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दावं पर रहती है नौनिहालों की जिंदगी

कुव्यवस्था. मापदंडों को दरकिनार कर चलायी जाती हैं स्कूली बसें आरा : प्राइवेट स्कूलों की बसों में आने-जाने वाले नौनिहालों की जिंदगी दावं पर रहती है. कोर्ट व प्रशासन के आदेश के बाद भी बसों में बच्चों की सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की जा रही है. भोजपुर जिले में मापदंडों को दरकिनार कर स्कूली बसें […]

कुव्यवस्था. मापदंडों को दरकिनार कर चलायी जाती हैं स्कूली बसें

आरा : प्राइवेट स्कूलों की बसों में आने-जाने वाले नौनिहालों की जिंदगी दावं पर रहती है. कोर्ट व प्रशासन के आदेश के बाद भी बसों में बच्चों की सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की जा रही है. भोजपुर जिले में मापदंडों को दरकिनार कर स्कूली बसें चलायी जाती हैं. निर्धारित मापदंडों की तुलना में जिले की स्कूल बसों में 25 फीसदी भी व्यवस्था नहीं है. वैसे तो स्कूली बसों में सीसीटीवी कैमरे तक की व्यवस्था रखनी है. लेकिन, यहां तो बस की मेंटेंनेंस की भी पूरी व्यवस्था नहीं है. कई स्कूलों की तो जर्जर व अनफिट बसें बच्चों को लाने के लिए प्रयोग में लायी जा रही है. कई बार तो ऐसा भी देखने में आया है कि रास्ते में बस बिगड़ गयी, तो बच्चों से ही धक्का भी दिलाया जाता है.
यहां तक की कम अनुभवी चालक के हाथ में स्कूल बसों की स्टेयरिंग थमा दी जाती है. ऐसी स्थिति में अक्सर स्कूली बसों से हादसे होते हैं. बच्चों के साथ आम लोग भी इसके शिकार हो जाते हैं, जबकि ट्रांसपोर्टेशन के नाम पर बच्चों से अच्छी-खासी राशि प्राइवेट स्कूलों के संचालक वसूल करते हैं. इसके बावजूद भी निर्धारित मापदंडों के अनुरूप बसों में व्यवस्था नहीं दी जाती है. स्कूली बसों से हुई घटनाओं के बाद कई बार बवाल भी मचा है. मापदंडों के अनुसार, स्कूली बसों में सीसीटीवी कैमरा, अनुभवी ड्राइवर, महिला अटेंडेंट, कंडक्टर, अलार्म लॉक सहित कई व्यवस्था होनी चाहिए.
सीट से अधिक भर लिये जाते हैं बच्चे : आवश्यक मापदंडों को पूरा करने की बात तो दूर, स्कूली वाहनों में सीट से अधिक बच्चों को भर लिया जाता है. इसकी वजह से बच्चों को परेशानी झेलनी पड़ती है. मासूम बच्चे कुछ कह नहीं पाते हैं और स्कूल प्रशासन इस पर ध्यान नहीं देता है.
पूर्व की घटनाओं से भी नहीं ली जाती है सबक : स्कूली बसों से कई बार घटनाएं हुईं, लेकिन इसके बावजूद कोई सबक नहीं ली जाती है. जब घटना होती है, तो विरोध की वजह से जिला प्रशासन सक्रिय हो जाता है और स्कूल प्रबंधन भी थोड़ा अलर्ट हो जाता है. मामला शांत होने के बाद फिर से पहले वाली स्थिति बन जाती है.
शहर में स्कूली बसों से कई बड़े हादसे हुए हैं. रमना मैदान के पास एक कॉलेज छात्र स्कूल बस से गंभीर रूप से जख्मी हो गया था, जिसके बाद शहर में काफी बवाल मचा था. बाइपास में डीएवी स्कूल की बस ट्रक से टकरा गयी थी, जिसमें कई छात्र घायल हो गये थे. धोबहां में दिव्य भास्कर स्कूल के बस सड़क के किनारे पलट गयी थी, जिसमें दर्जन भर से अधिक छात्र जख्मी हुए थे. ऐसी ही कई अन्य घटनाएं हुईं, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. स्कूली बसें बगैर मापदंड के आज भी उसी रफ्तार से सड़कों पर दौड़ रही हैं.
एक भी प्राइवेट स्कूल निर्धारित मानकों को नहीं कर रहे हैं पूरा
स्कूल बस की खिड़की से बाहर देखते छात्र.
चालकों पर समय पर पहुंचने का रहता है दबाव
चालकों पर समय पर स्कूल पहुंचने का भी दबाव बना रहता है. कई स्कूलों में बसों की संख्या कम है और चालक को लंबा एरिया कवर कर समय पर स्कूल पहुंचने की जिम्मेदारी होती है. ऐसे में ड्राइवर गाड़ी तेज गति में चलाते हैं. इससे अक्सर हादसे होते है. एक स्कूल बसचालक ने कहा कि विलंब होने पर बात सुनना पड़ता है और वेतन में कटौती कर दी जाती है. इस वजह से काफी दबाव रहता है.
स्कूल बस, जिस पर कोई भी जानकारी नहीं है अंकित.
हर साल बढ़ता है ट्रांसपोर्टेशन चार्ज, सुविधाएं नहीं
स्कूली बसों में सुविधाओं का अभाव बच्चों के अभिभावकों को भी कम नहीं खटक रहा है, लेकिन वे करें भी तो क्या. अभिभावकों से जब इस संबंध में राय ली गयी, तो उन लोगों ने खुल कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की. कुछ ने जहां स्कूल प्रबंधन व जिला प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया, तो कुछ ने कहा कि हर साल ट्रांसपोर्टेशन चार्ज बढ़ता है, लेकिन सुविधाएं नदारद रहती हैं.

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