Bihar Assembly Elections 2025: चुनावी रणनीतिकार में बिहार के राजनीति में अपना नया कैरियर बनाने की कोशिश कर रहे प्रशांत किशोर ने आज बड़ी भविष्यवाणी कर डाली है. यह भविष्यवाणी उन्होंने चुनाव की घोषणा के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए की है. उन्होंने कहा कि- मुख्यमंत्री नीतीश कुमारअगली बार दही-चुड़ा का भोज एक अणे मार्ग यानी मुख्यमंत्री आवास पर नहीं दे पाएंगे.
इतना ही नहीं, पत्रकारों से बातचीत के दौरान अपने ही बातों में कन्फ्यूज भी नजर आये. उन्होंने कहा कि- नीतीश कुमार को वोट मिलेगा लेकिन लालू प्रसाद यादव के डर से. ऎसे में बड़ा सवाल यह है कि एक तरफ वो नीतीश कुमार के चुनाव हारने की भविष्यवाणी करते नजर आ रहे है वहीं, जनता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वोट करेगी, इस बात को स्वयं स्वीकार भी कर रहे है.
नीतीश कुमार और अगला ‘दही-चूड़ा’
किशोर ने अपने बयान में एक मजाकिया लेकिन राजनीतिक रूप से संकेतपूर्ण टिप्पणी भी की—“अगला दही चूड़ा नीतीश कुमार पर नहीं खाएंगे.” यह कथन सियासी व्यंग्य के रूप में तो देखा जा सकता है, लेकिन इसका गहरा संदेश भी है. यह संकेत है कि पिछले चुनावों में कुछ परंपरागत वोट या समर्थन अब स्वतः नहीं आएगा.
किशोर यह बता रहे हैं कि मतदाता अब पुराने आदतों या प्रतीकों पर भरोसा नहीं करेंगे. यानी यह चुनाव केवल गठबंधन और जातीय समीकरण तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि नेतृत्व और प्रदर्शन पर भी मतदाता की निगाहें रहेंगी.
लालू यादव का डर और वोट बैंक की राजनीति
दूसरी तरफ किशोर यह भी कहते हैं कि नीतीश कुमार को लालू यादव के डर से वोट मिलेगा. यह बयान राजनीतिक अस्थिरता और विरोधियों की मौजूदगी को लेकर वास्तविक राजनीतिक संवेदनाओं को उजागर करता है.
यह संकेत देता है कि जनता केवल विकास और प्रशासनिक रिकॉर्ड पर ही नहीं, बल्कि संभावित विपक्षी ताकतों और उनके कदमों को देखकर भी मतदान करेगी. किशोर का यह विश्लेषण बिहार के राजनीतिक समीकरणों की जटिलता को स्पष्ट करता है—जहां भय, उम्मीद और रणनीति तीनों ही भूमिका निभा रहे हैं.
राजनीति में विश्लेषक का नया अंदाज
प्रशांत किशोर के इन दोनों बयानों में विरोधाभास जैसा लग सकता है—एक तरफ दो चरणों के चुनाव का स्वागत और त्रिकोणीय मुकाबले में स्थिरता का दावा, दूसरी तरफ नेतृत्व पर मजाक और डर की राजनीति. लेकिन असल में यह विश्लेषक का काम है—राजनीति की सूक्ष्मताओं को समझाना और जनता के लिए परिदृश्य साफ करना.
किशोर ने यह भी संकेत दिया कि राजनीतिक समझौते, गठबंधन और नेतृत्व की छवि ही बिहार चुनाव की दिशा तय करेंगे. उनका अंदाज सीधे और व्यंग्यपूर्ण होने के बावजूद गंभीर विश्लेषण पेश करता है.

