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Bihar Election 2025: जन सुराज का बस्ता खाली,तेजप्रताप का ब्लैकबोर्ड सूना, चिराग का हेलीकॉप्टर उड़ा आसमान,सहनी की नैइया बीच मंझधार डूबी

Bihar Election 2025: इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में वोटरों ने बेहद स्पष्ट संदेश दिया, उन्हें स्थिरता चाहिए, प्रयोग नहीं. यही कारण है कि कई पार्टियों के दावे और उम्मीदें नतीजों के सामने धरी की धरी रह गईं, जबकि कुछ छोटे दलों ने उम्मीद से अधिक प्रदर्शन कर सभी को चौंका दिया.

Bihar Election 2025: बिहार चुनाव 2025 के परिणाम कई मायनों में उल्लेखनीय रहे. एनडीए को मिले भारी जनादेश ने जहां स्थायी सरकार की जनभावना को स्पष्ट किया, वहीं छोटे और क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन नए राजनीतिक समीकरणों की ओर इशारा करता है.

तेज प्रताप का जादू क्यों नहीं चला? जजद का वोट बैंक सिकुड़ा

लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की पार्टी जनशक्ति जनता दल ने इस चुनाव में 44 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. चुनावी चर्चा में उनकी पार्टी को लेकर उत्साह जरूर दिखा, लेकिन मतदान और नतीजे दोनों ने पार्टी के लिए निराशाजनक तस्वीर पेश की.

महुआ सीट से खुद तेज प्रताप यादव मैदान में थे, जहां उन्हें 35,703 वोट मिले, जबकि लोजपा (रा) के संजय कुमार सिंह ने 87,641 वोट बटोरते हुए बड़ी जीत दर्ज की. यह अंतर सिर्फ हार नहीं, बल्कि जजद की कमजोर ह पकड़ का संकेत है.

कुल 44 सीटों पर उतरने के बाद भी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी. स्ट्राइक रेट शून्य रहा और तेज प्रताप के लिए यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य की चुनौती बनकर उभरा है.

जन सुराज, 240 उम्मीदवार, 98% जमानत जब्त, खाता तक नहीं खुला

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी इस चुनाव में सबसे बड़े प्रयोग के रूप में दिखी. 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का दावा और 239 सीटों पर वास्तविक लड़ाई ने यह संकेत दिया कि पार्टी राज्यव्यापी आधार बनाने की कोशिश कर रही थी.

लेकिन नतीजे बेहद कड़े रहे, एक भी सीट नहीं मिली और लगभग 98% उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.

यह हार बताती है कि मतदाताओं ने इस बार किसी तरह की दुविधा नहीं रखी. उन्होंने स्पष्ट जनादेश के साथ स्थायी और अनुभवी राजनीति को तरजीह दी. प्रशांत किशोर ने 16 नवंबर की प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी रणनीति बताने की घोषणा की है, लेकिन यह साफ है कि जन सुराज को अब जमीनी स्तर पर बहुत लंबा सफर तय करना होगा.

AIMIM—पांच सीटों पर जीत का दमदार प्रदर्शन

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने इस चुनाव में सीमांचल में अपनी पकड़ का परिचय दिया. 24 से 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए और पार्टी ने पांच सीटें जीत लीं. जोकिहाट, अमोर, ठाकुरगंज, बहादुरगंज, बैसी और कोचाधामन. AIMIM को कुल 1.89% वोट मिले.

हालांकि राजद ने इसे महागठबंधन में शामिल करने से इनकार कर दिया था, लेकिन पार्टी ने अपने जनाधार को साबित करते हुए राजनीतिक उपस्थिति फिर से दर्ज की.

लोजपा (रामविलास) – चिराग पासवान के नए चेहरों का चमकता प्रदर्शन

इस चुनाव के बड़े विजेताओं में लोजपा (रा) का नाम प्रमुख है. चिराग पासवान ने एनडीए में सीट बंटवारे के समय कड़ा रुख अपनाकर 29 सीटें हासिल की थीं इन 29 में से 19 सीटें जीतकर उन्होंने अपनी राजनीतिक क्षमता को साबित किया है. पार्टी का स्ट्राइक रेट लगभग 65% रहा, जो किसी भी सहयोगी दल के लिए बेहद प्रभावशाली माना जाता है. लोजपा (रा) के अधिकांश विजेता नए चेहरे हैं, जिससे पार्टी की अगली पीढ़ी तैयार होने की संभावना मजबूत होती है. यह प्रदर्शन चिराग पासवान की रणनीतिक क्षमता का मजबूत प्रमाण बनकर उभरा.

रालोमो—छोटी पार्टी, बड़ा असर

राष्ट्रीय लोक जनशक्ति मोर्चा (रालोमो) ने चुनाव में 6 सीटों पर दांव लगाया था और उनमें से 4 पर जीत हासिल कर ली. 67% की स्ट्राइक रेट इस बात का प्रमाण है कि स्थानीय स्तर पर पार्टी की जड़ें मजबूत हैं. रालोमो को सिर्फ अपनी सीटों पर ही नहीं, बल्कि एनडीए के अन्य उम्मीदवारों को भी लाभ पहुंचाने वाला वोट मिला. छोटे सहयोगियों के इस प्रदर्शन ने एनडीए की व्यापक सामाजिक आधार रणनीति को और मजबूत किया.

हम – जीतन राम मांझी की वापसी, 83% स्ट्राइक रेट

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ ने छह उम्मीदवार उतारे और उनमें से पांच ने जीत दर्ज की. 83% की स्ट्राइक रेट किसी भी छोटे दल के लिए असाधारण है. यह परिणाम बताता है कि मांझी अभी भी अपने समुदाय और स्थानीय क्षेत्रों में असर रखते हैं. एनडीए में उनकी भूमिका इस चुनाव में काफी महत्वपूर्ण रही और यह चुनाव उनके संगठनात्मक बल की पुष्टि करता है.

वाम दल—तीन सीटों पर सिमटा प्रभाव

भाकपा-माले ने 20, माकपा ने 4 और भाकपा ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा. लड़ाई भले ही बड़ी थी, लेकिन जीत केवल तीन सीटों पर मिली, पालीगंज, कराकाट और विभूतिपुर. वोट प्रतिशत भी पिछले चुनाव की तुलना में गिरा है, जो वाम दलों के जनाधार के सिकुड़ने का संकेत है.

वीआईपी—इस बार खाता भी नहीं खुला

मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी ने 15 उम्मीदवार उतारे थे लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी. 2020 में जहां पार्टी ने चार सीटें जीती थीं, वहीं इस बार परिणाम बेहद खराब रहे. महागठबंधन में रहते हुए भी पार्टी कोई प्रभाव नहीं छोड़ सकी और उसका खाता तक नहीं खुला.

इंडियन इन्क्लूसिव पार्टी—पहली लड़ाई में खाता खोला

पहली बार चुनाव लड़ रही इंडियन इन्क्लूसिव पार्टी ने 3 सीटों पर लड़ाई लड़ी और सहरसा से जीत हासिल कर ली. पार्टी अध्यक्ष आई.पी. गुप्ता ने एक लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज कर भाजपा विधायक आलोक रंजन को पीछे छोड़ा. 33.33% स्ट्राइक रेट के साथ यह नई पार्टी अब राज्य में अपना आधार खोजने की कोशिश कर सकती है.

बिहार चुनाव 2025 ने यह साबित किया है कि मतदाता अब भ्रम की राजनीति नहीं चाहते. स्थिरता, स्पष्ट नेतृत्व और विकास की प्राथमिकता जनता के फैसले में साफ दिखी. जहां कुछ दलों ने उम्मीद से ज्यादा प्रदर्शन किया, वहीं कई दलों को आत्ममंथन की जरूरत है. छोटे दलों का प्रदर्शन यह भी दिखाता है कि बिहार की राजनीति अब क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरणों के नए युग में प्रवेश कर चुकी है.

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Pratyush Prashant
Pratyush Prashant
कंटेंट एडिटर. लाड़ली मीडिया अवॉर्ड विजेता. जेंडर और मीडिया में पीएच.डी. . वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. साहित्य पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं.

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