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अतिक्रमण हटाने पर किया गया लाखों खर्च, हालात जस-की-तस
आरा : गत सितंबर माह में जिला प्रशासन व नगर निगम द्वारा काफी ताम-झाम से नगर में अतिक्रमण हटाने का काम किया गया. प्रशासन द्वारा लगभग 10 दिनों तक अतिक्रमण हटाने का कार्य किया गया. वहीं इसके पहले नगर निगम व जिला प्रशासन द्वारा ध्वनि विस्तारक यंत्रों से नगर में कई दिनों तक अतिक्रमण हटाओ […]
आरा : गत सितंबर माह में जिला प्रशासन व नगर निगम द्वारा काफी ताम-झाम से नगर में अतिक्रमण हटाने का काम किया गया. प्रशासन द्वारा लगभग 10 दिनों तक अतिक्रमण हटाने का कार्य किया गया.
वहीं इसके पहले नगर निगम व जिला प्रशासन द्वारा ध्वनि विस्तारक यंत्रों से नगर में कई दिनों तक अतिक्रमण हटाओ अभियान का प्रचार प्रसार किया गया. वहीं अतिक्रमणकारियों को अतिक्रमण हटाने की चेतावनी भी दी गयी. प्रशासन द्वारा कहा जा रहा था कि निर्धारित सीमा के अंदर अतिक्रमणकारियों द्वारा अतिक्रमण नहीं हटाया गया, तो अतिक्रमण हटाने में आनेवाले खर्च प्रशासन अतिक्रमणकारी से वसूल करेगी. इस तरह का प्रचार नगर निगम चुनाव के पहले भी किया गया था. इस पर निगम का काफी पैसा खर्च हुआ था, पर नगर निगम चुनाव की तिथि घोषित होते ही इसका हवाला देकर अभियान को चालू नहीं किया गया.
10 दिनों तक चलाया गया अतिक्रमण विरोधी अभियान : जिला प्रशासन व नगर निगम द्वारा 10 दिनों तक पूरे नगर में अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया, पर प्रशासन व नगर निगम की गंभीरता को अतिक्रमणकारियों ने किस रूप में लिया. इसे इस बात से समझा जा सकता है कि आगे अतिक्रमण हटाया जा रहा था और पीछे से अतिक्रमणकारी फिर से काबिज होते जा रहे थे.
इस तरह अतिक्रमण हटाने के साथ-साथ पूरा नगर फिर से अतिक्रमण की चपेट में आ गया. प्रशासन केवल खानापूर्ति करता रहा और लोग समस्या से अब भी जूझ रहे हैं.
किया गया लाखों खर्च : अतिक्रमण हटाने के नाम पर नगर निगम द्वारा 20 लाख से अधिक की राशि खर्च की गयी, ताकि नगर को अतिक्रमणमुक्त बनाया जाये, पर नगर निगम व जिला प्रशासन के उदासीन रवैया व समस्या के प्रति गंभीरता में कमी के कारण खर्च की गयी राशि भी बेकार हो गयी.
एक तरफ अतिक्रमण की समस्या ज्यों-की-त्यों बनी हुई है. दूसरी तरफ नगरवासियों की गाढ़ी कमाई से कर के रूप में ली गयी राशि को पानी की तरह बहाया गया.
पटना उच्च न्यायालय ने दिया है अतिक्रमण हटाने का आदेश : सार्वजनिक तौर पर पटनाउच्च न्यायालय ने पूरे बिहार से सड़कों के किनारे के अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया है. 19 अप्रैल, 2017 को मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन तथा न्यायाधीश सुधीर सिंह के खंडपीठ ने सरकार को आदेश देते हुए कहा कि सड़कों के किनारे अतिक्रमण से यातायात व्यवस्था प्रभावित होती है.
वहीं न्यायालय ने कहा कि सभी को आवाजाही का स्वतंत्र अधिकार है. इस अधिकार के उल्लंघन करनेवाले अतिक्रमणकारियों व प्रशासन की उदासीनता की वजह से इसके हनन की अनुमति नहीं दी जा सकती है. न्यायालय ने कहा कि अतिक्रमण हटाने के बाद प्रशासन इसकी सख्त निगरानी करें, ताकि फिर से अतिक्रमण की स्थिति नहीं बने.
जाम का प्रमुख कारण है अतिक्रमण : नगर की सभी सड़कें पूरे वर्ष जाम की गिरफ्त में रहती हैं. सड़कों के किनारे अतिक्रमण तथा पसरे कूड़े से जाम की समस्या उत्पन्न होती है. कोई सड़क नहीं, जिस पर सुबह, दोपहर व शाम में जाम नहीं लगता हो.
सड़क के किनारे सज रही दुकानों तथा कूड़े का समय पर निष्पादन नहीं करने से जाम की स्थिति बनती है. सड़कों पर पसरा कूड़ा कोढ़ में खाज की तरह नगर के लिए हो गया है. कार्यालय आने-जाने, दुकान खुलने तथा बंद होने, वहीं स्कूलों के खुलने व बंद होने के समय जाम से नगर की सड़कें कराहने लगती हैं.
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