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Bihar Chunav 2025: बिहार में रिकॉर्ड तोड़ मतदान, ‘कट्टा बनाम सुशासन’ की टक्कर से बना नया नैरेटिव

Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 सिर्फ सत्ता का खेल नहीं रहा, बल्कि यह उम्मीदों, नाराजगी और नए राजनीतिक विमर्श की कहानी बन गया. रिकॉर्ड तोड़ मतदान ने दिखा दिया कि मतदाता अब सिर्फ चेहरों को नहीं, मुद्दों को वोट दे रहे हैं रोजगार, पलायन, महिला सुरक्षा और कानून-व्यवस्था जैसे सवाल पहली बार चुनावी बहस के केंद्र में थे.

Bihar Chunav 2025: 18वीं बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मतदान संपन्न हो गया है और इस बार इतिहास रचा गया. करीब 64.46% वोटिंग, जो पिछले चुनाव से 9.6% अधिक है. यह केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि राज्य के बदलते राजनीतिक मानस का संकेत है.
जनसुराज की युवा-केंद्रित पहल, महागठबंधन के वादे और एनडीए सरकार की कल्याण योजनाओं ने इस चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया. सबसे दिलचस्प यह रहा कि युवाओं और महिलाओं ने इस बार निर्णायक भूमिका निभाई, ‘कट्टा बनाम सुशासन’ की बहस ने पूरे चुनावी परिदृश्य को बदल दिया.

जनसुराज से शुरू हुआ एजेंडा, बदल गया चुनावी विमर्श

बिहार की राजनीति में जनसुराज का उभार इस बार ‘गेम चेंजर’ साबित हुआ. प्रशांत किशोर के नेतृत्व में जनसुराज ने जातीय राजनीति से हटकर विकास, शिक्षा और रोजगार के सवालों पर फोकस किया. उनका नारा, “बच्चों के भविष्य पर वोट करें” गांव से लेकर शहर तक गूंजता रहा.

जनसुराज ने इस चुनाव को पहली बार वैचारिक जमीन दी, जिसने बाकी दलों को भी अपने एजेंडे पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया. सभी राजनीतिक दलों ने बेरोजगारी और शिक्षा के सवालों को अपने केंद्र में रखा, जिससे पूरा चुनावी माहौल जाति से मुद्दों की ओर मुड़ा.

विपक्ष ने दिखाए सपने, जनता ने दिया रिस्पॉन्स

महागठबंधन ने इस चुनाव में बड़ा जोखिम लेकर जनता को सीधे प्रभावित करने वाले वादे किए . “हर घर से एक नौकरी” और “महिलाओं को 30 हजार रुपये” जैसे प्रस्तावों ने चर्चा छेड़ दी. इसके साथ ही अपराध पर सख्त कार्रवाई और ‘सुशासन प्लस’ मॉडल का ऐलान कर विपक्ष ने यह संदेश दिया कि वह अब सिर्फ विरोध नहीं, विकल्प बनना चाहता है.

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जोड़ी ने रैलियों में युवाओं को टारगेट किया और कहा, “अब बिहार को डर नहीं, अवसर चाहिए.” ग्रामीण इलाकों में यह संदेश गहराई तक पहुंचा, जहां बेरोजगारी और पलायन की मार सबसे ज्यादा है.

सत्ता पक्ष ने कल्याण और भरोसे का कार्ड खेला

नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने चुनाव से पहले अपनी योजनाओं का सीधा लाभ जनता तक पहुंचाने में पूरी ताकत झोंक दी. 125 यूनिट मुफ्त बिजली, महिला रोजगार योजना और पंचायत स्तर पर काम करने वाली महिलाओं को दो लाख रुपये देने की घोषणा ने वोटरों के बीच भरोसा पैदा किया.

करीब डेढ़ करोड़ महिलाओं को स्कीम का लाभ मिल चुका था और इस वर्ग की भागीदारी मतदान में निर्णायक दिखी. एनडीए का जोर इस बार था “विकास की गारंटी, भरोसे का नाम नीतीश.”

‘कट्टा बनाम कल्याण’: नया चुनावी नैरेटिव

चुनाव प्रचार के दौरान ‘कट्टा’ शब्द अचानक राजनीति के केंद्र में आ गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अक्तूबर की समस्तीपुर रैली में यह शब्द इस्तेमाल किया और इसके बाद राजग के लगभग हर नेता ने इसे दोहराया.

‘कट्टा’ अब सिर्फ बंदूक नहीं रहा, बल्कि प्रतीक बन गया उस दौर का, जिसे एनडीए ने “लालू राज के जंगलराज” के रूप में पेश किया. इसके जवाब में तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने कहा कि भाजपा और जदयू ‘कट्टे की राजनीति’ कर रहे हैं, जिससे बिहार की छवि खराब हो रही है.

यह शब्द पूरे चुनाव का ‘स्लोगन वॉर’ बन गया. एक ओर भय, दूसरी ओर नए बिहार का सपना.

महिलाओं की रिकॉर्ड भागीदारी- असली गेमचेंजर

इस बार के भारी मतदान में महिलाओं की भागीदारी ने सबका ध्यान खींचा. सरकार की ‘महिला रोजगार योजना’ और विपक्ष के ‘तीस हजार रुपये वाले वादे’ ने उन्हें केंद्र में ला दिया.

पहली बार ऐसा हुआ कि गांव की महिलाएं वोट डालते समय अपने घरेलू मुद्दों से आगे बढ़कर राज्य की नीतियों पर विचार करती दिखीं. महिलाओं का यह उभार बिहार की राजनीति को स्थायी रूप से बदल सकता है.

पांच प्रमुख मुद्दों पर टिका रहा पूरा चुनाव

यह चुनाव पूरी तरह पांच बड़े मुद्दों पर केंद्रित रहा, रोजगार, पलायन, घुसपैठ, महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था. प्रचार के दोनों चरणों में एनडीए और महागठबंधन के नेता इन्हीं बिंदुओं पर एक-दूसरे पर हमलावर रहे.
जहां प्रधानमंत्री मोदी ने सीमांचल में घुसपैठ को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा, वहीं विपक्ष ने इसे शासन की विफलता करार दिया.

नीतीश कुमार ने दावा किया कि पलायन में कमी आई है, जबकि तेजस्वी यादव ने पलायन को राज्य की सबसे बड़ी ‘त्रासदी’ बताया. आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, राज्य की बेरोजगारी दर 4.3% है, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है यह आंकड़ा भी चुनावी बहस का हथियार बना.

दो पीढ़ियों की टक्कर- पुराना अनुभव बनाम नया जोश

यह चुनाव सिर्फ दलों के बीच नहीं, बल्कि दो पीढ़ियों के बीच भी था. एक ओर नीतीश कुमार और चिराग पासवान जैसे अनुभवी नेता थे, वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी और जनसुराज की नई टीम.

पुराने नेताओं ने अपनी पारंपरिक रणनीतियों पर भरोसा किया, जबकि नई पीढ़ी ने सोशल मीडिया, डेटा एनालिसिस और ‘जमीनी जनसंवाद’ के जरिए जनता से सीधा जुड़ाव बनाया. यह टक्कर बिहार की राजनीति को दो दिशाओं में खींचती दिखी, परंपरा बनाम प्रयोग.

वोटर बना बदलाव का साझेदार

इस बार मतदाता सिर्फ वोट डालने नहीं निकले, बल्कि ‘परिवर्तन के साझेदार’ बनकर सामने आए. गांवों में युवा सुबह से कतार में दिखे, महिलाएं समूहों में बूथों तक पहुंचीं और पहली बार वोट डालने वालों में अभूतपूर्व उत्साह था.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने साफ कर दिया है कि राज्य की राजनीति अब ‘पहचान’ से आगे बढ़कर ‘प्रदर्शन’ की ओर बढ़ रही है. जनसुराज की जनचेतना, विपक्ष की महत्वाकांक्षा और एनडीए की कल्याणकारी राजनीति इन तीनों ने मिलकर एक नया नैरेटिव गढ़ा है. बदलाव की बयार को भी हर बूथ पर महसूस किया गया.

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Pratyush Prashant
Pratyush Prashant
कंटेंट एडिटर और तीन बार लाड़ली मीडिया अवॉर्ड विजेता. जेंडर और मीडिया विषय में पीएच.डी. वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल की बिहार टीम में कार्यरत. डेवलपमेंट, ओरिजनल और राजनीतिक खबरों पर लेखन में विशेष रुचि. सामाजिक सरोकारों, मीडिया विमर्श और समकालीन राजनीति पर पैनी नजर. किताबें पढ़ना और वायलीन बजाना पसंद.

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