आरा : विभिन्न कारणों से वायु, जल व ध्वनि में बढ़ रहे प्रदूषण से मानव जीवन को खतरा होने की संभावना बढ़ गयी है. इसके लिए जिम्मेदार भी स्वयं मानव है. हालात यहां तक पहुंच गया है कि अब सरकार इसके लिए गंभीर हो चुकी है और कई तरह के नियम बनाकर इसे रोकने व जन जागरूकता चलाने का फैसला कर चुकी है.
हवा, पानी, ध्वनि के मानक से काफी आगे है वर्तमान प्रदूषण की स्थिति : जिले में हवा, पानी व ध्वनि की मानक स्थिति से वर्तमान में प्रदूषण की स्थिति काफी आगे है. ध्वनि प्रदूषण का मानक स्तर की स्थिति में निद्रावस्था में आसपास के वातावरण में 35 डेसीबेल से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए और दिन का शोर भी 45 डेसीबेल से अधिक नहीं होना चाहिए.
आदमी के सुनने की सहनशक्ति 55 से 60 डेसिबल होती है. 60 से अधिक डेसिबल भी ध्वनि को शोर या प्रदूषण कहा जाता है. इससे अधिक शोर में रहने पर कान के साथ ही पूरे नर्वस सिस्टम पर दुष्प्रभाव पड़ता है.
वहीं, जल का मानक साधारण जल का पीएच 7 होता है. इससे ज्यादा हुआ, तो क्षारीय और कम हुआ तो अम्लीय होता है. जबकि राष्ट्रीय गुणवत्ता मानक के अनुसार हवा में पीएम 10 का एवरेज लेवल 60 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर होना चाहिए. पर वर्तमान में इनका स्तर काफी बढ़ गया है. जिले में वायु प्रदूषण 120 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया है. वहीं, ध्वनि प्रदूषण 170 डेसीबल तक पहुंच गया है.
कंस्ट्रक्शन, कचरा, डंपिंग व पुआल जलाने से बढ़ रहा है प्रदूषण : जिले में किये जा रहे भवन निर्माण कार्य, नगर निकायों में कचरा डंपिंग की बुरी स्थिति व खेतों में धान के पुआल तथा गेहूं के डंठल जलाये जाने से प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है.
कुल अपशिष्ट के लगभग 14 प्रतिशत तक पुआल व गेहूं के डंठल जला दिये जाते हैं. जिले में किसानों द्वारा कुल दो लाख टन पुआल जलाया जाता है. प्रदेश में रोहतास, कैमूर,भोजपुर, पटना, औरंगाबाद, नालंदा में सबसे ज्यादा पुआल जलाया जाता है.
जिले में हैं पांच अधिकृत प्रदूषण जांच केंद्र : जिले में परिवहन विभाग द्वारा अधिकृत पांच प्रदूषण जांच केंद्र हैं. इनमें बड़कागांव, जीरो माइल, गीधा आदि शामिल है. जबकि लाइसेंस की अवधि समाप्त हो जाने के बाद कई जगहों पर प्रदूषण जांच किया जाता है व सर्टिफिकेट दिया जाता है. हालांकि लगभग दो माह पहले इसकी जांच कर कार्रवाई की गयी थी. खराब वाहनों को भी प्रदूषण जांच प्रमाणपत्र दे दिया जाता है. जांच केंद्रों की नियमित जांच होनी चाहिए.
जिले में लगभग 25 हजार से अधिक हैं 15 वर्षों से ज्यादा की गाड़ियां : जिले में लगभग 25 हजार से अधिक 15 वर्ष पुरानी गाड़ियां हैं. इनमें अधिकांश निगम की गाड़ियां हैं. वहीं, प्रशासन में भी 15 वर्ष से अधिक चलायी जानेवाली कई गाड़ियां हैं. इसे लेकर जिला परिवहन पदाधिकारी माधव कुमार सिंह ने बताया कि गाड़ियों को बंद कराया जायेगा. हालांकि प्रशासन में सभी विभागों द्वारा गाड़ियों को भाड़ा पर लेकर चलाया जा रहा है, ताकि प्रदूषण की स्थिति से बचा जा सके.
खुले में किये जा रहे हैं भवन निर्माण : नगर सहित जिले में अधिकांश भवनों का निर्माण खुले में किया जा रहा है. इसे ढका नहीं जा रहा है. निजी भवनों की तो स्थिति है ही, सरकारी भवनों के निर्माण के दौरान नियम का पालन नहीं किया जा रहा है. भवन को बिना कपड़े से ढके ही निर्माण कार्य किया जा रहा है.
कचरा डंपिंग की नहीं है समुचित व्यवस्था : नगर में कचरा डंपिंग की समुचित व्यवस्था नहीं है. प्रतिदिन 20 टन कचरा निकलता है. हालांकि निगम द्वारा प्रतिवर्ष कचरा डंपिंग के लिए योजना बनायी जाती है. स्थान भी चिह्नित किया जाता है, पर इस पर कार्रवाई नहीं होती है. वहीं, एक तरफ निगम की गाड़ियों में बिना ढके ही कचरा ले जाया जाता है, जो पूरी रास्ते गिरते जाता है.
वहीं, बिना योजना के सड़कों के किनारे कचरा को डंप कर दिया जाता है. इससे काफी खतरनाक स्थिति पैदा हो रही है. प्रदूषण की मात्रा काफी बढ़ रही है. वहीं कचरा शुद्धिकरण का कार्य शहर के दो वार्डों में चल रहा है. इनमें पहला 15 नंबर वार्ड पानी टंकी के पास और दूसरा वार्ड नंबर 37 बस स्टैंड के पास.
जिले में कुल 36 हेक्टेयर है वन क्षेत्र : जिले में कुल 36 हेक्टेयर वन क्षेत्र है. वन विभाग के अनुसार इसे ग्रीन कवर कहा जाता है. जबकि जिले का कुल क्षेत्रफल 2474 वर्ग किलोमीटर है. इससे वन क्षेत्र का अंदाजा लगाया जा सकता है व प्रदूषण में इसकी भूमिका को समझा जा सकता है.
कितना होना चाहिए एअर क्वालिटी इंडेक्स
स्टैंडर्ड नियमों के मुताबिक एअर क्वालिटी इंडेक्स में 0-50 तक की वायु गुणवत्ता को अच्छा माना जाता है, वहीं 51-100 तक संतोषजनक. 100-150 तक औसत तथा 151-300 तक खराब मानी जाती है. 301-400 तक बेहद खराब और 401 से ऊपर यह बेहद गंभीर मानी जाती है.
बोले सिविल सर्जन
पानी में प्रदूषण रहने से दस्त उल्टी, डिहाइड्रेशन होता है. वहीं, वायु प्रदूषण से दिल का दौरा, सांस की तकलीफ, खांसी, आंखों की जलन और एलर्जी आदि होने का खतरा पैदा हो जाता है. ध्वनि प्रदूषण से चिड़चिड़ापन एवं आक्रामकता के अतिरिक्त उच्च रक्तचाप, तनाव, कर्णक्ष्वेड, श्रवण शक्ति का ह्रास, नींद में गड़बड़ी और अन्य हानिकारक प्रभाव पैदा कर सकता है. हालांकि अस्पताल में इससे संबंधित कोई मरीज नहीं आया है.
ललितेश्वर प्रसाद झा, सिविल सर्जन
क्या है पीएम 2.5 और पीएम 10
मौसम विज्ञानी डॉ एसएन पांडेय ने बताया कि पीएम 2.5 से मतलब ऐसे पार्टिकुलेट मैटर से है जिनका आकार 2.5 माइक्रॉन से कम होता है. इसी तरह पीएम 10 में पार्टिकुलेट मैटर का आकार 10 माइक्रॉन से कम रहता है. दोनों ही नंगी आंखों से नजर नहीं आते.
पार्टिकुलेट मैटर का असर
दो माइक्रोन से कम आकार- फेफड़े के अंदर जाते हैं तथा नली में जाकर संक्रमण पैदा कर सकते हैं.
दो से पांच माइक्रोन आकार- फेफड़ों में बुरी तरह जम जाते हैं जो तेज दर्द, संक्रमण और खून की नलियों को प्रभावित कर सकते हैं.
10 माइक्रोन आकार- नाक, गले में दिक्कत हो सकती है.
गाड़ियों का आंकड़ा
वाहनों की संख्या लगभग
40 हजार
जिले में दोपहिया वाहन
20 हजार
व्यावसायिक फोर व्हीलर
07 हजार
प्राइवेट चारपहिया वाहन
03 हजार
