ़ाया. हमेशा कहते थे कि कला को किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर नहीं देखो. कला को हमेशा बाल सुलभ जिज्ञासा से देखना चाहिये.

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